नज़रिया

माँ यहां है तो वृद्धाश्रम में कौन है?

भोपाल – यूं ही एक सवाल मन में था तो सोचा जवाब भले ने मिल पाए लेकिन सवाल तो पूछा ही जा सकता है। तो सवाल था कि मदर्स डे के दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले लोगों ने माँ के साथ अपनी तस्वीरों को पोस्ट कर ये बताने की कोशिश की कि वे अपनी माँ से कितना प्यार करते हैं। इन फोटोज को शेयर करने वालों की फोटो को जमकर लाइक कमेंट किया गया और सबने सबकी माँ की लंबी उम्र की कामना की। अच्छी बात है। आखिर माँ शब्द में ही तो सारी सृष्टि का सार छिपा है। लेकिन अपनी मांओं के साथ फोटो को पोस्ट करने वाले और फोटोज देखकर पसंद करने वालों की संख्या जब इतनी ज्यादा है तो फिर उम्रदराज मांएं वृद्धाश्रम में क्या कर रही है? क्या वो ऐसे लोगों की मांएं है जिनके बेटे बेटियां के अकाउंट सोशल मीडिया पर नहीं है। या फिर पहले से ही मां के साथ एक प्यारी से तस्वीर से खींच कर अपने पास रख ली है ताकि मदर्स डे पर उन फोटोज को अपलोड कर बताया जा सकें कि हमारे पास भी माँ है। अब इससे किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है कि माँ या फिर पिता घर में है या फिर किसी वृद्धाश्रम में अपनी ही खराब किस्मत पर रोते हुए अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। खैर बात कुछ भी हो कम से कम एक दिन के लिए सही माँ शब्द सोशल मीडिया पर ट्रेंड तो करता है।

 

मदर्स डे दिन अपनी माँओं की खूब सारी तस्वीरें साझा करने वालों की संख्या भले ही बहुत ज्यादा रही हो, लेकिन एक सच यह भी है कि देश में आज में 29 फीसदी से ज्यादा लोग अपने माता पिता को घर में नहीं वृद्धाश्रम में रखना चाहते हैं। हां ये जरूर हो सकता है कि इनमें से कुछ फीसदी पहले ही फोटो खींचकर रख लेते हो ताकि इनके वक्त वेवक्त जरूरत पड़े तो फोटो का सही उपयोग किया जा सकें । हाल ही में किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट को अगर सच माना जाए तो आधुनिकता की दिशा में बढ़ते लोगों के मन में परिवार या फिर बुजुर्ग के सम्मान केवल बताने भर का रह गया है। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 35 फीसदी लोग अपने बुजुर्ग माता पिता की सेवा नहीं करना चाहते है। परोपकारी संगठन हेल्प एज इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि 29 फीसदी लोगों का कहना है कि उनके बुजुर्ग माता पिता के लिए घर से ज्यादा मुफीद जगह वृद्धाश्रम है। सोशल मीडिया पर अपने बुजुर्ग माता पिता को लेकर सजग रहने वालों का एक दूसरा पक्ष भी देखा जाए तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश में घरों में बुजुर्गों के साथ सबसे ज्यादा मारपीट की जाती है। साल 2020 में बुजुर्गों से साथ मारपीट के 7 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं।

मदर्स डे, फादर्स डे, सीनियर सिटीजन डे के अवसर पर फेसबुक, इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया पर प्लेटफॉर्म पर बुजुर्गों के प्रति सच्चा या फिर झूठा सम्मान प्रदर्शन करने वाला दूसरा पक्ष यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्गों को लेकर एक अहम फैसला दिया कि बुजुर्ग माता पिता जवान बच्चों की जिम्मेदारी होते हैं, जब माता पिता अपने बच्चों को काबिल बनाने में अपनी सारी उम्र लगा देते हैं तो फिर बुढ़ापे में बच्चों की जिम्मेदारी बनती है कि वे भी अपने कांपते माता पिता के हाथों को थाम कर उनकी मदद करें। केवल मदर्स डे या फिर फादर्स डे के दिन अपने वर्चुअल दोस्तों के सामने फोटो डालकर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री न कर लें। अगर ऐसा सच में होने लगा तो एक वक्त ऐसा भी होगा जब माता पिता के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए सोशल मीडिया पर कोई खास दिन नहीं मनाया जाएगा। जिस तरह से भगवान का मानने का कोई खास दिन नहीं होता है ठीक वैसे ही जमीन पर माता पिता को याद करने को भी याद करने का कोई खास दिन है तो फिर यह शायद हम सबके लिए ही शर्मनाक है।

 

 

वैभव गुप्ता

वैभव गुप्ता मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम हैं। मूलतः ग्वालियर निवासी गुप्ता ने भोपाल को अपनी कर्मस्थली बनाया और एक दशक से अधिक समय से यहां अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में उल्लेखनीय सेवाएं दी हैं। वैभव गुप्ता राजनीतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर भी नियमित रूप से लेखन कर रहे हैं।

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