नज़रिया

इस असत्य कथा को मनोहर कहानी न समझे मोदी

वो ‘सत्यकथा’ की घनघोर लोकप्रियता (Pouring popularity) वाला समय था। बाद में इस किताब की जगह ‘मनोहर कहानियां’ (Manohar Kahaniyaan) ने ले ली। तब एक ब्याहता की ससुराल में हुई नृशंस हत्या (Brutal murder) का सनसनीखेज किस्सा इन दो में से ही किसी एक पत्रिका (magazine) में पढ़ा था। उसका एक हिस्सा दिमाग में कील की तरह गड़ा रह गया। ससुराल पक्ष में रोजाना उस औरत को बुरी तरह मारा-पीटा जाता था। घर के आगे ही ससुराल पक्ष की रेडियो सुधारने की दुकान थी। जब ब्याहता की पिटाई होती तो दुकान के रेडियो (radio) की आवाज बहुत तेज कर दी जाती थी। ताकि पीड़िता का चीत्कार कोई न सुन सके। ये तमाम खुलासे उस एक खत से हुए, जो उस औरत ने अपने मायके को चोरी-छिपे भेजा था। पत्र अपने ठिकाने पर पहुंचता, उससे पहले ही वह विवाहिता ससुराल में जलाकर मार डाली गई।

बहुत क्षोभ और पीड़ा के साथ यह सब लिख रहा हूं। इसलिए दिमाग एकाग्र नहीं हो पा रहा है। इस उदाहरण के फ्रेम में किस-किस को किस-किस जगह और किस रूप में स्थापित करूं। यह समझना कठिन हो रहा है। ये उस मौजूदा कोरोना काल की सत्यकथा है, जिसे दुर्भाग्य से कुछ लोग मन को सकारात्मक रूप से हर लेने वाली कहानी के रूप में भी पेश करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दशकों पहले निरंतर अमानवीय अत्याचारों से मरने वाली वह औरत आज कई रूपों में हर तरफ दिख रही हैं। उसको मैं लिक्विड मेडिकल आक्सीजन (Liquid medical oxygen) के लिए इधर-से-उधर गुहार लगाते लोगों में देख सकता हूं। उसके उन चीत्कारों को अस्पतालों (Hospitals) में एक अदद पलंग की खातिर स्टाफ के सामने बिलखते मरीजों में भी वह मुझे नजर आने लगी है। अंतिम क्रिया वाले स्थानों पर या फिर अस्पतालों के बाहर कचरे की शक्ल में पटके गए शवों की तस्वीरें भी उसी पूरी घटना के दर्द को फिर से जिंदा कर दे रही हैं। इस मौके पर भी जीवन बचाने वाली दवाओं (drugs) की कालाबाजारी (Black marketing) करने या उनकी जगह नकली सामान बेचने वाले मुझे उस ब्याहता के ससुराल वालों से अलग नहीं दिखते हैं। लेकिन मुझे सबसे बड़ी शिकायत उन लोगों से है, जिनके इशारे पर किसी न दिख रहे रेडियो का शोर बहुत बढ़ा दिया गया है, ताकि कोरोना से प्रभावितों के ये चीत्कार बाहर सुनायी न दे सकें।

पहले लॉकडाउन (Lockdown) के समय और उसके कुछ समय बाद तक मैं इस मामले में नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi government) की कार्यशैली का बड़ा प्रशंसक था। क्योंकि उन्होंने वाकई कोरोना से निपटने के लिए आवश्यक सख्ती और उसके साइड इफेक्ट्स से लोगों को बचाने के लिए जरूरी इंतजाम करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की थी। लेकिन कोविड-19 (covid-19) की दूसरी लहर (Second wave) में मोदी को लेकर मेरे कई भ्रम ध्वस्त कर दिए हैं। मोदी का सबसे बड़ा गुनाह यह कि उन्होंने इस आपदा को अपने हक में अवसर बनाने का कोई भी मौका नहीं चूका। हरकारों ने उन्हें भ्रम में रखा। कहा कि कोरोना पूरी तरह काबू में आ चुका है। यह बिलकुल ‘अश्वत्थामा हतो नरोवा…’ वाली कपटपूर्ण शैली का आधा सच था।





मगर मोदी ने इसे एकदम सच मान लिया तो यह गलती उनकी ही है। सारी दुनिया चेता रही थी, वैज्ञानिक आगाह कर रहे थे, चिकित्सा जगत के दिग्गज फिक्रमंद थे, सबका यही कहना था कि कोरोना फिर पलट वार करेगा। और दुनिया भर में हम ऐसा होते देख भी रहे थे। लेकिन मोदी जी का ध्यान तो कहीं और ही था। उन्होंने इस अवसर को अपनी वैश्विक सुपरमैन की छवि बनाने की कोशिश के लिए इस्तेमाल कर लिया। दोनों हाथों से आक्सीजन सहित कोरोना से लड़ने के जरूरी दवाओं (Essential medicines) और उपकरणों को ‘दान’ करने के काम में लग गए। 135 करोड़ की आबादी को छोड़ मोदी दुनिया की साढ़े 7 अरब आबादी की चिंता में डूब गए। सारी दुनिया के सामने ‘मैं हूँ ना’ वाली इमेज बनाने में लग गए। इससे हुआ यह कि जब कोरोना की दूसरी लहर भारी मारक क्षमता लेकर आयी तो अपना देश ही आवश्यकता की चीजों के लिए दुनिया के सामने भिखारी बन गया। मोदी दानवीर करण बनने चले थे और इस फेर में सारा का सारा देश किसी अभिमन्यु (Abhimanyu) की तरह अभेद्य चक्रव्यूह में फंसा तड़प रहा है। यह स्पष्ट है कि वैक्सीन कोरोना से बचाव का एक महत्वपूर्ण साधन हैं तो पहले देश की चिंता करने की बजाय दुनिया भर में बांट दी। अब 1 मई से 18 से 45 साल के लिए वैक्सीन लगवाने का एलान तो कर दिया पर हालत यह है कि देश में इतनी वैक्सीन ही उपलब्ध नहीं है। और ना ही तत्काल इसका उत्पादन संभव है। एक नई आपाधापी की तैयारी हो गई यह।

किसी जरूरतमंद की मदद करना किसी भी तरह से गलत नहीं है। किन्तु मोदी ने जिस तरह आने वाले कल की चिंता न करते हुए आज अपने पास मौजूद सभी-कुछ लुटा देने की नादानी की, उसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। और फिर इस रौ में जिस तरह की एक भीषण गलती मोदी ने की, वो तो समूची भाजपा के राष्ट्रवाद को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर रही है। प्रधानमंत्री (Prime minister) ने अपना घर फूंक कर पकिस्तान को भी मदद की पेशकश कर दी। यानी खुद को महान बताने के लिए वे सांप को भी दूध पिलाने पहुच गए। ऐसा किसी अधिकार संपन्न खांटी भाजपाई ने पहली बार नहीं किया है। नेहरू जी का विश्व नेता बनने का कीड़ा मौका मिलने पर भाजपा के हर नेता को काटता रहा है। अस्सी के दशक में जनता पार्टी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो वे भी पकिस्तान से संबंध सुधारने पर आमादा थे।





जब उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला तो पहली फुर्सत में फिर वे भी इसी काम में जुट गए। लेकिन दोनों ही मौकों पर उन्होंने मुंह की खाई। प्रधानमंत्री बनने के फेर में भाजपाई हिन्दूत्व के प्रणेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) के भीतर के संघी को तो न जाने क्या हो गया था कि वह पाकिस्तान (Pakistan) जाकर मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) को महान धर्मनिरपेक्ष कह आये थे। मोदी की शुरूआत भी नवाज शरीफ (Nawaz sharif) से साथ प्रेम की पीगें बढ़ाने से शुरू होती है। तो क्या सत्ता में आने के बाद भाजपाइयों के लिए भी राष्ट्रवाद (Nationalism) की परिभाषा किसी बौखलाहट में बदल जाती है? सबसे पहले राष्ट्र की चिंता की करने के बजाय दुनिया की चिंता इन्हें क्यों सताने लगती है। पता नहीं। और अब जबकि ये सब कोरोना काल में भी किया जा रहा है तो एक और सवाल उठ रहा है। वह यह कि क्या मोदी ने किसी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार (International award) को पाने की कोशिशों के तहत देश की बहुत बड़ी आबादी की जान और सेहत के साथ इतना बड़ा समझौता कर लिया है?

मोदी का प्रचार तंत्र बहुत ताकतवर है। वह हर हाल में मोदी के यशोगान वाले रेडियो का वॉल्यूम फुल (Volume full) करके कोरोना (corona) से बिलख रही आबादी के शोरोगुल को दबा देगा। लेकिन इसी रेडियो पर एक दिन तो वह फ्रीक्वेंसी भी मैच होकर ही रहेगी, जिसके बाद उसमें आवाज के तौर पर आगामी किसी आम चुनाव से जुड़े समाचार होंगे और तब ये रेडियो जो बोलेगा, उस कड़वे सच को दबाने के लिए कोई भी और वॉल्यूम बढ़ाने की आपकी क्षमता ही नहीं रहेगी। अपने प्रचार में इस्तेमाल की जा रही सरासर असत्य कथा को देश की आम जनता के लिए मन को हर लेने वाली कहानी मत समझिये प्रधानमंत्री जी।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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