विश्लेषण

मोदी बनकर उभरे ‘पुष्टिकरण’ के नायक

संसद के इस सत्र के दौरान किसी नीतिगत विषय पर आप जिस दृश्य की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, वह दृश्य सोमवार को देखने को मिल गया। सारा का सारा विपक्ष केंद्र सरकार (central government) की हां में हां मिलाता नजर आया। लेकिन यह केंद्र के लिए भाईचारा नहीं था। सच तो यह है कि विपक्ष के पास ऐसा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। मामला ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) पर संविधान संशोधन से जुड़ा हुआ है। वह संशोधन, जिसके जरिए राज्यों को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह अपने-अपने स्तर पर इस वर्ग हेतु आरक्षण लागू कर सकते हैं। अब किसी की शामत तो आयी नहीं है कि इस विधेयक का विरोध कर स्वयं को पिछड़े वर्ग का विरोधी कहलवाए। किसी को राजनीतिक रूप से आत्महत्या (political suicide) करनी हो तो वह बेशक ऐसा कर लेगा, मगर होशो-हवास में तो किसी के ऐसा करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

इस तरह मोदी बड़ी सफाई के साथ आरक्षण और खासकर ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा-विरोधी प्रचार अभियान (anti-BJP campaign) की हवा निकालने में सफल हो गए हैं। भविष्य में उनकी सरकार और पार्टी, दोनों ही इस विषय को ‘पिछड़ों के लिए ऐतिहासिक’ बताते हुए इस वर्ग के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ेंगे। बची-खुची कसर तो भाजपा पहले ही इस बात को प्रचारित करके कर चुकी है कि यदि प्रधानमंत्री रहते हुए जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने जाति-आधारित जनगणना में अड़ंगा न लगाया होता तो ओबीसी वर्ग के कल्याण की कोशिशों में यूं बाधाएं नहीं आतीं। मूल विषय से हटकर एक बात कही जा सकती है। वह यह कि नेहरू का इस देश के लिए योगदान बहस का विषय हो सकता है, किन्तु भाजपा के लिए वे बेशक उसकी नाकामियों को छिपाने के लिए इतिहास में अनेकानेक योगदान का बंदोबस्त कर गए हैं।

जात को लेकर घात लगाने वालों से बचकर निकलना बड़ी चुनौती होती है। आरक्षण को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) के एक कथन को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया था कि बिहार के चुनाव में जातिवादी राजनीति के पुरोधा लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने उसे अपने पक्ष में बखूबी भुना लिया था। आज उसी कास्ट पॉलिटिक्स के जरिये मोदी ने विपक्ष के हाथ से एक बहुत बड़ा मुद्दा छीन लिया है। आने वाले लंबे समय तक जब भी किसी न्यूज चैनल पर पिछड़े वर्ग को लेकर बहस होगी, तब UPA की तत्कालीन सरकार में शामिल रहे तमाम भाजपा-विरोधी दलों के नेता इस सवाल का जवाब देने में असहज होते रहेंगे कि क्यों नहीं उन्होंने अपनी सरकार के समय मोदी (MODI) जैसा कदम उठाकर OBC वर्ग की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त किया था? और कांग्रेस से तो यह सवाल आसानी से पूछा जा सकता है कि आखिर पचास साल देश पर राज करने के दौरान ऐसा कोई कदम वो क्यों नहीं उठा पाई। आप भले ही शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस सरकार (Congress government) के संविधान संशोधन को तुष्टिकरण की राजनीति से जोड़ लें, लेकिन ओबीसी को लेकर मोदी सरकार अपने घोरतम विरोधी दलों की भी रजामंदी से जो करने जा रही है, वह किसी तुष्टिकरण की बजाय वंचित वर्ग के ‘पुष्टिकरण’ के तौर पर याद किया जाएगा।

इस कदम का व्यापक असर देखन को मिलेगा। अब महाराष्ट्र में मराठा (Maratha in Maharashtra), हरियाणा में जाट (Jats in Haryana), गुजरात में पटेल (Patel in Gujarat) और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय (Lingayat community in Karnataka) को खुश करने जैसे फैसलों लेने में राज्य सरकारों को आसानी हो जाएगी। इसका सभी दल अपने-अपने हिसाब से लाभ लेने का कोई मौका नहीं गवाएंगे। महाराष्ट्र की सड़कों पर मराठा आरक्षण और गुजरात में हार्दिक पटेल (Hardik Patel) के आंदोलन दिखा चुके हैं कि ओबीसी राजनीति किस तरह एक राज्य के जरिये केन्द्रीय राजनीति तक को प्रभावित करने में सक्षम है। कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव में तो तमाम दल लिंगायत और गैर-लिंगायत के बीच चकरघिन्नी बनकर रह गए थे। अब लोकसभा में पेश विधेयक के कानून बनने के बाद देश की राज्यों से लेकर शीर्ष तक की सियासत में कौन से नए अध्याय शुरू होंगे, यह देखना रोचक होगा।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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