सियासी तर्जुमा

 सरगुजा वाली सरकार ज्यादा असरकारी नहीं !

सियासी तर्जुमा : कम से कम आज की तारीख में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह (Brahaspati Singh) की कोई बड़ी हैसियत नहीं है। वह खुद भी इस तथ्य को जानते हैं। इसलिए पहले वह तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi) की चिलम भरते रहे और अब यही काम वह मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के लिए कर रहे हैं। हां, बघेल की अपनी स्थापित हैसियत है। अजीत जोगी को जिस बारीकी के साथ उन्होंने कांग्रेस से काटकर अपने रास्ते का कांटा निकाला था, वह उनकी राजनीतिक चतुराई का पुख्ता प्रमाण है। इन्हीं बृहस्पति सिंह  ने पूरी ताकत से भूपेश बघेल के दरबार में स्वयं को साष्टांग समर्पित करते हुए अपने नव-नियुक्त सियासी गुरू बघेल को गुरू दक्षिणा भी अर्पित कर दी है। और संयोग से ये हुआ भी इस साल की गुरू पूर्णिमा पर ही। सिंह ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (TS Singh Deo) को निशाने पर ले लिया। आरोप लगाया कि सिंहदेव ने उनके काफिले पर हमला करवाया है। यह  भी कहा कि सिंहदेव उनकी जान ले सकते हैं।

सिंहदेव को जो भी जानता है, उसे पता है कि अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा आचार-विचार के चलते वह बृहस्पति के बारे में शायद ही कभी सोचते भी होंगे। हमला करवाना या जान लेने की साजिश तो बहुत दूर की बात है। राजे-रजवाड़ों का दौर बीतने के बाद से खारून नदी (Kharun River) में असंख्य गैलन पानी बह चुका है। लेकिन सरगुजा राजघराने की अघोषित बादशाहत आज भी इस राज्य में बरकरार है। वैसे यदि एक तरफ बघेल हों और दूसरे सिरे पे सिंहदेव, तो बृहस्पति सिंह की उपस्थिति कोई मायने नहीं रखती। किन्तु फिलहाल बृहस्पति वहां मौजूद हैं। उन्होंने सिंहदेव पर आरोप लगाकर मुख्यमंत्री के प्रति चल रही विशुध्द चमचत्व की प्रतियोगिता में खुद को काफी आगे कर लिया है। इस विधायक ने कुछ ही दिन पहले बघेल को आगे के 25 साल का भी मुख्यमंत्री बताया था। अब हमले की किसी भी तरह गले के नीचे न उतरने वाली थ्योरी को उन्होंने इसी तारीफ़ से जोड़ दिया है। बृहस्पति ने कहा कि मुख्यमंत्री की प्रशंसा में उनकी बातें सुनकर ही सिंहदेव उनसे नाराज चल रहे हैं। मजे की बात यह कि जिस हमले की बृहस्पति बात कर रहे हैं, वह मारपीट का मामला है। यह मारपीट भी घटनास्थल से बृहस्पति सिंह के काफिला सहित चले जाने के बाद हुई थी।

सिंहदेव वाकई किस्मत के किसी विचित्र पड़ाव पर हैं. बीते विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने सबसे पहले सीनियर लेवल पर मात खाई। लाख कोशिश के बावजूद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया। हाल ही में सिंहदेव को बराबरी से ज़रा ऊंचे वाले स्तर से चोट मिली। बीच में उन्होंने कोशिश की थी कि सरकार का ढाई साल का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद अब उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए। लेकिन बघेल ने ऐसा होने नहीं दिया। अब स्वास्थ्य मंत्री की सियासी सेहत को एक अदने-से विधायक ने बिगाड़ रखा है। हो सकता है कि  कांग्रेस के इस राज्य के प्रभारी पीएल पुनिया आज इस मामले का कोई हल निकाल दें, किन्तु वह भी इस विवाद का हल नहीं निकाल सकेंगे, यह तय है।





अजीत जोगी अपने जीवन काल में छत्तीसगढ़ की राजनीति के चाणक्य बनने के काफी करीब पहुंच चुके थे। लेकिन बघेल ने एन मौके पर उनके विजय रथ का पहिया तोड़ दिया। जो जोगी सोनिया गांधी को विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए राजी बताने के बाद भी मजबूती से कांग्रेस में जमे रहे थे, उन्हीं जोगी को बघेल की राजनीतिक चालों ने पार्टी से चलता कर दिया। जोगी के अवसान के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने में नाकाम बेटे अमित जोगी (Amit Jogi) भी मन मसोस कर देख रहे हैं कि किस तरह उनकी पार्टी ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़-जे” (JCC-J) की नैया में भी बघेल ने छेद कर दिया है। इस पार्टी के दो विधायक, प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह, किसी भी समय कांग्रेस में वापसी की पूरी तैयारी कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ में जिस तोड़-फोड़ की राजनीति को अजीत जोगी ने शुरू किया था, आज उसी फसल को उनके बेटे काटने को मजबूर दिख रहे हैं।

इस सब के बीच सौ टके का सवाल यह कि सिंहदेव का अगला कदम क्या होगा? उन्होंने मंगलवार को खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया। बृहस्पति के आरोप के जवाब में विधानसभा से बाहर जाकर सिंहदेव ने ऊपर तक यह सन्देश दिया कि वे ‘उच्च स्तरीय’ कारणों से नाराज हैं। हालांकि उनकी इस नाखुशी के और बढ़ने की सूरत में भी फिलहाल तो बघेल पूरी तरह सुरक्षित नजर आते हैं। राज्य की 90 सदस्यों वाली विधानसभा में बघेल के समर्थकों की पर्याप्त संख्या है। यह संख्या इतनी अधिक है कि यदि सिंहदेव बगावती तेवर अपनाएंगे और इसमें भाजपा भी उनका साथ दे दे, तब भी भूपेश बघेल के लिए कोई विपरीत परिस्थिति नहीं बन सकेगी। इस पर यह फैक्टर भी गौरतलब है कि सिंहदेव के समर्थक विधायक भी ढाई साल के इंतज़ार के बाद कमजोर पड़ने लगे हैं। ऐसे में अपने नेता के हक़ में अब यह गुट कितना और आगे जा सकेगा, यह देखने वाली बात होगी। कम से कम आज तो सरगुजा (Sarguja House) वाली सरकार ज्यादा असरकारी नहीं दिख पा रही है।

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