मध्यप्रदेश

मैहर का मतलब है मां का हार,जानें विश्व प्रसिद्ध मैहर स्थित मां शारदा देवी का इतिहास

मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर देवी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। मां के इस मंदिर को शारदा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। देशभर में देवी शारदा का यह एक मात्र मंदिर है। पहाड़ की चोटी पर स्थित मैहर देवी का यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए देश-दुनिया में जाना जाता है. भक्त यहां 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर भी कहा जाता है। यहां माता के साथ देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, श्री काल भैरवी, भगवान, फूलमति माता, ब्रह्म देव, हनुमान जी और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

पुजारी से पहले कौन करता है पूजा
शारदा माता मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर के पट बंद हो जाने के बाद जब पुजारी पहाड़ से नीचे चले आते हैं और वहां पर कोई भी नहीं रह जाता है तो वहां पर आज भी दो वीर योद्धा आल्हा और उदल अदृष्य होकर माता की पूजा करने के लिए आते हैं और पुजारी के पहले ही मंदिर में पूजा करके चले जाते हैं. मान्यता है कि आल्हा-उदल ने ही कभी घने जंगलों वाले इस पर्वत पर मां शारदा के इस पावन धाम की न सिर्फ खोज की, बल्कि 12 साल तक लगातार तपस्या करके माता से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था. मान्यता यह भी है कि इन दोनों भाइयों ने माता को प्रसन्न करने के लिए भक्ति – भाव से अपनी जीभ शारदा को अर्पण कर दी थी, जिसे मां शारदा ने उसी क्षण वापस कर दिया था.

अपनी जीभ काटकर मां को चढ़ा दी थी
यह भी कहा जाता है कि आल्हाच और ऊदल ने देवी मां को प्रसन्नस करने के लिए अपनी जीभ काटकर उन्हेंा अर्पित कर दी थी. तब मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्नआ होकर उनकी जीभ फिर से जोड़ दी थी. इस मंदिर में मां के दर्शन करने के लिए 1001 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों से यहां रोपवे सुविधा भी शुरू हो चुकी है और तकरीबन 150 रुपये में भक्तक इस सुविधा का उपयोग कर सकते हैं.
बुद्धि की देवी हैं मां शारदा
सनातन परंपरा में मां शारदा को विद्या, बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है. परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे छात्र मां शारदा का विशेष आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं. मां शारदा की सच्चे मन से पूजा करने वाले साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती. मां शारदा की कृपा से वह हमेशा तमाम प्रकार के भय, रोग आदि तमाम प्रकार की व्याधियों से भी बचा रहता है. लगभग 600 फुट की ऊंचाई वाले इस शक्तिपीठ में माता के दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर की 1001 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. हालांकि आप चाहें तो रोपवे से भी वहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं.

 

यहां कुश्ती लड़ते थे दोनो भाई
मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है। तालाब से 2 किलोमीटर आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में ये मान्यता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे। मंदिर के पीछे वाले तालाब को आल्हा तालाब कहा जाता है।

देवी शारदा के साथ इनकी भी होती है पूजा
देवी का यह विशेष मंदिर त्रिकुट पर्वत की चोटी पर मध्य भाग में स्थित है जहां देवी शारदा के अतिरिक्त देवी काली, दुर्गा मां, गौरी शंकर, फूलमति माता, काल भैरवी, शेषनाग, जलपा देवी व ब्रह्म देव की भी पूजा होती है।
योद्धा आल्हा का विशेष स्थान
मैहर देवी मंदिर के पीछे यहां आल्हा का तालाब भी है। वह एक योद्घा थे। मंदिर से 2 किमी आगे एक आखाड़ा है। माना जाता है कि यहां आल्हा अपने भाई उदल के साथ कुश्ती किया करते थे। मैहर देवी को शारदा माई कहे जाने के पीछे भी एक रहस्य है। मान्यता है कि वीर आल्हा देवी को शारदा माई के नाम से पुकारता था। तभी से मैहर देवी को शारदा माई व शारदा देवी के नाम से जाना जाता है।
ऐसे हुई मंदिर की खोज
स्थानीय लोगों के अनुसार योद्धा आल्हा और उदल ने राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्घ किया था। इसी दौरान उन्होंने मंदिर की खोज की थी। मान्यता है कि आल्हा ने मंदिर में 12 साल तक तप किया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। मान्यता है कि आल्हा और उदल दोनों 900 साल से आज भी जीवित है। कई लोगों का मानना है कि आज भी ये योद्घा मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही मां के दर्शन कर लेते हैं। पट खुलने पर मंदिर के फर्श पर जल व देवी पर फूल अर्पित हुए दिखते है।
ऐसे क्रोध में खुला शिव का तीसरा नेत्र
जब दक्ष द्वारा शिव को नहीं बुलाया गया तो यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता से शंकर जी को आमंत्रित नहीं करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष द्वारा भगवान शंकर को अपशब्द कहा गया। ये बात सती को अपमानित लगी और उन्होंने दुखी होकर यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। जब भगवान शंकर को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका त्रिनेत्र खुल गया।

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