विश्लेषण

केरल का संग्राम: चार दशक पुरानी पंरपरा को तोड़ने बेताब एलडीएफ!

  • सत्ता परिवर्तन की परंपरा को दोहराने राहुल-प्रियंका उतरे चुनावी रण में

नई दिल्ली। केरल विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टियों की अगुवाई वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच कांटे का मुकाबला होता नजर आ है। यहां हर पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन की परंपरा 1980 से चल आ रही है। ऐसे में सत्ताधारी एलडीएफ इस बार अपनी जीत के साथ केरल की सियासत में चार दशक पुराने रिकार्ड को तोड़ने के लिए बेताब है। वहीं, सत्ता परिवर्तन की परंपरा को दोहराने के लिए कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है और राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक चुनावी रण में उतर चुके हैं। ऐसे में देखना है कि इस बार केरल अपना इतिहास दोहराता है या फिर सियासत की नई इबारत लिखी जाएगी?

केरल विधानसभा चुनाव 140 सीटों पर 6 अप्रैल को वोटिंग होनी है। ऐसे में एलडीएफ और यूडीएफ के साथ-साथ बीजेपी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। केरल में 1980 के बाद से सत्ता पर काबिज होने के बाद किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन को लगातार दोबारा जीत नहीं मिली है। एक तरह से यहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है। सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली एलडीफ और कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ ने अलग-अलग कार्यकालों में राज्य में 3 दशक तक शासन किया है।

किस गठबंधन के साथ कौन पार्टी
कांग्रेस के अगुवाई वाले युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट में यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (जोसेफ) आरएसपी, केरला कांग्रेस (जैकब) सीएमपी (जे) भारतीय नेशनल जनता दल और आॅल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक शामिल हैं। लेफ्ट की अगुवाई वाले एलडीएफ में सीपीएम, सीपीआई, जेडीएस, एनसीपी, केरला कांग्रेस (एम), केरला कांग्रेस (सकारिया थामस), कांग्रेस (सेक्युलर), जेकेसी, इंडियन नेशनल लीग, केरला कांग्रेस (बी) जेएसएस और लोकतांत्रिक जनता दल हैं। वहीं, एनडीए में बीजेपी और भारतीय धर्म जनसेना पार्टी शामिल है।

कांग्रेस केरल की सत्ता में वापसी कर पाएगा?
केरल में असल लड़ाई सीपीआई की अगुवाई वाले एलडीएफ और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ के बीच है। दोनों ही गठबंधनों के बीच पांच-पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन होता रहता है। इसीलिए कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि इस बार उनकी सत्ता में वापसी हो सकती है। कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी अकेले पार्टी के विश्वसनीय चेहरे के तौर पर मोर्चा संभाल रहे थे, लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस के चुनाव अभियान में उत्साह की कमी साफ दिख रही थी। इसी दौरान चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में एलडीएफ के सत्ता में लौटने के अनुमानों ने कांग्रेस में अंदरूनी मायूसी का माहौल बढ़ा दिया था।

कांग्रेस की हालत को देखते हुए राहुल गांधी सहित पूरी कांग्रेस पार्टी ने अपनी पूरी सियासी ताकत केरल में लगा रखी है। ऐसे में राहुल गांधी ने बीते कुछ दिनों में अपनी चुनावी रैलियों, नुक्कड़ सभाओं, रोड शो और युवा छात्रों से सीधा संवाद कर अचानक पार्टी के चुनाव अभियान में करंट ला दिया है। राहुल के चुनाव अभियानों से अब इस डांवा-डोल नैया को पतवार तो मिल गई है, लेकिन यह कांग्रेस सत्ता के किनारे तक पहुंचएगी इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।





राहुल गांधी के सामने साख बचाने की चुनौती
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पांच राज्यों के चुनाव में सबसे ज्यादा फोकस केरल में लगा रखा है। अमेठी से हार के बाद राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं और वहां इस बार एलडीएफ सरकार के खिलाफ सत्ता परिवर्तन ना सिर्फ कांग्रेस के जीवन के लिए भी जरूरी है, बल्कि खुद राहल के सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए भी अहम है। कांग्रेस की सूबे में जीत से एक ओर उनकी राजनीतिक क्षमता पर सवाल उठाने वाले आलोचकों को जवाब मिल सकता है तो दूसरी तरफ पांच राज्यों के चुनाव के बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव में उनकी दावेदारी को मजबूती मिलेगी। इसीलिए राहुल ने ने केरल में लेफ्ट फ्रंट के साथ दो-दो हाथ करते नजर आ रहे हैं।

 

यह भी पढ़ें: पाक प्रेम पर स्वामी का तंज: कहा- इमरान संग मोदी लंदन में करेंगे डिनर

 

राहुल अपने चुनाव अभियान में एलडीएफ सरकार को विशेष रूप से बड़े घोटालों पर घेर रहे हैं। चाहे सोने की तस्करी हो या अमेरिकी कंपनी के साथ डी सी फिशिंग का कांट्रैक्ट। कोच्चि से इरनाकुलम और कोट्टायम से इडुक्की तक चुनावी रैलियों में राहुल ने एलडीएफ सरकार को घेरते हुए कहा था कि रंगे हाथ उनकी चोरी पकड़ी गई है। मछुआरा समुदाय उन्हें माफ नहीं करेगा। राहुल अपने आक्रामक अभियानों के जरिए मछुआरा वर्ग को एलडीएफ के खिलाफ लामबंद करने में जुटे हैं ताकि अपनी सियासी नैया पार लगाई जा सके।

लेफ्ट के सामने 40 साल के रिकार्ड तोड़ने की चुनौती
वहीं, लेफ्ट फ्रंट के सामने केरल की सियासत में चार दशक की परंपरा को तोड़ने की चुनौती है। वो एक बार फिर से सत्ता में वापसी की उम्मीद जता रही है। चुनाव पूर्व सर्वे में भी एलडीएफ की सत्ता में वापसी को दिखाया है, जिससे लेफ्ट पार्टियों के हौसले बुलंद हैं। राहुल की सक्रियता को देखते हुए अब लेफ्ट ने उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री पिनराई विजियन अपने पांच साल के विकास कार्यों पर वोट मांग रहे हैं। लेफ्ट का कहना है कि एलडीएफ सरकार ने केरल में काम किया है जिसके आधार पर वोट मिलेगा। 2016 में एलडीएफ को 91 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार विजयन सरकार क्या बहुमत हासिल कर पाएगी?





कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा किसे
एलडीएफ गठबंधन ने एक तरफ आक्रामक प्रचार अभियान तेज कर रखा है तो कांग्रेस में गुटबाजी का फायदा उठाने की रणनीति भी है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार है, जिसके चलते पार्टी ने किसी को भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। इस सबके बावजूद चुनाव प्रचार के बीच पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के इस्तीफों से कांग्रेस को झटका लगा है। इनमें वरिष्ठ नेता पीसी चाको, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष ललिता सुभाष और प्रदेश उपाध्यक्ष केसी रोजाकुट्टी सहित कई नेता शामिल हैं। ऐसे में वाममोर्चा कांग्रेस के गुटबाजी को अपना चुनावी हथियार बना रही है।

केरल में बीजेपी कितना मजबूत
केरल में बीजेपी भले ही बहुत बड़ा करिश्मा अभी तक न दिखा पाई हो, लेकिन पार्टी का वोट लगातार बढ़ा है। यही वजह है कि बीजेपी ने इस बार पूरी दम खम के साथ केरल की चुनावी जंग फतह करने उतरी है। देशभर में मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने बीजेपी का दामन थामकर केरल के सियासी रण में उतरे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार केरल में चुनावी प्रचार अभियान की कमान संभाल रखा है। बीजेपी ने केरल में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया है, जो हिंदुओं के साथ-साथ ईसाई समुदाय को भी साधने की रणनीति मानी जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केरल चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था।

Web Khabar

वेब खबर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button