जानिए क्यों हर शुभ कार्य से पहले की जाती है गणेश पूजा

हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम करने से पहले लोग अक्सर पूजा पाठ करते हैं। ताकी काम में कोई बाधा ना आए और पूजा में सबसे पहले भगवान गणेश (Lord Ganesha) को पूजा जाता है। शादी-विवाह हो या मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश हों या माता की चौकी सभी शुभ कार्यों से पहले गणेशजी को पूजा जाता है। पंडित किसी भी काम का शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। यानी हर अच्छे काम की शुरूआत भगवान गणेश का नाम लेकर ही की जाती है । लेकिन ऐसा क्यों होता है इसका जवाब बहुत कम ही लोग जानते हैं? दरअसल इसके पीछे मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से किसी भी शुभ कार्य में कोई विघ्न, बाधा नहीं आती है। जो कार्य आप कर रहे हैं, वह सकुशल संपन्न होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है…
गजानन के प्रथम पूज्य होने की कहानी
शिव पुराण (Shiva Purana) के अनुसार एक बार सभी देवताओं में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि आखिर किन भगवान की पूजा सबसे पहले की जाए। इसको लेकर विवाद काफी आगे बढ़ता चला गया। सभी देवता खुद को सर्वेश्रेष्ठ बता रहे थे। इसी दौरान नारद जी वहां पहुंचे और पूरी स्थिति समझी। नारद जी ने सभी देवताओं से कहा कि यदि इस मामले को सुलझाना है तो उन्हें शिव भगवान (lord shiva) की शरण में जाना चाहिए। जब सारे देवता भगवान शिव के पास पहुंचे तो उन्होंने इस विवाद को खत्म करने के लिए एक युक्ति निकाली। शिवजी ने कहा कि वे जल्द ही इस पूरे मामले को एक प्रतियोगिता के जरिए से सुलझाएंगे।
देवताओं के मध्य हुई प्रतियोगिता
भोलेनाथ ने सभी देवताओं के मध्य एक प्रतियोगिता का आयोजन किया, इसमें सभी देवताओं को आदेश दिया गया कि वे सभी अपने वाहन में सवार हो जाएं। आदेश मानने के बाद उन्हें ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाकर आने को कहा गया। शिवजी ने कहा, ‘जो देवता ब्रह्माण्ड (universe) का चक्कर लगाने के बाद सबसे पहले यहां पहुंचेगा, उसी की इस प्रतियोगिता में जीत होगी। वह देवता ही आगे सबसे पहले पूजा जाएगा।’ प्रतियोगिता की शुरुआत होते ही सभी देवता इस प्रतियोगिता को जीतने के इरादे से अपने वाहन में सवार हुए और ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े।
गणेशजी ने किया ऐसा
सभी देवताअपने-अपने वाहन पर सवार होकर ब्रह्मांड ब्रह्माण्ड की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। इसी दौरान भगवान गणेश के वाहन मूषक (mouse) की गति बहुत धीमी थी, जिस वजह से उन्होंने अपनी बुद्धि-चातुर्य का परिचय देते हुए अपने वाहन मूषक पर सवार नहीं हुए। वह ब्रह्मांड का चक्कर लगाने की बजाए अपने माता-पिता के चारों ओर परिक्रमा करने लगे। उन्होंने माता-पिता के चारों ओर 7 बार परिक्रमा की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। गणेश के इस बुद्धि-चातुर्य और मातृ-पितृ भक्ति को देखकर त्रिदेव ने उन्हें आशिर्वाद दिया और देवताओं में प्रथम पूज्य माना।
जब देवतागण वापस लौटे तो
जब सभी देवगण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर भगवान शिव-पार्वती के पास पहुंचे, तो उन्होंने गणेशजी को वहीं खड़ा हुआ पाया। तब भगवान शिवजी ने फौरन गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया इस बात को सुनकर सभी देवता और गणेश जी के भाई कार्तिक अचंभित हुए. सबने कारण जानना चाहा। इसपर भगवान शिव ने सभी को बताया कि इस संसार में माता-पिता को समस्त ब्रह्माण्ड एवं लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। माता के चरणों में ही समस्त संसार का वास होता है। इसी वजह से गणेश ने अपने माता-पिता के ही चक्कर लगाए और इस प्रतियोगिता में विजयी हुए। तभी से गणेश जी को सर्वप्रथम पूज्य माना जाने लगा।