जानिए कब है उत्पन्ना एकादशी,भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यूं करें पूजा
हिंदी पंचाग के अनुसार हर माह दो एकादशी (Ekadashi 2021) मनाई जाती है और ये अलग-अलग नामों से जानी जाती है हर एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है। मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस साल उत्पन्ना एकादशी 30 नवंबर के दिन पड़ रही है। इस दिन भगवान विष्णु (lord Vishnu) की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. उत्पन्ना एकादशी को कन्या एकादशी (Kanya Ekadashi 2021) के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन माता एकादशी ने दैत्य मुर का वध किया था। अन्य एकादशी व्रत की तरह उत्पन्ना एकादशी उपवास रखने के कुछ नियम है। जिनका पालन करना जरूरी है। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त, व्रत नियम और पूजा विधि।
एकादशी पर बन रहे हैं खास योग
एकादशी की रात 12 बजकर 3 मिनट तक आयुष्मान योग रहेगा | भारतीय संस्कृति में किसी की लंबी आयु के लिए उसे आयुष्यमान भव: का आशीर्वाद देते हैं | इस योग में किए गए कार्य लंबे समय तक शुभ फल देते रहते हैं | इस योग में किया गया कार्य जीवन भर सुख देने वाला होता है। इसके साथ ही देर रात 2 बजकर 13 मिनट से शुरू होकर 1 दिसंबर की सूर्योदय तक द्विपुष्कर योग रहेगा| माना जाता है कि द्विपुष्कर योग में कोई भी काम करने से दो गुना फल मिलता है |
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
मान्यता है कि जो मनुष्य उत्पन्ना एकादशी का व्रत पूरे विधि- विधान से करता है, वह सभी तीर्थों का फल व भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है। व्रत के दिन दान करने से लाख गुना वृद्धि के फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति निर्जल संकल्प लेकर उत्पन्ना एकादशी व्रत रखता है, उसे मोक्ष व भगवान विष्णु की प्राप्ति होती है। ये व्रत रखने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान आदि करने से भी ज्यादा पुण्य मिलता है।
उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि (Utpanna Ekadashi Puja Vidhi 2021)
एकादशी के व्रक की शुरुआत दशमी के दिन सूर्योस्त के बाद से हो जाती है। जातक को शाम के बाद कुछ नहीं खाना होता। एकादशी के दिन भूखे-प्यासे रहकर व्रत किया जाता है और द्वादशी के दिन हरि वासर समाप्त होने पर ही व्रत का पारण किया जाता है। एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
एकादशी के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठें और भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। फिर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके बाद आमचन कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें और सबसे पहले सूर्य भगवान को जल अर्पित करें। फिर भगवान श्रीविष्णु की पूजा पीले पुष्प, पीले फल, धूप, दीप तुलसी दल से करें। और आखिर में आरती-अर्चना कर पूजा संपन्न करें। दिनभर निराहार व्रत करें। अगर व्रती चाहे तो फल और जल का एक बार सेवन कर सकते हैं। अगले दिन पूजा पाठ करने के बाद ही व्रत पारण करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त:
उत्पन्ना एकादशी तिथि: 30 नवंबर 2021, मंगलवार, सुबह 04.13 मिनट से शुरू
– उत्पन्ना एकादशी समापन: 1 दिसंबर 2021, बुधवार, मध्यरात्रि 02.13 मिनट तक
– पारण तिथि हरि वासर समाप्ति: 1 दिसंबर, सुबह 07.37 मिनट तक
उत्पन्ना एकादशी व्रत नियम
उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत रखना चाहिए। वह विधि-विधान से पूजा की जाती है। यह उपवास दो प्रकार से रखा जाता है। पहले निर्जला और दूसरा फलाहरी।