धर्म

जानें कब है सावन का शीतला सप्तमी व्रत,बीमारियों से मुक्ति चाहते हैं, तो करें ये उपाय

इस साल सावन मास की शीतला सप्तमी व्रत (Sheetala Saptami Vrat) 30 जुलाई को है। इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है। साल में कई तिथियां ऐसी होती हैं जो हर महीने आती हैं, लेकिन कुछ महीनों में उनका महत्व काफी ज्यादा हो जाता है। सावन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी व्रत का पालन किया जाता है। शीतला सप्तमी व्रत से घर में सुख, शांति बनी रहती है साथ ही साथ रोगों से मुक्ति निजात मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार मां शीतला दुर्गा मां पार्वती का ही अवतार हैं। ये प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक हैं। इन्हीं की कृपा से देह अपना धर्माचरण कर पाता है बगैर शीतला माँ की अनुकम्पा के देह धर्म संभव ही नहीं है। आदिकाल से ही श्रावण कृष्ण सप्तमी को महाशक्ति के अनंतरूपों में से प्रमुख शीतला माता की पूजा-आराधना की जाती रही है। इनकी आराधना दैहिक तापों ज्वर, राजयक्ष्मा, संक्रमण तथा अन्य विषाणुओं के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाती हैं, विशेषतः ज्वर, चेचक, कुष्टरोग दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे तथा अन्य चर्मरोगों से आहत होने पर माँ की आराधना इना रोगों से मुक्त कर देती है यही नहीं व्रती के कुल में भी यदि कोई इन रोंगों से पीड़ित हो तो माँ शीतलाजनित ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं।

मंत्र से सभी संकटों से मुक्ति
माँ का यह पौराणिक मंत्र ‘ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः’ भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है। जो भी भक्त शीतला माँ की नित्यप्रति आराधना करते हैं माँ उन पर अनुग्रह करती हुई उनके घर-परिवार की सभी विपत्तिओं से रक्षा करती हैं। माँ का ध्यान करते हुए शास्त्र कहते हैं कि, ‘वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् || अर्थात- मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।

इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश में सभी तैतीस करोड देवी देवाताओं का वास रहता है अतः इसके स्थापन-पूजन से घर परिवार समृद्धि आती है। पुराणों में इनकी अर्चना का स्तोत्र ‘शीतलाष्टक’ के रूप में प्राप्त होता है, इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने जनकल्याण के लिए की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। इनकी आराधना मध्य भारत एवं उत्तरपूर्व के राज्यों में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।

क्या है शीतला सप्तमी की मान्यता
माना जाता है कि शीतला सप्तमी के दिन आप अगर पूरे विधि विधान के साथ पूजा करेंगे तो आपको बीमारियों से मुक्ति मिल जाएगी और आपके घर में सुख शांति आ जाएगी। आप पूजा करने के बाद माता शीतला का जाप करें. ऐसा करने से आपको बीमारियों से मुक्ति मिल जाएगी और आप स्वस्थ हो जाएंगे।

शीतला सप्तमी की पूजा विधि
– सुबह स्नान करके शीतला मां की पूजा की जाती है।
– इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है।
– शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात, पुए, पकौड़े, रबड़ी, बाजरे की रोटी और पूड़ी सब्जी आदि बनाए जाते हैं।
– रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की सफाई करके पूजा करें।

 

 

 

 

 

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