जानिए कब है धूमावती जयंती?जानें पूजा विधि और कथा

पंचांग के अनुसार अलक्ष्मी नाम से जाने वाली मां धूमावती की जयंती (Dhumavati jayanti) का पर्व ज्येष्ठ शुक्लपक्ष (Jyeshtha Shukla Paksha)अष्टमी, शुक्रवार 18 जून (18 June) को मनाया जाएगा। भगवान शिव (Lord Shiva) द्वारा प्रकट की गई दस महाविद्याओं में सातवें स्थान पर पुरुषशून्या ‘विधवा’ आदि नामों से जानी जाने वाली माँ ‘धूमावती’ (Mother ‘Dhumavati’) का नाम आता है। मां पार्वती (Maa Parvati) के अत्यंत उग्र रूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । इनकी सवारी कौवा (crow) है ये श्वेत वस्त्र धारण करती हैं । तथा अपने केश खुले रखती हैं। इनका अवतरण पापियों को दंड देने के लिए हुआ था। माता धूमावती की पूजा करने से विपत्तियों से मुक्ति, रोग का नाश और युद्ध में विजय प्राप्त होती है।
इनका निवास ज्येष्ठा ‘नक्षत्र’ है। इसीलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक जीवन पर्यन्त किसी ना किसी प्रकार के संघर्षों से लड़ता रहता है। धूमावती जयंती समारोह में धूमावती स्तोत्र पाठ (dhoomaavatee stotr paath)और सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है। काले वस्त्र (black clothes) में काले तिल (black sesame) बांधकर मां धूमावती को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वहीं वेदों में भी कहा गया है कि इससे अकाल मृत्यु की संभावना भी टल जाती है। काले वस्त्र में आप काले तिल बांधकर मां को चुपचाप भेंट करें और जो भी आपकी इच्छा और मनोकामना हो उसे मां के सामने बोल दें। आइये जानें पूजा मंत्र और महत्व
इसलिए होती है विधवा के रूप में पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती को भूख लगी तो उन्होंने महादेव से कुछ खाने की इच्छा प्रकट की। लेकिन महादेव समाधि में लीन थे। उन्होंने महादेव से कई बार अनुरोध किया लेकिन महादेव की समाधि नहीं टूटी। इस बीच माता की भूख अनियंत्रित हो गई और वे व्याकुल हो गईं। भूख से बेचैन होकर उन्होंने शिव को ही निगल लिया। लेकिन शिव जी के कंठ में विष होने की वजह से माता के शरीर में जहर पहुंच गया और उनके शरीर से धुआं निकलने लगा और उनका रूप अत्यंत भयंकर हो गया। तब महादेव ने उनसे कहा आज से तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जाएगा। लेकिन तुम्हें ये रूप पति को निगलने के बाद मिला है, इसलिए तुम्हारे इस रूप को विधवा के तौर पर पूजा जाएगा।
पूजा विधि
धूमावती जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद पूजा के स्थान को गंगाजल से पवित्र करें। इसके बाद माता की तस्वीर सामने रखकर उन्हें जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप और नैवैद्य अर्पित करें। इसके बाद मां धूमावती के प्राकट्य की कथा पढ़ें या सुनें। माता के मंत्र का जाप करें। अंत में माता से अपनी अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगे और उनसे घर के संकट दूर करने की प्रार्थना करें।