शख्सियत

हमेशा याद आएंगी करुणा शुक्ला 

करुणा शुक्ला (Karuna Shukla) के लिए मेरे तई दो बातें हमेशा गौरतलब रहीं। पहली, कम से कम सार्वजनिक जीवन में उन्होंने अटलजी (Atal Bihari Vajyapee) की भतीजी होने के रूप में अपना परिचय नहीं दिया। दूसरी, एक विधायक होने के रूप में उन्हें किसी ख़ास परिचय की जरूरत भी नहीं रही। करुणा विरासत के सद्गुणों को पूरी सुगढ़ता के साथ ग्रहण करने का एक विशिष्ट उदाहरण रहीं। चलिए, बात उनके प्रमुख कर्म क्षेत्र छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की ही करते हैं। अमितेश शुक्ला (Amitesh Shukla)। पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल (Shyamacharan Shukla) के बेटे। केंद्रीय मंत्री के तौर पर धमाकेदार राजनीतिक पारियां खेलने वाले विद्याचरण शुक्ल (Vidyacharan Shukla) के भतीजे। लेकिन पिता-चाचा के जीवनकाल और उनके अवसान के बाद भी अमितेश आज तक खुद को कोई अलग पहचान  नहीं बना सके हैं। दिवंगत मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) के पुत्र अरुण (Arun Vora) भी पिता की बदौलत ही राजनीति में थोड़े-बहुत  कामयाब होने के अलावा कुछ बड़ा नहीं कर सके। जबकि वोरा अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के चलते घोर वृद्धावस्था के बावजूद जीवन पर्यन्त कांग्रेस आलाकमान के लिए आँख और कान जितने विश्वसनीय बने रहे।





लेकिन करुणा शुक्ला ने बहुत अधिक लाइम लाइट में न आने के बावजूद अटलजी के एक हुनर को बखूबी आत्मसात किया। वह थी उनकी मुखरता और सक्रियता। राज्य विधानसभा में कोई भी चर्चा शायद ही ऐसी रही होगी, जिसमें करुणा शुक्ला ने हिस्सा न लिया हो। वह पूरी तैयारी के साथ सदन में आती थीं। दिवंगत भेरूलाल पाटीदार (Bherulal Patidar) विधानसभा के उपाध्यक्ष थे। संसदीय आचरण और प्रक्रियाओं के लिए सख्ती की हद तक उनका आग्रह रहता था। विधायकों  से होने वाली एक समस्या आम है। ध्यानाकर्षण (Call Attention) हो या स्थगन (Adjournment)  प्रस्ताव, वे भाषण देने पर आमादा  हो जाते हैं। ऐसी स्थिति बनते ही पाटीदार किसी कड़क स्कूल मास्टर की तरह विधायक को टोक देते थे। लेकिन कमोबेश शत-प्रतिशत डिबेट  में शामिल होने वाली करुणा को कभी भी आसंदी के इस व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा। क्योंकि वे टू दि  पॉइंट बात करती थीं।

‘आदरणीय महोदय, इस स्थगन को इसलिए ग्राह्य किया जाए……के साथ बिंदुवार तथ्य रखने में उनका कोई सानी नहीं था. मुझे आज भी याद है। दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की सरकार थी. महिला अत्याचार से जुड़े किसी मामले पर चर्चा चल रही थी। कांग्रेस के एक विधायक ने अपनी जगह पर बैठे-बैठे  औरत के चरित्र तथा आदमी के भाग्य को लेकर एक टिप्पणी कर दी। आगबबूला करुणा ने इस पर ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि उस सदस्य को  आसंदी के कहने पर अपने कहे के लिए माफी मांगना पड़ गयी थी। उन्हीं दिनों भोपाल के एक स्कूल प्रबंधन पर छात्राओं  को लेकर हद दर्जे का अपमानजनक व्यवहार करने का आरोप लगा।





एक अख़बार ने इसकी खबर छापी थी. मामला कुछ इस फितरत था कि संबंधित रिपोर्टर को भी शब्दों के चयन सहित घटनाक्रम का विवरण देने के लिए खासी मशक्कत करना पड़ गयी थी। लेकिन इसी खबर के आधार पर करुणा ने जब विधानसभा के शून्यकाल में यही मामला उठाया तो यूं लगा जैसे कि नदी की कोई लहर पूरी  सहजता के साथ बहती चली गयी हो। उन्होंने शब्द से लेकर वाक्य तक में मर्यादा कायम रखी और साथ ही मामले की गंभीरता के आग्रह को भी कम होने नहीं दिया। इस तरह के संसदीय आचरण बिरले ही देखने मिलते हैं। शुक्ला ने विधानसभा में शब्दों की मर्यादा तथा विरोध की आक्रामकता, दोनों के बीच जो सौम्य संतुलन बनाये रखा, वह हमेशा याद किया जाएगा।

करुणा का भाजपा छोड़ना और कांग्रेस में जाना पार्टी और उनके बीच का विषय था। भाजपा ने इस नेत्री पर पार्टी की मेहरबानियों को भूलने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने करुणा के लिए बाहें फैलाते हुए भाजपा पर अपनी समर्पित नेत्री की उपेक्षा करने का आरोप जड़ दिया था। इस सबका सच पता नहीं। हाँ, ये पता है कि कोरोना ने करुणा के रूप में एक और महत्वपूर्ण शख्सियत को हमसे छीन लिया है। भावभीनी श्रद्धांजलि।

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