नज़रिया

इंद्री द्वार, झरोखा नाना

नजरिया: शास्‍त्रों में संसार (world in the scriptures) को माया कहा गया है। कई बार लगता है कि जिस को हम स्‍पर्श करते हैं, देखते हैं, गंध लेते हैं, सुनते हैं और चख सकते हैं वह यथार्थ है, माया कैसे हो सकता है। यह माया इस रूप में हैकि,इस संसार की प्रत्‍येक वस्‍तु निरंतर परिवर्तनशील (variable) है। जो दिख रहा है वह अगले ही क्षण में परिवर्तित हो जाएगा। जो हवा हमें स्‍पर्श कर रही है अगले ही क्षण उसकी गति, गंध और दिशा बदल जाएगी। जिस कली को हम देख रहे हैं अगले ही क्षण वह फूल बनने की दिशा में परिवर्तित हो जाएगी। सागर की लहरें (ocean waves) निरंतर उठेंगीं परंतु उनका स्‍वरूप वह नहीं होगा जो एक क्षण पहले था। बादल गरजते हैं पर हर क्षण गर्जन की ध्‍वनि भिन्‍न हो जाती है। अनंत ग्रह, नक्षत्र और आकाश गंगाऍं (Infinite planets, constellations and galaxies) हर क्षण जन्‍म ले रहे हैं और नष्‍ट हो रहे हैं । यह भले ही हमें ऑंखों से न दिखे परंतु नीले आकाश में स्‍वरूप बदल रहे बादल, सूर्य और चंद्रमा (clouds, sun and moon) तो स्‍पष्‍ट दिखते हैं। परिवर्तन अवश्‍यम्‍भावी है। निरंतर परिवर्तित संसार, वर्तमान का यथार्थ है जिसमें हम रह रहे हैं।

इस परिवर्तन को अनुभव करना ही तो हमारा संसार का अनुभव है। प्रकृति ने हमें 5 अंग दिये हैं जिनके द्वारा संसार को महसूस किया जाता है । इन्‍हें ज्ञानेंन्द्रियॉं (sensory organ) कहते हैं यह हैं ऑंख, कान, नाक, जिह्वा, और त्‍वचा। ऑंख के द्वारा हम संसार के विविध रूपों को देखते हैं। कान विभिन्‍न ध्‍वनियॉं सुनते (ears hear different sounds) हैं। नाक गंध की प्रतीति कराती है। जिह्वा तो रस अर्थात् स्‍वाद का केंद्र है और त्‍वचा से स्‍पर्श की अनुभूति होती है। इन पॉंच के अलावा हमारे पास संसार को जानने का अन्‍य कोई साधन नहीं है। हम संसार का उतना ही अनुभव कर पाते हैं जितनी हमारी ज्ञानेन्द्रियों की क्षमता है।हम विभिन्‍न रंग देख पाते हैं परंतु पशुओं की ऑंखों में रंग देखने की क्षमता नहीं है। इसलिए हमें जो दुनिया रंग-बिरंगी दिखती है वही गाय के लिए सफेद-स्‍याह है। पराश्रव्‍य (ultrasonic) ध्‍वनियॉं चमगादड़ सुन सकते हैं उसे सुन पाना हमारे कानों की क्षमता से बाहर की बात है। इसलिए ध्‍वनि के माध्‍यम से संसार की समझ मनुष्‍यों और चमगादड़ों (bats) की पूरी तरह से भिन्‍न होगी। कुत्‍ते के सूँघने की क्षमता मनुष्‍य से बहुत ज्‍यादा है अत: गंध के माध्‍यम से संसार की समझ कुत्‍ते के लिए बिलकुल अलग होगी।

कल्‍पना करें कि गाय, चमगादड़, कुत्‍ते और मनुष्‍य को किसी अज्ञात ग्रह पर भेजकर उनसे पृथ्‍वी का वर्णन करने को कहा जाए तो उनका वर्णन एक-दूसरे के वर्णन से पूरी तरह से अलग होगा। वे अपनी बात को ही सत्‍य कहेंगे, इसे लेकर आपस में लड़ भी सकते हैं, जबकि वास्‍तविकता में वे एक ही संसार का वर्णन कर रहे होंगे। इन पॉंच ज्ञानेन्द्रियों से जानकारी या डेटा हमारे मस्तिष्‍क (data in our brains) में जाता है। वहॉं यह डेटा प्रोसेस होता है और अनुभव बनता है। फूल को देखने से उसका स्‍वरूप और सूँघने से आने वाली सुगंध मस्तिष्‍क में जानकारी के रूप में संग्रहित होती है। जब यह कई बार होता है तो अनुभव बनता है कि अमुक फूल को सूँघने पर अमुक सुगंध आएगी। तब सुगंध आने पर मस्तिष्‍क में उस फूल का चित्र बन जाता है और यदि फूल का चित्र दिखता है तो उसकी गंध की कल्‍पना हो जाती है। जब कुछ लिखा हुआ पढ़ते हैं तो अक्षरों का रूप मस्तिष्‍क में अंकित होकर उसका अर्थ बताता है। जीवन के समग्र अनुभव मिलकर बुद्धिमत्‍ता बनते हैं।

प्रकृति ने केवल मनुष्‍य को यह क्षमता दी है कि वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग नियंत्रित कर सकता है और मस्तिष्‍क में जाने वाले डेटा का चयन कर सकता है। मस्तिष्‍क में जैसा डेटा होगा उसी के अनुरूप संसार दिखाई देगा। ध्‍यान के दौरान योगी विचारों को नियंत्रित करता है दूसरे शब्‍दों में मस्तिष्‍क में डेटा की प्रोसेसिंग रोक देता है। विचार शून्‍य मस्तिष्‍क संसार से परे ले जाकर उसे परम आनंद से भर देता है।
आज से 50 साल पहले जीवन बहुत सरल था। खेत या दुकान पर जाना, रात में आस-पड़ोस या चौपाल पर बैठना, रात होते ही सो जाना और भोर होते ही उठना। यही दिनचर्या थी। जानकारियॉं खेत खलिहान पास-पड़ोस और मित्र-रिश्‍तेदारों (friends and relatives) तक ही सीमित थीं। यही संसार था। संचार तकनीकी के विकास के साथ ही परिदृश्‍य बदल गया है। सब ओर से हमारे ऊपर जानकारियों की बमबार्डिंग हो रही है। सुबह होते ही हम विभिन्‍न संचार माध्‍यमों से दुर्घटना (Accident), अपराध (Crime), राजनैतिक चालों (political tricks), धोखाधड़ी की जानकारियॉं (fraud information) मस्तिष्‍क में फीड करते हैं। सोशल मीडिया वांछित-अवांछित सब उड़ेले जा रहा है। बेचारा मस्तिष्‍क तो वैसा का वैसा ही है। जंक इंफार्मेसन ने मस्तिष्‍क को ब्‍लॉक कर दिया है। जानकारी बढ़ रही है अनुभव और बुद्धिमत्‍ता घट रही है।गूगल की जानकारी को ही ज्ञान समझने की भूल हो रही है।जब अनुभव आता है तो यह अहसास भी आता है कि दूसरे का अनुभव इससे भिन्‍न हो सकता है। इसलिए सहिष्‍णुता भी आती है। परंतु जब मात्र जानकारी होती है तब यह स्‍वीकार करना कठिन होता है कि इससे परे भी कोई जानकारी सत्‍य हो सकती है। इसलिए संसार जटिल होता जा रहा है। झगड़े बढ़ रहे हैं। असहिष्‍णुता बढ़ रही है।

हम आज के समय में अपने ऊपर जानकारियों की बमबार्डिंग (bombarding) को रोक नहीं सकते । हम यह जरूर तय कर सकते हैं कि पॉंचों ज्ञानेंन्द्रियों के माध्‍यम से किस जानकारी को अंदर प्रवेश करने दें किस को नहीं। यह हमारा चुनाव है और हमारी स्‍वतंत्रता है। जैसी जानकारी अंदर जाकर प्रोसेस होगी वैसा ही संसार दिखाई देगा। समय ही जीवन है। सोशल मीडिया (social media) पर आई हर पोस्‍ट को पढ़ना या वीडियो को देखना जीवन की बरबादी के साथ साथ मस्तिष्‍क में डेटा का कचरा भरना है जो संसार का स्‍वरूप विकृत कर देता है। वही पढ़ें व देखें जो आपके लिए आवश्‍यक है। यदि तीन दिन बाद चुनाव की मतगणना (election counting) होनी है तो साधारण मतदाता को एक्जिट पोल (exit polls) देखकर क्‍या मिलेगा। सिवाय समय की बरबादी के। जब हम अवांछित को रोक देंगे तभी वांछित को मस्तिष्‍क में प्रवेश करने के लिए समय और स्‍थान मिल सकेगा।

तुलसीदास जी (Tulsidas ji) ने लिखा है – इंद्री द्वार झरोखा नाना, जहँ तहँ सुर बैठे करि थाना। आवत देखहिं बिषय बयारी, ते हठि देहिं कपाट उघारी।।संसार के अनुभव का प्रवेश द्वार पॉंच इंन्द्रियॉं ही हैं जहॉं मन रूपी देवता बैठे हैं । जैसे ही तात्‍कालिक सुख रूपी हवा आती है वे जबरन इंद्रियों का द्वार खोल देते हैं। इस प्रकार मस्तिष्‍क में कचरा एकत्र होता है और हमारा संसार विकृत हो जाता है। इसका उपाय भी गीता में बताया है झ्र इन्द्रियाणि पराण्‍य् आहुर् इन्द्रियेभ्‍य: परं मन: । मनसस् तु परा बुद्धिर् यो बुद्धे: परतस्‍तु स:।। अर्थात् इंद्रियों से मन श्रेष्‍ठ है मन से बुद्धि श्रेष्‍ठ है । इस प्रकार बुद्धि की लगाम सेमन को नियंत्रित करें।अत: क्‍या पढ़ें, क्‍या देखें, क्‍या सुनें, किससे मिलें आदि को मात्र मन से ही तय न करें । बुद्धि विवेक का प्रयोग करें। इंद्रियों के माध्‍यम से मस्तिष्‍क में जानकारियों का कचरा न घुसने दें, अनुभव को तरजीह दें। तभी आपको संसार सुंदर दिखेगा और संसार को आप अच्‍छे लगेंगे।

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