मध्यप्रदेश की राजनीति में बाबाओं की धमक, दरबार में पहुंचकर नेता खोज रहे जीत का फॉर्मूला
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव आते ही नेता एक्टिव हो जाते हैं। प्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में किसी भी दल का कोई भी नेता किसी तरह का भी मौका नहीं छोड़ना चाहता है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव आते ही नेता एक्टिव हो जाते हैं। प्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में किसी भी दल का कोई भी नेता किसी तरह का भी मौका नहीं छोड़ना चाहता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश के चुनाव में खास भूमिका निभाने वाले बाबाओं को नेता कैसे भूल सकते हैं। हर बार की तरह इस बार भी जैसै-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं। वैसे-वैसे बाबाओं के दरबार में नेताओं की जनदीकियां बढ़ने लगी हैं। मध्यप्रदेश में इन दिनों बाबाओं और कथावाचकों का बोलबाला दिखाई दे रहा है है। इनके धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ते देख सत्ताधारी दल भाजपा के मंत्रियों-नेताओं से लेकर विपक्ष में बैठे कांग्रेसी भी इनकी परिक्रमा करते दिखाई दे रहे हैं। अपने-अपने इलाकों में मंत्री से लेकर विधायक तक उनकी कथाओं के जरिए वोटर्स को साधने में लगे हैं। नेता अपनी छवि बनाने के लिए लाखों रुपए खर्च करने में लगे हैं। अब तक शिवराज सरकार के कई मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में कथा करा चुके हैं। तो कुछ वेटिंग लिस्ट में हैं। ऐसा नहीं है कि केवल बीजेपी ही धार्मिक आयोजन कर राजनीतिक पुण्य प्राप्ति का जतन कर रही है, कांग्रेस के बड़े नेता भी इन बाबाओं की कथा से राजनीतिक प्रसाद हासिल करने में लगे हैं। हालत यह है कि सुबह-शाम जनता का नाम माई-बाप की तरह रटने वाले ये नेता फिलहाल बाबा और कथावाचकों के दर पर जीत का फॉर्मूला खोज रहे हैं। उनके मंचों पर पहुंचकर आशीर्वाद ले रहे हैं, सुनहरे भविष्य के लिए उनसे एकांत में उपाय और मंत्र भी ले रहे हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मध्यप्रदेश में बाबा ही सरकार बनाते हैं। क्योकि बुंदेलखंड में बाबाओं की सरकार है। तो ऐसे में ये जानना जरुरी हो जाता है कि क्या है बाबाओं की कथाओं का राजनीति से संबंध? आखिर चुनाव में कितनी सीटों पर है इन बाबाओं का असर
पहले बीते एक साल पहले चलते हैं
मध्यप्रदेश की सियासत में बाबाओं का वर्चस्व का हमेशा से ही रहा है। ठीक एक साल पहले यानी फरवरी 2022 की बात है। जब रुद्राक्ष महिमा से सुर्खियों में आये कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने मध्य प्रदेश के सीहोर में शिवपुराण का कार्यक्रम रखा था। प्रशासन ने किसी वजह से इसकी अनुमति नहीं दी थी। फिर क्या था कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा इससे इतने दुखी हुए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। और पंडित के इन आंसुओं ने एमपी की सियासत में उबाल ला दिया। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने वीडियो कॉल कर उनसे बात की। और कहा कि आपकी कृपा से ही सरकार चल रही है। तो वही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी प्रदीप मिश्रा को फोन कर उनका हाल जाना। तो इस बीच विपक्ष में बैठी कांग्रेस कहां चुप बैठने वाली थी। कांग्रेस भी खुलकर बाबा के समर्थन में आ गई। पूर्व सीएम कमलनाथ ने कांग्रेस नेताओं का एक दल बाबा से मिलने भेज दिया। अब थोड़ा और पीछे चलते हैं। बात साल 2018 की है। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे। इससे पहले शिवराज सिंह चौहान ने पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया। ये थे नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भैय्यू जी महाराज और पंडित योगेंद्र महंत। चुनाव से पहले कम्प्यूटर बाबा पाला बदलकर कांग्रेस के साथ आ गए। कांग्रेस की सरकार बनी तो कम्प्यूटर बाबा को फिर मंत्री का दर्जा मिल गया। ये दो घटनाएं बताती हैं कि एमपी की राजनीति में बाबाओं, संतों की कितनी धमक है।
अब बात बागेश्वर धाम की
अब एमपी के बुंदेलखंड इलाके के एक संत आजकल देश-दुनिया में चर्चा बटोर रहे हैं। वो हैं बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में है। उसके पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को जहां उनके लाखों समर्थक चमत्कारी संत बता रहे हैं। तो कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो उनके चमत्कारों को महज अंधविश्वास फैलाने वाला बताकर उनके दावों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। विरोधी इस बात से हैरान हैं कि आखिर बात-बात पर ताली बजाते, सवाल उठाने वालों को कोसते और आम बोलचाल की भाषा में श्रद्धालुओं से मुखातिब होते शास्त्री के सामने क्यों और कैसे हजारों-लाखों की भीड़ नतमस्तक हो जाती है। लेकिन बुंदेलखंड के इस इलाके को करीब से जानने वालों के लिए ये कोई नई बात नहीं है। दरअसल इस इलाके में दशकों से इस तरह के संतों-बाबाओं का जलवा रहा है, जो खुद ही ‘सरकार’ कहे जाते हैं और जिनके सामने बड़े-बड़े सियासी चेहरे नतमस्तक दिखाई देते हैं।
क्यों बागेश्वर धाम के चक्कर लगा रहे नेता?
छतरपुर जिले के गढ़ा गांव में ‘बागेश्वर धाम’ मंदिर है। स्थानीय लोग कहते हैं कि बागेश्वर धाम कई तपस्वियों की दिव्य भूमि है। यहां बालाजी महाराज को अर्जी के जरिए फरियाद सुनाई जाती है। लाखों लोग अपनी समस्याएं लेकर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पास आते हैं। कहा जाता है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बिना पूछे ही लोगों की समस्या का पता चल जाता है। फिर वे समस्या हल करने के उपाय बताते हैं और बालाजी महाराज से पीड़ित के लिए प्रार्थना करते हैं। पंडित धीरेंद्र शास्त्री बताते हैं कि दादा गुरु और संन्यासी बाबा की कृपा से ही उन्हें बालाजी की कृपा और सिद्धि प्राप्ति हुई। भक्त के बताने से पहले ही धीरेंद्र उनके मन की बात पर्चे पर लिख देते हैं। इसी चमत्कार को लेकर पूरे देश में वे चर्चा का विषय बने हुए हैं। हर रोज हजारों भक्त बागेश्वर धाम पहुंचते हैं। अभी पिछले महीने 13 फरवरी से धीरेंद्र शास्त्री ने बागेश्वर धाम में धार्मिक आयोजन किया था। इसमें पहले दिन कांग्रेस नेता कमलनाथ ने पहुंचकर सभी को चौंका दिया था। इतना ही नहीं एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी धाम में आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में पहुंचे थे।
पंडोखर सरकार का भी है राजनीति में अलग ही महत्व
बागेश्वर धाम के साथ-साथ कुछ सालों से पंडोखर सरकार भी काफी चर्चा में हैं। सोशल मीडिया पर पंडोखर सरकार के संत गुरुशरण महाराज के वीडियो भी खूब नजर आते हैं। इन वीडियो में देखा जा सकता है कि गुरुशरण महाराज लोगों द्वारा समस्या बताने से पहले ही पर्चे पर उसे लिख देते हैं। पंडोखर सरकार में बागेश्वर धाम की तरह हनुमान जी का ही मंदिर है। यहां भी दरबार लगता है। पंडोखर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। यहां देश के कोने कोने से लोग आते हैं। बागेश्वर धाम की तरह पंडोखर सरकार भी दरबार लगाते हैं। गुरुशरण महाराज का दावा है कि वे लोगों के बारे में हृदय चक्र और तराटक के माध्यम से बता देते हैं। इसके अलावा उन्हें छठी इंद्री के जाग्रत करने से जानकारी हासिल हो जाती है। माइंड रीडिंग और चमत्कार के बारे में वे कहते हैं कि ये मिलती-जुलती होती हैं। जो चीजें हम लोग बता देते हैं, वो जादूगर नहीं बता पाते हैं और जो जादूगर बता देते हैं, वो हम नहीं बता पाते हैं। बागेश्वर और पंडोखर दोनों धामों में दरबार लगते हैं। दोनों के बीच कभी-कभी प्रतिद्वंद्विता भी दिखती है, हालांकि, कभी-कभी दोनों एक-दूसरे की तारीफ भी करते हैं। अलग-अलग इंटरव्यू में गुरुशरण कहते हैं, बागेश्वर सरकार और मैं एक-दूसरे के बारे में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि हम लोग कितना बता पाएंगे, कितना नहीं बता पाएंगे। पिछले साल मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दतिया में धार्मिक कार्यक्रम कराया था। इस कार्यक्रम में गुरुशरण महाराज और धीरेंद्र शास्त्री दोनों पहुंचे थे। इस दौरान धीरेंद्र शास्त्री ने गुरुशरण महाराज को अपना बड़ा भाई बताया था और गुरुशरण ने उन्हें छोटा भाई बताते हुए पंडोखर धाम आने का आमंत्रण दिया था।
रावतपुरा सरकार का भी है प्रभाव
बागेश्वर धाम और पंडोखर सरकार के बाद अब बात रावतपुरा सरकार की। एमपी के भिंड जिले के लहार में रावतपुरा सरकार मंदिर स्थित है। रावतपुरा में हर रोज हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। गुरु पूर्णिमा और अन्य अवसरों पर यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है। राजनीतिक तौर पर मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और यूपी तक में रावतपुरा सरकार का असर है। हर बड़ी पार्टी का छोटा-बड़ा नेता यहां कभी न कभी नतमस्तक होकर गया है। संत रविशंकर महाराज को बुंदेलखंड में रावतपुरा सरकार के नाम से प्रसिद्धि मिली है। उनका विशाल आश्रम रावतपुरा गांव लहार, भिंड, एमपी के पास ही हनुमानजी मंदिर पर स्थित है। रविशंकर महाराज का जन्म बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के छिपरी गांव में हुआ था। उनके माता-पिता पुरोहित का काम सिखाना चाहते थे। इसके लिए रविशंकर का रामराजा संस्कृत विद्यालय ओरछा में एडमिशन करवाया। हालांकि, उनका यहां मन नहीं लगा और वहां से वे सीधे रावतपुरा गांव पहुंच गए। हनुमान मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना और साधना शुरू कर दी। कहा जाता है कि रावतपुरा के हनुमान मंदिर में रविशंकर महाराज को सिद्धि प्राप्त हुई और उसके बाद देश-दुनिया से हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी। रावतपुरा सरकार पहूज और सोनमृगा नदियों के बीच स्थित है और दो प्रमुख शहरों ग्वालियर और झांसी से 100 किलोमीटर की दूरी पर है। रविशंकर ने अपने गुरु देवरहा बाबा की स्मृति में विश्व शांति के लिए एक और यज्ञ आयोजित किया। पहले लोगों को लगा कि बीहड़ इलाके में इतने बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन करना लगभग असंभव है, लेकिन युवा संत ने सभी को गलत साबित कर दिया। इसे एशिया में सबसे बड़े धार्मिक समारोह के रूप में माना गया। 2005 में आश्रम एक धाम के रूप में विकसित हो गया और इसका नाम बदलकर श्री रावतपुरा सरकार धाम कर दिया गया।
दंदरौआ सरकार के दरबार में भी पहुंचते हैं नेता
मध्य प्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव में दंदरौआ धाम मंदिर है। यहां हनुमान जी का मंदिर है। दंदरौआ धाम को डॉक्टर हनुमान के नाम से भी जाना जाता है। यहां हनुमान सखी यानी सहेली रूप में हैं, यानी हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है। यह नृत्य मुद्रा है। इतना ही नहीं मूर्ति का मुख बानर के स्थान पर बाला के रूप में है। आमतौर पर हनुमान की मूर्ति में गदा उनके हाथ में होती है, लेकिन यहां ये उनके बगल में रखी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि तुलसीदास की रामचरितमानस में एक चौपाई है, ‘एक सखी सिय संग विहाई, गई रही देखन फुलवाई’. यही वजह है कि दंदरौआ धाम के अनुयायी सिर्फ सफेद धोती पहनते हैं और इसी को ओढ़ते हैं। कहा जाता है कि दंदरौआ गांव में सैकड़ों साल पहले नीम के पेड़ से मूर्ति निकली थी। इसके बाद से इसे यहां स्थापित कर दिया गया। दंदरौआ सरकार में हर रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं। मंगलवार और शनिवार को संख्या लाखों में पहुंच जाती है। स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां लोगों की असाध्य से असाध्य बीमारी ठीक हो जाती है। यही वजह है कि दंदरौआ धाम को डॉ. हनुमान के नाम से भी जाना जाता है। संत रामदास दंदरौआ सरकार के प्रमुख हैं। उनके लाखों की संख्या में भक्त हैं। यहां कि पूजा विधी बागेश्वर-पंडोखर से अलग है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां बागेश्वर-पंडोखर सरकार की तरह कोई दरबार नहीं लगता। न ही संत रामदास किसी का भूत-भविष्य बताते हैं। यहां लोग मुख्यताः मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि जिन लोगों को कोई बीमारी होती है, वो 5 से 7 मंगलवार या शनिवार मंदिर में दर्शन करने आते हैं। यहां मंदिर की परिक्रमा करनी पड़ती है। इसके बाद लोगों को बीमारियों में आराम हो जाता है। इसके अलावा यहां किसी प्रकार की कोई और पूजा नहीं करनी पड़ती। संत रामदास से भी लोग आसानी से मिल सकते हैं। मध्यप्रदेश के चंबल, दतिया इलाके में दंदरौआ सरकार का काफी महत्व है। यही वजह है कि लाखों की संख्या में धाम के भक्त हैं। इन भक्तों में आमजन से लेकर नेता भी शामिल हैं। आसपास के इलाकों के विधायक, सांसद नियमित तौर पर दर्शन करते नजर आ जाते हैं
चमत्कारी बाबाओं की क्यों हैं राजनीति में धमक
इन ‘चमत्कारी’ संतों का पूरे बुंदेलखंड और चंबल में प्रभाव माना जाता है। यूपी के झांसी, ललितपुर, जालौन, चित्रकूट, महोबा, बांदा, हमीरपुर से बड़ी संख्या में इन दरबारों में हाजिरी लगाने के लिए लोग पहुंचते हैं। इसी तरह, मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, रायसेन, पन्ना, सतना, दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, ग्वालियर, श्योपुर, रायसेन, इंदौर, जबलपुर और भोपाल में भी इनके भक्तों की बड़ी संख्या है। इन जिलों के जनप्रतिनिधि भी अक्सर दरबार में हाजिरी लगाते देखे जाते हैं। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पिछले साल बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडोखर धाम के गुरुशरण के बीच सुलह करवाई थी। एमपी के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग भी बाबा के दरबार में आशीर्वाद लेते देखे गए हैं। रावतपुरा धाम में पूजा-अर्चना करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पहुंच चुके हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता कमलनाथ भी पिछले दिनों रावतपुरा सरकार से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। ये नेता ऐसे ही बाबाओं के दरबार में हाजिरी लागाने नहीं पहुंच रहे हैं। इसके पीछे सत्ता पाना सबसे बड़ा उदेश्य है। क्योकि जिन बाबाओं के दरबार पर नेता पहुंच रहे हैं। उनका कई विधानसभा क्षेत्रों पर अच्छा खास प्रभाव है। बुंदेलखंड के बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री को आजकल सनातन धर्म का पोस्टर बॉय कहा जा रहा है। उनके धार्मिक कार्यक्रमों में आस्था रखने वालों की भीड़ उमड़ रही है। इनका प्रभाव बुंदेलखंड सहित अन्य इलाकों के 89 विधानसभा क्षेत्रों में ज्यादा है। कुबेरेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा मालवा-निमाड़, भोपाल और नर्मदापुरम अंचल के 91 विधानसभा क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं। इसी तरह पंडोखर सरकार गुरुशरण शर्मा पर आस्था रखने वाले ग्वालियर-चंबल और भोपाल संभाग के 59 विधानसभा क्षेत्रों में ज्यादा हैं। इसमें से 89 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां तीनों बाबाओं का प्रभाव दिख रहा है। तो इससे जाहिर है कि मध्यप्रदेश की सियासत में बाबाओं का रौल अहम होता है। या यू कहे की प्रदेश में ये बाबा ही सरकार बनाते हैं।