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अगर जापान की तरह घटती रही जन्म दर, तो क्या सदी के आखिरी तक खत्म हो जाएगी धरती

आज हम पर्यावरण से जुड़ी जिस समस्या से जूझ रहे हैं, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, या जैव विविधता का नुकसान, जल संकट हो या भूमि संघर्ष, उन सबका संबंध पिछली कुछ सदियों के दौरान तेज़ी से बढ़ी हमारी आबादी को माना जा रहा है।

आज हम पर्यावरण से जुड़ी जिस समस्या से जूझ रहे हैं, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, या जैव विविधता का नुकसान, जल संकट हो या भूमि संघर्ष, उन सबका संबंध पिछली कुछ सदियों के दौरान तेज़ी से बढ़ी हमारी आबादी को माना जा रहा है। लेकिन भले ही इन सबका कारण तेजी से बढ़ रही आबादी हो। लेकिन जापान में बढ़ती आबादी चिंता पैदा नहीं कर रही है। बल्कि वहां कि घटती आबादी चिंता का विषय बन गई है। जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने हाल ही में अपने यहां कम होती जन्मदर को लेकर डराने वाला बयान दिया। अगर जापान अपनी जन्म दर में गिरावट को धीमा नहीं कर पाया तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। ऐसे में सवाल यही कि अगर सदी के अंत तक आबादी बढ़ना रुक जाएगी तो आखिर कितने दिनों के भीतर धरती खत्म हो जाएगी। माना जा रहा है कि साल 2100 तक ग्लोबल जन्मदर गिरकर 0.1% से भी कम रह जाएगी। बच्चों का जन्म घटते-घटते बिल्कुल थम जाएगा। इसके बाद जो होगा, उस बारे में साइंटिस्ट लगातार चेता रहे हैं। हो सकता है कि फिर कुछ ही सालों के भीतर धरती से इंसानी आबादी पूरी तरह से खत्म हो जाए। इस बीच कई और भी बदलाव होंगे, जो डराने वाले हैं। इन सबके बीच जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा भी यही कह रहे है कि अगर यही चलता रहा तो जल्द ही जापान गायब हो जाएगा। साल 2022 में वहां लगभग पौने 8 लाख बच्चों का ही जन्म हुआ। जापान में बूढ़ों की आबादी इतनी बढ़ चुकी कि वहां काम करने और यहां तक कि आर्मी में जाने के लिए लोग बाकी नहीं। यही हाल कई दूसरे देशों का भी है।  जहां बर्थ रेट तेजी से नीचे आ चुका। ऐसे में ये बात भी उठ रही है कि यही हाल रहा तो दुनिया में नए जन्म कम होते-होते खत्म हो जाएंगे। तब क्या होगा!

अभी जापान में किस तरह के हालात हैं?

लगभग साढ़े 12 करोड़ की आबादी वाला जापान दुनिया के सबसे अमीर देशों में है। इसकी सैन्य ताकत को लेकर भी किसी को शक नहीं रहा। लेकिन धीरे-धीरे देश कमजोर पड़ रहा है। बीते कुछ समय में कई रिपोर्ट्स आईं जो कहती हैं कि जापान अपनी सेना में नियुक्तियों के लिए लगातार अपील कर रहा है। अपना सैन्य बजट भी बढ़ा चुका, लेकिन लोग आर्मी में भर्ती नहीं हो पा रहे। या तो वे बूढ़े हो चुके हैं, या बुढ़ापे की कगार पर हैं। ये सिर्फ एक पहलू है। जापान में युवा आबादी इतनी कम हो चुकी है कि बूढ़ों को रिटायरमेंट एज के काफी बाद तक काम करना पड़ रहा है। यहां तक कि वहां की कंपनियां बाहरी लोगों को अपने यहां काम पर बुला रही हैं। हाल में वहां के पीएम का ये डर जताना कि वे डिसअपीयर यानी अदृश्य हो जाएंगे, वहां के हालात को बताता है।

जापान में पिछले साल सबसे कम बच्चे पैदा हुए

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में बीते साल 8 लाख से कम बच्चे पैदा हुए। ये पहले कभी नहीं हुआ था। अब वहां की सरकार बच्चों की परवरिश के लिए पेरेंट्स को छुट्टियों के साथ-साथ भारी रकम भी देने की योजना बना रही है। ये दिक्कत अकेले जापान की नहीं, दुनिया के कई देश युवा आबादी के खत्म होने का डर लिए जी रहे हैं। ये तो हुआ समस्या का एक पहलू, लेकिन इसका आगे का हिस्सा ज्यादा डरावना है।

आबादी बढ़ना रुक गई तो क्या होगा ?

अमेरिकी थिंक टैंक, प्यू रिसर्च सेंटर का मानना है कि इस सदी के आखिर तक जन्मदर कम होते हुए लगभग खत्म हो जाएगी। यानी नई संतानें नहीं होंगी। साल 2100 तक दुनिया की आबादी लगभग 10.9 बिलियन हो चुकी होगी। इसके बाद हर साल इसमें 0.1% से भी कम बढ़त होगी। जिस तरह के दबाव में आजकल के युवा जी रहे हैं, बहुत मुमकिन है कि जन्मदर घटते हुए रुक ही जाए। फिर कोई नया बच्चा दुनिया में नहीं आएगा। जो आबादी होगी, वहीं ठहरी रहेगी। तब आगे क्या होगा?  ये स्थिति एक तरह का बेबी-बैन है। इंसान इसमें कुछ सालों या मान लीजिए 5 दशक के लिए संतान-जन्म से तौबा कर लें, इसके बाद जो होगा, वो किसी ने भी नहीं सोचा होगा। हमारी प्रजाति मतलब होमो सेपियंस धीरे-धीरे खत्म होने लगेगी। लोग या तो बूढ़े होंगे, या कम बूढ़े होंगे। अस्पतालों में सामान्य दिनों में भी भीड़ जमा रहेगी। किसी को पता नहीं होगा कि उनका नंबर कितने दिनों में आएगा।

कुछ ही सालों में आधी रह जाएगी आबादी

एक बदलाव ये होगा कि बेबी-केयर के लिए बनी सारी इंडस्ट्रीज रातोंरात बंद हो जाएंगी। न मिल्क पावडर की जरूरत होगी, न डायपर की। इससे लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। इसके बाद जो तनाव होगा, वो अलग चीज हैं, लेकिन फिलहाल हम इसपर फोकस करते हैं कि आगे क्या होगा। अगर 5 दशकों तक कोई नया बच्चा न जन्म ले, तो दुनिया की आबादी आधी होकर 5 बिलियन रह जाएगी। ये वही आबादी है, जो साल 1987 में हुआ करती थी।

क्या कम होती आबादी बनेगी तीसरे विश्व युद्ध का कारण ?

बेबी-केयर काफी खर्चीली चीज है। जन्मदर रुकने पर ये खर्च भी बंद हो जाएगा। इससे हरेक के पास काफी पैसा होगा, जिसका असर देश की इकनॉमी पर भी दिखेगा। अमीर लोगों वाला देश ज्यादा अमीर होगा। वो अपने यहां इंडस्ट्रीज चलती रहें, इसके लिए दूसरे देशों के लोगों को बुलाएगा। मान लीजिए, जापान फिलहाल बूढ़ी आबादी वाला देश बन चुका है, लेकिन पैसे उसके पास खूब हैं। ऐसे में अगर वो किसी गरीब देश के लोगों को ज्यादा वेतन का ऑफर देकर बुलाए तो लोग चले जाएंगे। ये जापान के लिए तो अच्छा होगा, लेकिन जिस देश से लोग जा रहे हैं, उसकी इकनॉमी के लिए खतरा बढ़ेगा। इससे ये डर भी रहेगा कि देश आपस में इंसानों के लिए लड़ने लगें। हो सकता है कि तीसरा विश्व युद्ध इसी बात पर हो जाए कि फलां देश ने हमारे यहां से लोगों को अपने यहां बुला लिया।

जेंडर डायनेमिक्स तेजी से बदलेगा

छोटे बच्चों की मांएं आमतौर पर काफी सारे समझौते करती हैं। वे या तो नौकरी छोड़ देती हैं, या ऐसा काम करती हैं, जो उनकी स्किल से काफी कम हो, लेकिन जो उन्हें घर पर रहने का मौका दे सके। बच्चे नहीं होंगे तो महिलाओं से ये दबाव हट जाएगा। वे पुरुषों की बराबरी पर या शायद उनसे आगे खड़ी हों। काम की जगह पर हुआ ये बदलाव कई दूसरे बदलाव लाएगा। क्योकि कोई नया बच्चा जन्म नहीं ले रहा होगा तो संभव है कि औरत-मर्द के बीच का बायोलॉजिकल फर्क भी खत्म हो जाए। साइंटिस्ट का भी यही मानना है कि इंसान हमेशा के लिए धरती पर नहीं। पॉपुलेशन दर कम होने के अलावा इसकी एक वजह और भी है। हमारे यानी होमो सेपियंस के जेनेटिक वेरिएशन बहुत कम हैं। हमारे भीतर डीएनए में खास फर्क नहीं तो किसी भी बदलाव के साथ हमारे खत्म होने का खतरा बढ़ रहा है। जैसे हो सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग का पहला शिकार हम ही बनें और धरती से इंसान खत्म हो जाएं

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