नज़रिया

कैसा होगा नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों का भविष्य?

शिक्षा हर देश, समाज, परिवार, गांव, मोहल्ले और क्षेत्र में बदलाव और जागरूकता का माध्यम होती है। किसी भी समाज के विकास के लिए शिक्षित होना बेहद आवश्यक और महत्वपूर्ण रहता है।

नजरिया : शिक्षा हर देश, समाज, परिवार, गांव, मोहल्ले और क्षेत्र में बदलाव और जागरूकता का माध्यम होती है। किसी भी समाज के विकास के लिए शिक्षित होना बेहद आवश्यक और महत्वपूर्ण रहता है। 15 जून से साल 2023-24 सत्र के लिए स्कूल खुलने जा रहे हैं। ऐसे में नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद छात्रों के परीक्षा,पैटर्न और एक्टिविटी में हर तरह से बदलाव देखने को मिलेगा। हर साल छात्रों को सेम शिक्षा नीति के तहत शिक्षा, एक्टिविटी और सिलेब्स के तहत शिक्षा ग्रहण करना पड़ता था, लेकिन साल 2020 में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी की गई शिक्षा नीति में बदलाव देखने को मिल रहे है। शिक्षा नीति में बड़ा बदलाव 34 सालों बाद देखने को मिल रहा है। इससे पहले जो शिक्षा नीति चल रही थी उसे सन् 1986 में लागू किया गया था। हालांकि इतने सालों में शिक्षा नीति में बदलाव नहीं होने से पिछली पीढ़ी जो पढ़ाई कर चुकी है,उनके साथ थोड़ा अन्याय भी देखने को मिला है, क्योंकि इन 34 सालों में टेक्नोलॉजी और डेवलेपमेंट में तेजी से बदलाव हुए है। जिसकी वजह से पिछली पीढ़ी इसमें कहीं न कहीं पिछड़ गई है।

स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति

लोग मॉडर्न टेक्नोलॉजी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। ऐसे में छात्रों को न केवल किताबी ज्ञान बल्कि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान और टेक्निकल ज्ञान भी दिया जाना जरूरी है। ताकि छात्र अपनी योग्यताओं को बढ़ा सकें और उसके बलबूते अपने भविष्य को बेहतर बना सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए साल 2020 में संसद द्वारा नई शिक्षा नीति लाने के लिए बिल पास किया गया। यह स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पहले दो बार शिक्षण के तरीके में बदलाव हो चुका है। पहला इंदिरा गांधी के दौरान और दूसरा राजीव गांधी के दौरान। बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए इस नई शिक्षा नीति के बारे में हर बच्चे और उनके माता-पिता को जानकारी होनी चाहिए।

मातृभाषा को बढ़ावा देगी नई शिक्षा नीति

कहा जाता है कि वक्त के साथ परिवर्तन बेहद जरूरी है। ऐसे में प्रकृति भी इस परिवर्तन को अपना रही है। फिर देश में पढ़ाई और शिक्षा की बात में हम पीछे कैसे रह सकते है। शिक्षा हमारे देश और व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन का आधार होती है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य पालकों को केवल किताबी ज्ञान देना नहीं है बल्कि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान भी देकर उनकी मानसिक बौद्धिक क्षमता को और भी ज्यादा प्रबल बनाना है। इस नई शिक्षा के माध्यम से बच्चों के मन में नए-नए चीजों को सीखने के प्रति रुचि जगाना है। ताकि बच्चे जीवन में अपनी योग्यताओं के बलबूते एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकें। इसके अतिरिक्त अपने मातृभाषा को बढ़ावा देना भी इस शिक्षा नीति का उद्देश्य हैं।

पाठ्यक्रम के मॉडल में परिवर्तन

कैसा होगा 5 वाला फॉर्मूला?

नई शिक्षा नीति में शिक्षा के पाठ्यक्रम को 5+ 3+ 3+ 4 के मॉडल में तैयार किया जा रहा है,जबकि पहले यह 10+2 के अनुसार था। इस मॉडल के अनुसार प्रथम 5 वर्षों को फाउंडेशन स्टेज के रूप में रखा गया है, जिसका उद्देश्य बच्चों के बेहतरीन भविष्य के लिए मजबूत नींव को तैयार करना है। इन 5 वर्षों के पाठ्यक्रम को एनसीईआरटी के द्वारा तैयार किया जाएगा। जिसमें प्राइमरी के 3 और पहली और दूसरी कक्षाओं को सम्मिलित किया जाएगा। इस नई मॉडल के कारण बच्चों के लिए किताबों का बोझ हल्का हो जाएगा और अब वे आनंद लेते हुए नई चीजों को सीख पाएंगे।

3+3 वाले फॉर्मूले में क्या होगा?

इसके अगले 3 वर्षों में तीसरी, चौथी और पांचवी कक्षाओं को शामिल किया गया है। जिसका उद्देश्य बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना है और इन कक्षाओं के बच्चों को गणित, कला, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाया जाएगा। इसके बाद के 3 वर्षों को मध्यम स्तर की तरह माना जाएगा। जिसमें 6, 7, और 8 वीं कक्षाओं को शामिल किया जाएगा। इन कक्षाओं के छात्रों को एक निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाया जाएगा।इसके अलावा जिस शिक्षा से अब तक छात्र वंचित थे, उन्हें अब वहीं शिक्षा दी जाएंगी। यानि कि अब बच्चों को टेक्निकल नॉलेज भी दिया जाएगा। जिससे वे भी अन्य देशों के बच्चों की तरह ही छोटी उम्र में ही सॉफ्टवेयर और ऐप बनाना सीख पाएंगे।

आखिरी 4 वाला फॉर्मूला?

अब तक 9 से 12वीं तक दो फॉर्मेट में बच्चों को शिक्षा दी जा रही थी। जिसके तहत बच्चों को मनचाहे पाठ्यक्रम को सिलेब्स में शामिल करने का अधिकार नहीं था, लेकिन अब नई शिक्षा नीति के आने से छात्र अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम को अपने सेलेब्स में शामिल कर पाएंगे। इस तरीके से नई शिक्षा नीति के माध्यम से न केवल छात्रों के पाठ्यक्रम में बदलाव होगा बल्कि बच्चों के शिक्षण के तरीके में भी सुधार आएगा। नई नीति के बाद ग्यारवी और बारहवीं के पाठ्यक्रम में स्ट्रीम सिस्टम खत्म हो जाएगा। अब बच्चे अपने मनपसंद के अनुसार कोई भी विषय का चयन कर सकते हैं। जैसे यदि कोई साइंस स्ट्रीम का विद्यार्थी हैं और वह आर्ट स्ट्रीम के किसी विषय को पढ़ने की रूचि रखता है तो वह उसे भी पढ़ सकता है। इन सबके अतिरिक्त नौवीं से 12वीं तक की परीक्षा सेमेस्टर वाइज ली जाएगी, जिसके अनुसार साल में दो बार परीक्षा होगी और दोनों सेमेस्टर के मार्क्स को जोड़कर फाइनल रिजल्ट पेश किया जाएगा। ऐसे में अब छात्रों को पूरे साल पढ़ाई करनी पड़ेगी, क्योंकि पहले ज्यादातर बच्चे जिन्हें पढ़ाई में मन नहीं लगता था, वे एग्जाम में पास होने के लिए सिर्फ फाइनल एग्जाम के कुछ दिन पहले तैयारी करते थे और रट्टा मारकर पासिंग मार्क्स तक ले आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

बोर्ड की परीक्षा अब नहीं लगेगी बोझ

अब बच्चे को परीक्षा में पास होने के लिए रटना नहीं बल्कि समझ कर पढ़ना होगा। इसके साथ ही यदि बच्चे को किसी भी विशेष विषय में रुचि है और वह उसका प्रैक्टिकल ज्ञान लेना चाहता है तो वह इंटर्नशिप भी प्राप्त कर पाएगा। अपने इंटर्नशिप कार्य को वह स्कूल के दौरान ही कर सकता है। इससे यह फायदा होगा कि कोई भी छात्र जिस विषय में उसको रूचि है, उस विषय में वह स्कूली शिक्षा के दौरान ही बेहतर बनने की तैयारी कर सकता है। वहीं बोर्ड की परीक्षा अब छात्रों को बोझ नहीं लगेगी क्योंकि अब वह जिस भी भाषा में बोर्ड की परीक्षा देना चाहेगा। उसमें परीक्षा दे सकता है।

मार्कशीट में भी होगा बदलाव

इसके साथ ही अब मार्कशीट का पैटर्न भी बदला जाएगा।  अब जो मार्कशीट तैयार होगी, उसमें ना केवल बच्चों के विषय के मार्क्स बल्कि उसके व्यवहार, मानसिक क्षमता और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी को भी ध्यान में रखा जाएगा। इससे यह फायदा होगा कि अब बच्चो को केवल पढ़ाई के प्रति ही नहीं बल्कि अन्य गतिविधियों में रुचि लेने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा।

कॉलेज के छात्रों पर नई शिक्षा नीति का प्रभाव

सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति न केवल स्कूली बच्चों के लिए है बल्कि यह कॉलेज के छात्रों के लिए भी लागू होता है। जो बच्चे अपने स्कूल पास आउट कर चुके हैं और अब वे कॉलेज में एडमिशन कराने वाले हैं तो उनके लिए यह नीति काफी फायदेमंद होने वाली है। क्योंकि अब कॉलेज के पाठ्यक्रम भी पहले की तुलना में काफी बदल जाएंगे। स्कूली बच्चों की तरह अब कॉलेज के बच्चे भी अपने मनपसंद के अनुसार विषय का चयन कर पाएंगे। यही नहीं बल्कि जो बच्चे बारहवीं में खराब मार्क्स लाने के कारण अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाते थे। अब उनको एक और मौका दिया जाएगा। जो बच्चे 12वीं में अच्छे मार्क्स नहीं लाए हैं, वे कॉमन एप्टिट्यूड टेस्ट दे सकते हैं और फिर इस टेस्ट में जो मार्क्स लाया जाएगा, उससे उनके बारहवीं कक्षा के मार्क्स के साथ जोड़कर रिजल्ट तैयार किया जाएगा और फिर इस अनुसार वे अपने मनपसंद और अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाएंगे।

बीच में पढ़ाई छोड़ने पर क्या होगा?

यही नहीं अब ग्रेजुएशन कोर्स को 3 और 4 साल में बांट दिया गया है। पहले ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के लिए पूरे 3 साल या 4 साल के कोर्स को कंप्लीट करना पड़ता था, उसके बाद ही ग्रेजुएशन की डिग्री मिलती थी। बीच में यदि कोई विद्यार्थी शिक्षा छोड़ देता था तो उसे ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिलती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब जो छात्र अपने ग्रेजुएशन कोर्स के दौरान यदि एक  साल में पढ़ाई छोड़ देते हैं तो उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाएगा। वहीं यदि वे 2 साल के बाद फोर्स को छोड़ते हैं तो उन्हें डिप्लोमा सर्टिफिकेट दिया जाएगा, वहीं यदि 3 साल के कोर्स को पूरा करने के बाद छोड़ते हैं तो उन्हें बैचलर की डिग्री दी जाएगी।

रिसर्च सर्टिफिकेट के साथ बैचलर डिग्री

यदि कोई छात्र ग्रेजुएशन की डिग्री 4 साल में करता है तो उसे रिसर्च सर्टिफिकेट के साथ बैचलर डिग्री दी जाती है। इससे उन छात्रों के लिए फायदा होगा, जो कॉलेज के दौरान किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे होते हैं। इस तरीके से अब ग्रेजुएशन के दौरान बच्चे किसी परिस्थितियों के कारणवश चाहे तो वह अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ भी सकते हैं और उसके अनुसार उन्हें सर्टिफिकेट दे दिया जाएगा और फिर बाद में परिस्थिति ठीक होने के बाद यदि वे आगे दुबारा पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं और ग्रेजुएशन की डिग्री पूरा कंप्लीट करना चाहते हैं तो उन्हें दोबारा शुरुआत से पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि जहां उन्होंने ड्रॉप किया था उसके बाद से ही उन्हें पढ़ने को मौका मिलेगा।

नई शिक्षा नीति से स्कूल कॉलेज के फीस पर प्रभाव

नई शिक्षा नीति से न केवल स्कूल कॉलेज के पाठ्यक्रम में बदलाव आएंगे बल्कि मनमाने ढंग से बच्चों से फीस वसूलने का काम भी बंद हो जाएगा। अब कोई भी स्कूल या उच्च शिक्षा संस्थान अपने अनुसार बच्चों से फीस नहीं लेगा बल्कि एक निश्चित अमाउंट फीस के तौर पर तय किए जाएंगे और उस निश्चित अमाउंट से ज्यादा कोई भी स्कूल या कॉलेज बच्चों को फीस देने के लिए बाध्य नहीं कर पाएगी।

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