यहां होता है धरती पर नरक की आग का एहसास
मार्च के महीने में ही आसमान से आग बरस रही है। इतना ही नहीं भारत में तो गर्मी फरवरी के महीने में ही 145 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है।

मार्च के महीने में ही आसमान से आग बरस रही है। इतना ही नहीं भारत में तो गर्मी फरवरी के महीने में ही 145 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। लेकिन दुनिया का एक इलाका ऐसा भी है। जहां पूरे साल न्यूनतम तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही बना रहता है। और कभी-कभी तो गर्मी इतनी ज्यादा होती है कि पारा 145 डिग्री सेल्सियस भी पहुंच जाता है। इस तापमान पर इंसानों की बात छोड़ दें, जीव-जंतुओं का रहना भी नाममुकिन है। इतनी गर्मी के चलते ही इस जगह को ‘क्रुअलेस्ट प्लेस ऑन अर्थ’ भी कहा जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं। धरती पर नरक की आग का अहसास करा देने वाले दनाकिल रेगिस्तान की। अफ्रिका के इथोपिया इलाक़े में स्थित दनाकिल रेगिस्तान दुनिया का सबसे गर्म, सबसे सूखा, और धरती पर सबसे निचला इलाका है। जहां दुनिया के दूसरे रेगिस्तानों में मौसम के हिसाब से तापमान कम या ज्यादा होता रहता हैं, वहीं दनाकिल में बारहों महीने, सातों दिन और 24 घंटे तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना रहता है। यहां जिंदगी का दूसरा नाम मौत है। इसीलिए दनाकिल को ‘क्रुअलेस्ट प्लेस ऑन अर्थ’की बदनामी हासिल है। यहां के गरम तालाबों में चौबीसों घंटे पानी उबलता रहता है। सल्फर वाले ये तालाब जब सूख जाते हैं,,, तो जमीन पर पपड़ी ही पपड़ी दिखती है। ये दुनिया का ऐसा रेगिस्तान है, जहां ज्वालामुखी का लावा भी अठखेलियां करता है। ये नजारा इतना अजीब होता है कि साल 2011 से वॉल्कनो-डिसक्वरी नाम की फर्म हजारों डॉलर लेकर सैलानियों को इस गर्मिस्तान का दर्शन कराने के लिए लाती है। यहां का मौसम बेहद ज़ालिम है।
इतनी गर्म जगह पर भी रहते हैं लोग
फिर भी आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि यहां आज भी बहुत से लोग रहते हैं। इथोपिया के अफ़ार समुदाय के लोग इस बेरहम मौसम वाले ठिकाने को अपना घर मानते हैं। यहां पर तीन टेक्टॉनिक प्लेट्स मिलती हैं। ये वो प्लेटें हैं, जिन पर हमारे महाद्वीप और महासागर टिके हुए हैं। और यही प्लेटें इस जगह को खास बनाती हैं। हालांकि टेक्टॉनिक मूवमेंट के चलते ये प्लेटें हर साल एक से दो सेंटीमीटर एक दूसरे से दूर जा रही हैं। दरअसल, धरती के अंदर इतनी उथल-पुथल मची हुई है कि अक्सर अंदर की आग बाहर निकल आती है। इस कारण पृथ्वी के अंदर से गर्म लावा बाहर आ जाता है, और ज्वालामुखी क्रियाओं में तेजी देखने को मिलती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जिस रफ़्तार से ‘दनाकिल डिप्रेशन’ के नीचे धरती खिसक रही है, उससे लाखों साल बाद यहां गहरा गड्ढा हो जाएगा। जिसे समुद्र का पानी पूरी तरह से भर देगा और ‘दनाकिल डिप्रेशन’ लाखों साल बाद एक नए समंदर की शुरुआत का ठिकाना होगा। समंदर की शुरुआत तो लाखों साल बाद होगी, लेकिन लाखों साल पहले इसी जगह से इंसान का विकास शुरू हुआ था। 1974 में वैज्ञानिक डोनाल्ड जॉनसन और उनकी टीम ने यहीं पर लूसी नाम का कंकाल खोज निकाला था। वो ऑस्ट्रेलोपिथेकस नस्ल की थी जो इंसान के सबसे पुराने रिश्तेदार माने जाते हैं। आज के मानव से पहले की कई नस्लों के कंकाल यहां से मिले हैं। इसीलिए वैज्ञानिक इसे इंसान के विकास का पहला ठिकाना मानते हैं। लेकिन ‘दनाकिल रेगिस्तान तक पहुंचना इतना भी आसान नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए ऊबड़-खाबड़ सड़कों, धूल भरे रास्तों और रेगिस्तानी इलाक़े से गुज़रना होता है। यहां का माहौल देखकर आपको लगेगा कि भला इतनी बेरहम जगह पर कौन रहेगा। मगर, यहां अफार समुदाय के लोग रहते हैं। आप यहां जलते हुए सूरज में तप जाएंगे। मगर अफार समुदाय के लोगों को इस गर्म, रूखे माहौल में रहने की आदत हो गई है। उन्हें यहां के माहौल में रहने की ऐसी आदत हो गई है कि भूख-प्यास भी नहीं लगती।