क्या आपने देखा है ऐसा शिव मंदिर, जो दिन में दो बार आंखों के सामने ही हो जाता है गायब
आज हम आपको गुजरात के ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दिन में दो बार आंखों के सामने से गायब हो जाता है।

बृजेश रघुवंशी
हमारा देश धार्मिक आस्था का देश है।यहां अलग-अलग समुदाय रहते हैं और उनकी अलग-अलग मान्यताये हैं।अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग मंदिर हैं और उन मंदिरों की अलग कहानियां।हर मंदिर के बनने की अलग कहानी है।कई सारे मंदिर ऐसे हैं।जहां आज भी रहस्य छिपे हुए हैं।जिनके बारे में आज तक विज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाए हैं।आज हम आपको इनमें से ही एक ऐसे रहस्यमय मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।जिस के बारे में जानकर आप दंग रह जाएंगे।जीहां, हम बात कर रहे हैं।एक अनोखे शिव मंदिर की।जिसके बारे में ये कहा जा सकता है कि कभी-कभी केवल भक्ति ही हमें मंदिर तक नहीं ले जाती है। बल्कि मंदिर से जुड़ी कुछ अनोखी घटनाएं हमें अपनी ओर खींचती हैं।इसी तरह का है ये शिव जी का मंदिर।जो हर दिन एक दिलचस्प दृश्य से गुजरता है।.ये वो मंदिर है।जो दिन में दो बार आँखों के सामने से ही ओझल हो जाता है।यानी गायब हो जाता है।आपको सोचकर आश्चर्य होगा।लेकिन ये हकीकत है।अपनी इसी खासियत की वजह से ये मंदिर भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।यहां आने वाले भक्त हर दिन इस मंदिर को गायब होते देखते हैं।150 साल पुराना ये मंदिर गुजरात के वड़ोदरा से कुछ दूरी पर जंबूसर तहसील के कावी कंबोई गांव में बसा है।और स्तंभेश्वर महादेव मंदिर नाम से स्थित है।इस अद्भुत स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को गायब मंदिर नाम से भी जाना जाता है
आखिर क्यों गायब हो जाता है मंदिर?
गुजरात में मौजूद स्तंभेश्वर महादेव मंदिर। राज्य में घूमने के लिए अविश्वसनीय स्थानों में से एक कहलाता है।इस मंदिर को शिव जी का अनोखा धार्मिक स्थल कहते हैं।जिसका कारण है।इस मंदिर का रोजाना जलमग्न होना और फिर से प्रकट होना।जी हां, आपकी जानकारी के लिए बता दें स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को भारत में विलुप्त होने वाले एकमात्र शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है। हांलाकी आंखों के सामने से गायब होने के कुछ समय बाद ही ये मंदिर अपने स्थान पर नजर आने लगता है। वैसे यह कोई चमत्कार नहीं। बल्कि प्रकृति की एक मनोहारी परिघटना है।समुद्र किनारे मंदिर होने की वजह से जब भी ज्वार-भाटा उठता है। तब पूरा मंदिर समुद्र में समा जाता है।यही वजह है कि लोग मंदिर के दर्शन तभी तक कर सकते हैं।जब समुद्र में ज्वार कम हो।ऐसा बरसों से होता आ रहा है।यह आज की बात नहीं है।ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर के अंदर आता है।और शिवलिंग का अभिषेक कर वापस लौट जाता है।यह घटना प्रतिदिन सुबह और शाम को घटित होती है।अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित मंदिर के सागर में सामने से इस मंदिर को देखने के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर निर्माण की अनोखी है कहानी
इस मंदिर के निर्माण की कहानी भी काफी रोचक है। स्कंदपुराण के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कैसे किया गया या इसकी उत्पत्ति कैसे हुई इस कथा के अनुसार बताते हैं।राक्षक ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर लिया था।जब शिव उसके सामने प्रकट हुए, तो उसने वरदान मांगा कि उसे सिर्फ शिव जी का पुत्र ही मार सकेगा और वह भी छह दिन की आयु का।शिव ने उसे यह वरदान दे दिया था।वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने हाहाकार मचाना शुरू कर दिया।देवताओं और ऋषि-मुनियों को आतंकित कर दिया।जिसके बाद देवता महादेव की शरण में पहुंचे।शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत के कुंड में उत्पन्न हुए शिव पुत्र कार्तिकेय के 6 मस्तिष्क, चार आंख, बारह हाथ थे।कार्तिकेय ने ही मात्र 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया।जब कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का भक्त था।तो वे काफी व्यथित हुए।फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवा दें।इससे उनका मन शांत होगा।भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया।फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
कैसे पहुंचें कवि कम्बोई स्थित इस मंदिर?
- कवि कंबोई वडोदरा से लगभग 78 किमी दूर है।
- आप ट्रेन और बस से वडोदरा पहुंच सकते हैं।
- वडोदरा रेलवे स्टेशन कवि कंबोई के सबसे नजदीक है।
- कवि कंबोई वडोदरा, भरूच और भावनगर से जुड़ा हुआ है।
- वडोदरा से मंदिर तक आप प्राइवेट टैक्सी भी ले सकते हैं।