सियासी तर्जुमा

मुद्दा पकड़ो और मेंदोला बन जाओ…

इन दिनों इंदौर...

गप-सच

ललित उपमन्यु

‘जनबल’ के विधायक रमेश मेंदोला उर्फ दादा दयालु आमतौर पर राजनीति में शांति के पक्षधर हैं। कम ही ऐसा मौका आता है जब उनकी राजनीति में शोर-शराबा हो इसके बादवजूद उनकी राजनीति खूब शोर करती है। हाल में सीएम शिवराज सिंह ने दारू अड्डों के पड़ोस में चलने वाले खाने-पीने के अड्डों उर्फ अहातों पर तालाबंदी की घोषणा की तो बाकी नेता तो वाट्सअप यूनिवर्सिटी पर ही शोध पत्र प्रस्तुत करने में ही लगे रहे लेकिन दादा दयालु ने सीएम एक इस फैसले के समर्थन में क्षेत्र में जुलूस बाजी कर दी। बता ही देते हैं कि उनका क्षेत्र यानी कि विधानसभा नंबर दो किसी जमाने में दारू-दंगल के लिए कुख्यात था। महिलाएं इससे खासी परेशान थीं लेकिन पहले कैलाश विजयवर्गीय फिर उनके हनुमान रमेश मेंदोला ने यहां की विधायकी संभाली तो आज यह इलाका इंदौर के सर्वाधिक विकसित और धन-धान्य से भरपूर इलाकों में शुमार होता है। मामा की अहाता बंदी से खुशहाली में बची कसर भी पूरी हो जाएगी ऐसा मेंदोला का मानना है..बस जुलूसबाजी इसीलिए थी। बोला ना…मुद्दा पकड़ो-मेंदोला बन जाओ। बाकी सब कुशल-मंगल है।

मैदान के लिए मैदान पकड़ा, कुछ नहीं हुआ

मैदान सरकारी है और सरकार चलाने वालों का ही उस पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि एक सरकारी अफसरजी सब पर भारी पड़ रहे हैं। दरअसल महू के स्कूल के एक मैदान को निजी संस्था टुर्नामेंट के लिए अल्प समय के लिए लेना चाहती है लेकिन सरकारी अफसरजी ने साफ कर दिया है कि मैदान आपको दे दिया तो उन बच्चों का क्या होगा जो वहां खेलकूद करते हैं। कहानी यह कि इस मैदान के लिए भाजपा, कांग्रेस के कई दिग्गजों के यहाँ से अफसर जी को फोन लग चुका है। और.. अफसरजी का खुलेआम जवाब यह है कि… आयोजक ने पहले कांग्रेसियों से फोन लगवाया, अब भाजपा के फलाँ.. फलां… और फलाँने नेता का फोन लगवा चुका है। मैदान तो नहीं दे पाएंगे। अब बोलो..खुद अफसरजी के श्रीमुख से इतने सारे नेताओं का नाम निकल रहे है कि इन-इन ने मुझे फोन लगा दिए हैं। ये नाम हल्के-पतले नहीं हैं। उसके बाद भी मैदान नहीं मिलेगा। जाओ जी।

हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक…

आज हुआ..। कल हुआ..। अब तो हो ही जाएगा…। इनका और उनका उद्दार पक्का समझो..। ये और वो भी कुर्ता, कलफ के साथ तैयार हो गए लेकिन वही हुआ जो होता रहा है। क्या हुआ ? कुछ नहीं हुआ। जी हाँ.. मंत्रि मंडल विस्तार, पुर्नगठन और कुछ को इधर, कुछ को बाहर, कुछ को अंदर करने की जो सुगबुगाहट चल रही थी वो शांत हो गई है। जैसा कि हमेशा होता है। इस बार भी हुआ। अभी कुछ नहीं। इस चक्कर में वो नेताजी जरूर घनचक्कर हो जाते हैं जिन्हें सरकार से भी बड़े पद वितरक ‘उम्मीद से’ कर देते हैं पर मिलता कुछ नहीं है। इस बार भी दो पुरुष और एक महिला नेता को इन वितरकों ने तैयार रहने के चर्चे चला दिए थे, पिछले तमाम कडुए अनुभव के बवाजूद नेतागण इस बार फिर लड्डूबाजी के लिए तैयारी हो गए थे लेकिन फूट गए सपनों के लड्डू। कहने वाले कह रहे हैं, अभी तो निगम-मंडलों की फाइलें ही इतनी आहिस्ता-आहिस्ता चल रही हैं कि मंत्रि मंडल का नंबर तक आने से पहले  आचार संहिता न आ जाए। इसलिए शांति से रहें, स्वस्थ रहें और आगे की तैयारी करें।

तारीख पे तारीख…

कांग्रेस में नगर अध्यक्ष नाम का पद अभी भी प्रभारी के भरोसे है। करीब दो महीने पहले अध्यक्ष की कुर्सी पर अरविंद बागड़ी और फिर विनय बाकलीवाल..फिर महेंद्र जोशी उठते-बैठते रहे। अभी महेंद्र जोशी बैठे हैं जो मूल निवासी शुजालपुर के हैं और इंदौर के प्रभारी हैं। अध्यक्ष बनाने-बिगाड़ने का यह खेल कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के कारण ऐसा बिगड़ा की बनने का नाम ही नहीं ले रहा है। रोज किसी न किसी नेता का नाम अध्यक्ष के लिए चलता है और चलते हुए इतना दूर निकल जाता है कि लौटकर ही नहीं आता है। कभी गोलू अग्निहोत्री तो कभी एक पूर्व विधायक को कांग्रेस विश्वविद्यालय के प्रतापी छात्र कुर्सी पर बैठा देते हैं पर असल में पूर्णकालिक अध्यक्ष के इंतजार में कुर्सी आज भी खाली है। पहले कहा गया फरवरी में कर देंगे। फरवरी निकल गई। फिर कहा गया रायपुर की बड़ी बैठक निपट जाए फिर देखते हैं। निपट गई। किसी ने नहीं देखा। इंदौर के कई नेता रायपुर मुँह दिखाई से लेकर जुबान चलाई तक कर आए लेकिन अभी भी फाइल अटकी ही है…बोले तो तारीख पे तारीख…। चुनाव आने वाले हैं भाई…। पता तो है ना।

कुछ सुना क्या…

बार-बार पार्षद रहने की लत छूट जाने..यानी इस बार हार जाने के बाद एक बड़े से नेताजी गुस्से में हैं। इतने गुस्से में कि जिसे हार का कारण मान रहे थे उनके ही गले पड़ गए। नतीजा यह हुआ कि कानूनी पछड़े में फंसते दिख रहे हैं हारे हुए पार्षदजी।

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