नहीं रहे मशहूर साहित्यकार मंज़ूर एहतेशाम, भोपाल में ली अंतिम सांस
भोपाल: प्रसिद्ध साहित्यकार मंज़ूर एहतेशाम बीती रात इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए , वे 73 साल के थे। साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया था। उनका जाना साहित्य जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। मंज़ूर एहतेशाम काफी समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें करीब एक हफ्ते पहले कोरोना हो गया था। यह अजीब संयोग है कि ढेरों कहानियां रचने वाले मंजूर एहतेशाम की पहली कहानी का नाम ‘रमजान में मौत’ था और वो इसी मुबारक महीने में दुनिया से अलविदा कह गए। उनकी पत्नी सरवर हुसैन का पिछले साल ही निधन हो गया था। मंजूर साहब के बशारत मंज़िल और पहल ढलते कई कहानियों और उपन्यास में से दो ऐसे उपन्यास थे जो उनके अपने शहर भोपाल से वास्ता रखते थे।
उनका जन्म यहां 3 अप्रैल 1948 को भोपाल में हुआ था। आज़ाद भारत के अब तक के सारे उतार-चढ़ाव के गवाह बने अप्रतिम लेखक मंजूर एहतेशाम ने हिंदी समाज को कुछ विरल रचनाएं दी हैं। घरवाले चाहते थे कि वे इंजीनियर बनें, पर उन्हें बनना था लेखक, सो इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधूरी छूट गई। पहले दवा बेचने का काम किया और फिर फ़र्नीचर बेचने लगे। बाद में इंटीरियर डेकोर का भी काम करने लगे, पर लेखन हर दौर में जारी रहा। मंजूर साबह की शिक्षा देश के प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुई। साल 1976 में उनका पहला उपन्यास ‘कुछ दिन और’ प्रकाशित हुआ, हालांकि, उससे 3 साल पहले 1973 में उनकी पहली कहानी रमजान की मौत प्रकाशित हो चुकी थी. मंजूर साहब के बशारत मंज़िल और पहल ढलते कई कहानियों और उपन्यास में से दो ऐसे उपन्यास थे जो उनके अपने शहर भोपाल से वास्ता रखते थे। इन दोनों उपन्यासों में उन्होंने नवाबी दौर के बाद भोपाल की बदलती परंपराओं पर फोकस था। सूखा बरगद, कुछ दिन और जैसे चर्चित उपन्यास लिखे।
पुरस्कार
लेखन के चलते वह वागीश्वरी पुरस्कार, पहल सम्मान और पद्मश्री से अलंकृत हो चुके हैं। मंज़ूर की रचनाएं किसी चमत्कार के लिए व्यग्र नहीं दिखतीं, बल्कि वे अनेक अन्तर्विरोधों और त्रासदियों के बावजूद ‘चमत्कार की तरह बचे जीवन’ का आख्यान रचती हैं। मंज़ूर एहतेशाम की कहानियों में मध्यमवर्गीय भारतीय समाज का द्वंद्वात्मक यथार्थ सामने आता है।
मंजूर एहतेशाम के उपन्यास
कुछ दिन और
सूखा बरगद
पहर ढलते
बशारत मंजिल
दास्तान-ए-लापता
कहानी
रमजान की मौत
तमाशा
तसबीह
पुरस्कार
पद्मश्री-2003
श्रीकांत वर्मा स्मृति सम्मान
वागीश्वरी पुरस्कार
वीर सिंह देव पुरस्कार
पहल सम्मान