नज़रिया

क्या बुजुर्ग दंपति और युवक के लिए सहानुभूति नहीं रखता है ये समाज?

क्या किसी युवक और बुजुर्ग दंपति के लिए देश के मन में जरा सी भी संवेदनाएं नहीं है।

नज़रिया : जब दिल्ली के कंझावला में अंजलि एक्सीडेंट वाली घटना हुई, तो हर कोई सड़कों पर उतरा, विरोध प्रदर्शन किए, धरना दिया, लेकिन क्या सिर्फ देश की एक बेटी के लिए ही लोगों के मन में भावनाओं का सैलाब है। क्या किसी युवक और बुजुर्ग दंपति के लिए देश के मन में जरा सी भी संवेदनाएं नहीं है। गुजरात के सूरत में भी दिल्ली के कंझावला जैसा ही कांड हुआ था, लेकिन इसके विषय में न तो किसी ने संज्ञान लिया और न ही इसे इतनी तवज्जों दी गई। जबकि ये केस कंझावला कांड से पहले यानि 18 दिसंबर का है। वहीं कंझावला कांड 31 दिसंबर और 1 जनवरी की दरमियानी रात में हुआ था। ऐसे में क्या बुजुर्ग दंपति के लिए आवाज उठाना किसी ने भी जरूरी नहीं समझा। बता दें बुजुर्ग दंपति को भी कार सवार ने टक्कर मारी थी। जिसमें बुजुर्ग महिला ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था और उनका शव घटनास्थल से ही बरामद हुआ था, लेकिन बुजुर्ग का शव और गाड़ी 12 किलोमीटर दूर से बरामद हुआ था। जिसको लेकर न तो किसी ने कोई संज्ञान लिया और न ही इस खबर को प्रकाशित करना जरूरी समझा।

फरार हो गया आरोपी

और तो और आरोपी कार चालक तब से अब तक अपने राज्य से फरार होकर दूसरे राज्य में छिप रहा था। जिसे अब गिरफ्तार किया गया है, लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर इस खबर पर किसी ने भी संज्ञान क्यों नहीं लिया। शायद अगर संज्ञान लिया होता, तो आरोपी इतने दिनों तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर नहीं रहता। गौर करने वाली बात तो ये है कि ये घटना कंझावला केस से पहले की है, लेकिन फिर भी किसी ने भी इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। वहीं एक अन्य घटना की बात करे, तो ठीक कंझावला केस वाले ही दिन देर रात एक फूड डिलेवरी बॉय को भी एक कार ने टक्कर मार दी थी। जिसके बाद युवक उछलकर गाड़ी के बोनट पर आ गिरे था और कार सवार ने उसके बोनट पर मौजूद रहते हुए तब तक कार भगाई थी। जब तक कि उस युवक का शव कार से नीचे नहीं गिर गया।

जनता को नहीं आया तरस

एक अन्य खबर इंदौर की भी सामने आई थी। जहां एक जिम्मेदार बेटा अपने परिवार के लालन-पालन के लिए घर से काम पर निकला था, लेकिन अय्याश और शराबी महिलाओं की तेज रफ्तार कार का शिकार बन गया था, लेकिन घर के उस कमाऊ बेटे की मौत पर न तो इंदौर की जनता को तरस आया और न ही कोई संस्था और न ही मीडिया को। शायद यही कारण था कि उसके न्याय के लिए किसी ने भी आवाज नहीं उठाई। तो क्या ऐसे में ये मान लिया जाए कि हमारा समाज भेड़ चाल चलने का आदि हो गया है।

न्याय का हकदार नहीं बेटा?

जब कंझावला केस हुआ तो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने चीख-चीख कर दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाए। उन लड़कों पर हत्या की धारा लगाने के लिए आवाज उठाती रही, अच्छा काम किया, लेकिन क्या स्वाति मालीवाल जैसे कोई और इतनी हिमाकत नहीं कर सकता था कि इन लोगों के न्याय के लिए जिद पर अड़ जाए। क्या ऐसे में ये सवाल नहीं उठता है कि स्वाति मालीवाल सिर्फ महिलाओं के हित के लिए आवाज उठा सकती है, उनके द्वारा कानून तोड़ने या अपराध करने को लेकर सवाल तक नहीं उठा सकती है। ऐसे में बैंगलुरू में भी एक बुजुर्ग को स्कूटी से बांधकर घसीटा गया। इसके अलावा एक महिला की खतरनाक ड्राइविंग से एक शख्स की जान पर बन आई थी, तो क्या इनके लिए न्याय नहीं मांगा जाना चाहिए। क्या इनके लिए आवाज नहीं उठानी चाहिए। या फिर हमारे देश में सिर्फ एक महिला के साथ अन्याय होने पर ही लोगों के मन दया का भाव आता है। क्या पुरूष इस समाज का हिस्सा नहीं है, क्या बुजुर्ग दंपति सहानुभूति के हकदार नहीं है। क्या वो घर का कमाऊ बेटा न्याय का हकदार नहीं है। जिसके मां बाप की कमाई का जरिया और उनके जीने की आस ही खत्म हो गई।

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