दिल के टुकड़े-टुकड़े करके

वजीरे आजम उज्जैन आए। व्याहा इंदौर। एअरपोर्ट पर अगवानी में इंदौरी नेताओं की भी कतार लगी थी। फोटो क्लिक हो रहे थे। कुछ दिल जलों ने ऐसे फोटो क्लिक कर मोबाइल पर दौड़ाए जिसमें लग रहा था कि वजीरे आजम ने सिर्फ ताई यानी सुमित्रा महाजन से बात की और किसी की तरफ देखा भी नहीं। जिनसे बात नहीं की उनमें कैलाश विजयवर्गीय का भी नाम सरपट दौड़ गया। एअरपोर्ट का ब्यौरा सुन पार्टी में उनके विरोधियों की रक्त मात्रा में अचानक वृद्धि हो गई। अच्छा निपटाया। बढ़ा हुआ रक्त रगों में ठीक से दौड़ा भी नहीं था कि सोशल मीडिया पर दूसरा फोटो दौड़ गया। वजीरे आजम और विजयवर्गीय निकट खड़े होकर मुस्कराते हुए बात कर रहे हैं। मामला भले ही पल-दो पल का हो लेकिन इन दो पलों ने उन विरोधियों की खुशी दो पल में हवा कर दी जो विजयवर्गीय की कथित अनदेखी की सूचना पर हवा-हवा हो रहे थे। सुना है रक्त वृद्धि का स्थान रक्तचाप ने ले लिया है।
आप जिस नंबर से डॉयल कर रहे हैं, वो नहीं उठेगा
काँग्रेस में हर कदम नई जंग है। कौन सा नंबर, किधर डॉयल होकर राँग नंबर बन जाएगा कुछ नहीं पता…। अरविंद बागड़ी, बस यूँ समझो एक मौके पर गाँधी भवन के मुहाने पर पहुँच गए थे। आज अध्यक्ष बने कि कल बने। पर हुआ क्या। कुछ नहीं हुआ। कहने वाले कह रहे हैं और मानने वाले मान भी रहे हैं कि बागड़ी ने गलत नंबर से डॉयल कर दिया था इसलिए लाइन कनेक्ट नहीं हो पाई। गलत नंबर बोले तो जीतू पटवारी के रास्ते वे व्याहा भोपाल होते हुए गांधी भवन तक पहुँचना चाहते थे, सुना है कि पटवारी के लिए भोपाल का राजनीतिक मौसम पूरी तरह अनुकूल नहीं है। इसलिए जैसे ही बागड़ी पर जीतू की मोहर लगी, मौसम खराब हो गया। बादल ऐसे बरसे की बागड़ी की फाइल बहकर फिर इंदौर आ गई। अब मौसम मनमाफिक बनने का इंतजार करिए या नंबर बदलिए।
अब एमपीसीए में विकेट लेने की तैयारी
किक्रेट मैच वाले भैयाजी की मुसीबत बढ़ने वाली । बॉल-बल्ले से जो होना था हो गया लेकिन इससे पहले मैच के टिकट के लिए जो बल्लेबाजी के आरोप एमपीसीए के एक-दो कर्ताधर्ताओं पर लगे उससे बहुत सारी पोल-पट्टी स्टेडियम से बाहर आ गिरी है। सुना है कि एमपीसीए के एक कर्ताधर्ता पर बाउंसर चलाने की तैयारी अंदरऔर बाहर हो गई है। अंदर इसलिए कि भैयाजी ने सारे पत्ते अपने हाथ में रखकर बाकी साथियों को बे-हत्था कर दिया था और बाहर इसलिए कि भैयाजी ने खुद ही ईमानदार बनकर बाहर खुलेआम अफसरों को लताड़ दिया। अब इनकी इमानदारी से किस्से सरे बाजार करने की तैयारी है। मामला दस्तावेजों और जमीन से जुड़ा है। देखते हैं कौन, किसका विकेट लेता है।
तेरा तंबू, मेरा तंबू
दशहरा था और अखाड़े आने-जाने वाले थे। अखाड़ों पर हार-फूल के तंबू लग रहे थे। भाजपा के एक बड़े से नेताजी ने देखा कि एक जो तंबू लगा है वो उसका है जो है तो पार्टी की विचारधारा का पर बोले तो..अपने से विचार नहीं मिलते हैं। फिर क्या था। फोन घनघनाते हुए पहुँचा अफसर जी के पास। ये जो फलाँ जगह पर फलाँ का तंबू लगा है उसे हटाओ। मेरा लगेगा। कैसे हटाएं। उन्हें तो परमिशन दी गई है। तो निरस्त करो। कैसे करें। वो भी वजनदार है। हर बार लगाते हैं। हम नहीं जानते कुछ भी करो। हटाओ। धर्म संकट में फँसे अफसरों ने पार्टी वालों को ही कहा कि नेताजी को समझाओ, अभी भले ही तंबू हटवा देंगे लेकिन आगे जो तंबू में तूफान आएगा उसे कौन संभालेगा। मामला पार्टी वालों ने ही संभाला। जो तंबू लगा था लगा रहने दिया और बड़े नेताजी को बड़ा दिल रखकर इधर-उधर होना पड़ा। मामलामहू का है और जो तंबू उखाड़ा जाना था वो हिंदूवादी नेता लोकेश शर्मा का था। और उखाड़ कौन रहा था…। …अब छोड़ो भी। घर की बात थी घर में निपट गई।
कुछ सुना क्या…?
बिजली कंपनी में हुए घोटाले को जितना अंधेरे में धकेलने की कोशिश हो रही है, स्साला उतना ही रोशनी फैंक रहा है। सुना है घोटाला करने वालों से तेज उसेउजागर करने वाले हैं इसलिए बात बन नहीं रही। खुदा खैर करे…।