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लापरवाही: देश में आॅक्सीजन का उत्पादन पर्याप्त, आपूर्ति व्यवस्था में खामियों से बढ़ी परेशानी

नई दिल्ली। कोरोना (Corona) की दूसरी लहर (Second wave) केवल जानलेवा ही नहीं, बल्कि इससे स्वास्थ्य व्यवस्थाओं (Health systems) की कमियां भी सामने आने लगी हैं। चारो तरफ आॅक्सीजन (Oxygen), बेड, इंजेक्शन की मारामारी मची हुई है। देश में सबसे बड़ी कमी आॅक्सीजन की हो रही है। पर ऐसा, क्यों हो रहा है, हालात क्यों बिगड़ रहे हैं? इसे समझने के लिए देश में तरल आॅक्सीजन के उत्पादन और उसे मरीज तक पहुंचाने की व्यवस्था (arrangement) को समझना होगा। इन्हें समय रहते दूर करके हजारों लोगों का जीवन बचाया जा सकता था, पर सरकार ने कदम उठाने में देर कर दी।

सरकारी आंकड़ों (Official data) के अनुसार हाल तक भारत सालाना 7,127 मीट्रिक टन तरल आॅक्सीजन (7,127 metric tons of liquid oxygen) का उत्पादन कर रहा था। यह सामान्य समय में चिकित्सा व औद्योगिक दोनों उपयोग के लिए काफी था। महामारी ने चिकित्सा उपयोग में मांग चार गुना से भी ज्यादा कर दी। मिसाल के लिए 2019, यानी महामारी के पहले भारत को सलाना 750 से 800 मीट्रिक टन आॅक्सीजन (oxygen) की जरूरत थी। दूसरी लहर आने के बाद 12 अप्रैल को मांग 3,842 मीट्रिक टन हो गई। 10 दिन बाद यानी 22 अप्रैल को यह जरूरत 6,785 मीट्रिक तक जा चुकी थी।





इसलिए पड़ती है रोगी को आॅक्सीजन की जरूरत
पृथ्वी के वातावरण में 21 फीसदी आॅक्सीजन है। हमारे फेफड़े सांस के जरिए भीतर दाखिल हवा से आॅक्सीजन फिल्टर करते हैं। लेकिन कोविड 19 की चपेट में आए रोगी के फेफड़े में आॅक्सीजन को ग्रहण की क्षमता घटने लगती है, ऐसे में उसे 21 फीसदी के बजाय ज्यादा आॅक्सीजन की मात्रा वाली हवा की जरूरत होती है। यही नहीं यह तरल आॅक्सीजन सप्लाई (Oxygen supply) काम आती है।

 

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कैसे बनती है आॅक्सीजन?
हमारे वातावरण में काफी आॅक्सीजन है, लेकिन आपको बताते हैं कि आखिर सिलेंडर के अंदर आॅक्सीजन कहां से आती है। यहां आपको बता दें कि गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन Gas cryogenic distillation processप्रोसेस () के जरिए आॅक्सीजन बनती है। इस प्रक्रिया में हवा को फिल्टर किया जाता है, ऐसा करने से धूल-मिट्टी इससे अलग हो जाती है। इसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी उस पर भारी दबाव डाला जाता है। इसके बाद कंप्रेस हो चुकी हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पानी के कण, कार्बनडाईआॅक्साइड (Carbon dioxide) और हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbons) इससे अलग हो सके। वहीं, जब ये प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो इसके बाद कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिलेशन कॉलम में जाती है।

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