भाजपा नीत गठबंधन (BJP-led coalition) असम में लगातार दूसरी बार सत्ता में आने में सफल रहा है परंतु पश्चिम बंगाल में पहली बार सत्ता में आने का उसका सुनहरा स्वप्न बिखर गया है लेकिन यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि पांच साल पहले संपन्न विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी को मात्र तीन सीटों पर जीत का स्वाद चखने का अवसर मिला हो उसने इन चुनावों में जो शानदार जीत हासिल की है
कृष्णमोहन झा
हाल में ही देश के चार राज्यों पश्चिम बंगाल (West Bengal), केरल (Kerala), असम (Asam), तमिलनाडु Tamil Nadu() तथा केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी (Puducherry) में संपन्न विधानसभा चुनावों (Assembly elections) के नतीजे सामने आ चुके हैं । भाजपा नीत गठबंधन (BJP-led coalition) असम में लगातार दूसरी बार सत्ता में आने में सफल रहा है परंतु पश्चिम बंगाल में पहली बार सत्ता में आने का उसका सुनहरा स्वप्न बिखर गया है लेकिन यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि पांच साल पहले संपन्न विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी को मात्र तीन सीटों पर जीत का स्वाद चखने का अवसर मिला हो उसने इन चुनावों में जो शानदार जीत हासिल की है वह निःसंदेह उसके लिए एक ऐसी ऐतिहासिक उपलब्धि है जिस पर गर्वोन्नत होने का उसे पूरा अधिकार है । भाजपा को अपनी इस सफलता के बावजूद यह मलाल तो अवश्य होगा कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में अपनी सारी ताकत झोंक देने के बावजूद वह तृणमूल कांग्रेस (TMC) को सत्ता से बेदखल करने में सफल नहीं हो पाई। गौरतलब है कि 294 सदस्यीय विधानसभा के इन चुनावों में उसने 200 पार का नारा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi), केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit shah), भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) सहित अनेक केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित पार्टी के दिग्गज नेताओं ने राज्य में दस साल से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की मंशा से यहां पार्टी की चुनावी रैलियों को संबोधित किया था।
देश भर से आए भाजपा नेताओं ने यहां पार्टी के चुनाव अभियान (election campaign) में सक्रिय योगदान किया था । भाजपा की इतनी बडी फौज का सामना करने के लिए तृणमूल कांग्रेस के पास केवल ममता बनर्जी का चेहरा था लेकिन अकेली ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ही भाजपा की इतनी बड़ी फौज पर भारी पड़ गई । पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी के कद का कोई नेता भाजपा के पास न होने के कारण पार्टी अपने किसी भी नेता को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का जोखिम नहीं उठा पाई। कभी ममता बनर्जी के विश्वस्त सहयोगी माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी (Shubhendu Adhikari) को अपने खेमे में शामिल कर लेने में कामयाब होने के बावजूद भाजपा ने न तो उन्हें भावी मुख्यमंत्री (Future chief minister) के रूप में पेश किया और न ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोषित को ममता बनर्जी के कद का नेता माना यद्यपि तृणमूल कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ सांसदों, विधायकों को फोड़ने में मिली सफलता ने भाजपा के हौसले ज़रूर बुलंद कर दिए थे। निश्चित रूप से तृणमूल कांग्रेस के अनेक मजबूत किलों में सेंध लगाने में भाजपा को मिली सफलता ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंताएं बढ़ा दी थीं। चुनावों के पहले और चुनावों की घोषणा के बाद भी तृणमूल कांग्रेस में बड़े पैमाने पर हुई बगावत से उत्साहित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ममता बनर्जी पर यह तंज करने से नहीं चूके थे कि आने वाले समय में एक दिन तृणमूल कांग्रेस में केवल ममता बनर्जी अकेली रह जाएंगी ।
भाजपा नेताओं (BJP leaders) के बयानों से कभी कभी ऐसा महसूस होने लगा था कि राज्य की जनता के बीच भाजपा के तेजी से बढ़ते हुए जनाधार को देखकर भाजपा अति आत्मविश्वास का शिकार बन चुकी है। भाजपा नेता तो यहां तक दावा करने लगे थे मानों राज्य में एक दशक से सत्तारूढ़ पार्टी (ruling party) सैकड़े का आंकड़ा छूने में सफल नहीं हो पाएगी मतगणना के परिणामों ने भाजपा को इसी स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर दिया। मतगणना के नतीजे ममता बनर्जी की पार्टी के लिए लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने का जनादेश लेकर आए। यद्यपि ममता बनर्जी को यह उम्मीद नहीं रही होगी कि नंदीग्राम में उन्हें अपने ही एक पुराने विश्वस्त सहयोगी के हाथों पराजय का सामना करना पड सकता है। भाजपा को पश्चिम बंगाल में चुनाव टिकटों के वितरण में भी अपनी पार्टी के महत्वाकांक्षी नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ा। भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को जो तरजीह दी उसके कारण पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं और नेताओं को इतने आक्रोश से भर दिया कि भाजपा के दफ्तर में तोड़फोड़ की नौबत आ गई। पहली बार सत्ता की दावेदार पार्टी के लिए यह स्थिति न ई मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हुई। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस 2016 में संपन्न विधानसभा चुनावों में 294 में से 211सीटों पर कब्जा करके प्रचंड बहुमत के साथ लगातार बार दूसरी सत्ता में आई थी।उन चुनावों में भाजपा मात्र तीन सीटों पर जीत का स्वाद चखने में सफल हुई थी ।
भाजपा ने उसके बाद राज्य में जनाधार बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास शुरू किए। मध्यप्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार (BJP Government) के एक कद्दावर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) को पार्टी का प्रदेश प्रभारी बनाकर पश्चिम बंगाल में भाजपा को लोकप्रिय पार्टी बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।इसका प्रमाण 2019 के लोकसभा चुनावों में मिला जब राज्य की 18 लोकसभा सीटों (18 Lok Sabha seats) पर भाजपा ने जीत का परचम फहराया और तृणमूल कांग्रेस 22सीटों पर सिमट गई। भाजपा को इस कामयाबी ने इतना उत्साहित कर दिया कि उसके अंदर दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में राज्य की सत्ता पर काबिज होने का आत्म विश्वास जाग उठा। भाजपा के प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा के प्रदेश संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के साथ ही सत्ता रूढ़ TMC के मजबूत किले में सेंध लगाने की रणनीति पर अमल शुरू किया और उन्हें सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब ममता बनर्जी के निकटवर्ती सहयोगी शुभेंदु अधिकारी को भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया। तृणमूल कांग्रेस के और भी कई वरिष्ठ नेता ममता बनर्जी का साथ छोड़कर भाजपा को आकर्षित होने लगे परन्तु आज जब ममता बनर्जी की पार्टी का लगातार तीसरी बार सत्ता में आना सुनिश्चित हो चुका है तब तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले उन नेताओं को यह मलाल अवश्य होगा कि वे अगर उन्होंने पाला नहीं बदला होता तो वे आज TMC की न ई सरकार का हिस्सा होते। गौरतलब है कि ऐसे कई नेताओं को इन विधानसभा चुनावों में पराजय का सामना करना पड़ा है।
बाबुल सुप्रियो, स्वप्न दास गुप्ता और लाकेट चटर्जी (Locket chatterjee) आदि नेताओं की हार से भाजपा सकते में है । भाजपा ने स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं की होगी कि राज्य विधानसभा चुनावों में 200 पार का जो नारा उसने दिया है वह ममता बनर्जी की पार्टी के लिए शुभ सिद्ध होने जा रहा है। पिछले चुनावों में 211 सीटों पर जीत हासिल करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने इस आंकड़े को छू लिया है। इन चुनावों में भाजपा को छोड़कर वाम मोर्चा, कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों का जिस तरह सफाया हो गया है उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि इन सभी पार्टियों के परंपरागत मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान करना पसंद किया। भाजपा ने जयश्री राम का नारा देकर ध्रुवीकरण का जो प्रयास किया था उसमें उसके आंशिक सफलता मिली परंतु ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगाने में भाजपा सफल नहीं हो पाई। भाजपा ने यहां ममता बनर्जी के एक दशक के शासन काल में भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाया था परंतु वह भी उतना प्रभावी साबित नहीं हुआ जितनी उम्मीद पार्टी ने लगा रखी थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाओं ने ममता बैनर्जी को अपना समर्थन प्रदान किया। चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के पैर की चोट ने भी ममता बनर्जी के लिए मतदाताओं के मन में सहानुभूति जगा दी। उन्होंने इन चुनावों में बाहरी का जो मुद्दा उछाला वह भी ममता बनर्जी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। भाजपा शायद यह अनुमान ही नहीं लगा पाई कि इन चुनावों में TMC के पक्ष में अंडर करंट बह रहा है। शायद उसे ऐसे अति आत्मविश्वास ने जकड़ लिया था कि उसे राज्य में हर ओर जीत ही नजर आ रही थी।यह अतिआत्मविश्वास उसके लिए महंगा साबित हुआ।इस सबके बावजूद भाजपा ने राज्य विधानसभा के इन चुनावों में जो सफलता हासिल की है वह निःसंदेह ऐतिहासिक है परंतु भाजपा को तो यह तो स्वीकार करना ही चाहिए कि ममता बनर्जी के कद का कोई नेेता उसके पास न होना इन चुनावों में उसकी पराजय का मुख्य कारण बन गया।
( लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार हैं)