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देवभूमि उत्तराखंड : स्वर्ग देखने से लेकर उसे पाने तक की चाह में ऐसे जोखिम उठाते हैं लोग

भोपाल – “मैंने अपने जीवन में अद्भुत प्राकृतिक आश्चर्यों का अनुभव कर लिया है कि अब अगर मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई गम नहीं है। इस धरती अगर कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है।” कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान भूस्खलन में जान गंवाने से अपने जमाने की बेहद बेहतरीन डांसर और मॉडल प्रोतिमा बेदी की चिट्ठी का सार यही था।  आज इस बात जिक्र यहां इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि देवों की भूमि उत्तराखंड में लाखों लोग भगवान की भक्ति, रोमांच और प्राकृतिक सौन्दर्य की अनुभूति करने लिए कई तरह के खतरों को झेलते हुए चले आ रहे हैं। लेकिन ऐसा क्या है इस भूमि में और क्यों लोग दीवानों की तरह यहां चले आ रहे हैं यहां सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। जिसका जवाब जानना बेहद जरूरी है। तो चलिए आपको बताते हैं जीते जी स्वर्ग का दर्शन कराने वाले मौत के जोखिम से भरे देश पहाड़ किस तरह ज़िन्दगी और मौत के मुहाने पर स्थित है। 

भूमि

 
पहले दुर्गम पहाड़ी रास्ते, हजारों फीट गहरी खाई और बर्फीली हवाएं और फिसलन के बावजूद हर साल लाखों लोग उत्तराखंड आते हैं। कोई यहां पर आकर आध्यात्मिक शांति की खोज करता नजर आता है, तो कोई भगवान की खोज में कई सौ किलोमीटर का फासला तय कर यहां आता है, तो कई लोग तो ऐसे भी हैं जिन्हें प्राकृतिक सौन्दर्य का या कहें कि स्वर्ग से सुन्दर उत्तराखंड का अनुभव करना होता है। तो हर उम्र के लोग यहां चले आते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ तस्वीर भी बदलने लगी है। पहले इस स्वर्ग का अनुभव हर कोई नहीं कर सकता था, ठीक वैसे ही जैसे मरने के बाद हर किसी को स्वर्ग नसीब नहीं होता है। लेकिन अब देवों की भूमि के स्वर्ग का अनुभव करने के लिए लाखों लोग बिना किसी तैयारी के चले आ रहे हैं।  यहीं कारण है कि इस साल चार धाम यात्रा शुरू होने के बाद 70 से ज्यादा की मौत हो चुकी है।

                                              कुछ समय पहले हॉलीवुड की फिल्म आई थी नाम था “एवरेस्ट” जिसका एक डायलॉग है कि हजारों फीट ऊपर विश्व की सबसे ऊँची माउंट एवरेस्ट पर भी चढ़ने वालों की भीड़ लगने लगी है। जहां न पर्याप्त ऑक्सीजन है और न जिंदा रहने के दूसरे संसाधन उसके बाद भी कोई मानने के लिए तैयार नहीं । ठीक वैसे ही तस्वीरें कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई थीं। जिसमें केदारनाथ जाने वाले रास्ते पर जाम लगा हुआ था। तो क्या भगवान केदारनाथ के दर्शनों के लिए भक्तों में इतनी बेचैनी है जो बिना कुछ सोच समझें यहां चले आ रहे हैं । या फिर जिंदा रहते हुए अपनी आँखों से स्वर्ग को देखना चाहते हैं। भगवान केदारनाथ के दर्शनों के पैदल रास्ते पर कुछ किलोमीटर चलने के बाद असली स्वर्ग का अहसास होने लगता है। तापमान बहुत कम हो जाता है, चारों ओर हरे भरे पेड़ नजर और झरने एक अलग ही अहसास कराते है, इसके बाद आगे चलने के बाद बर्फ के पहाड़ नजर आते हैं और अंत में भगवान भोले के दर्शन होते है। स्वर्ग की गोद में बसे केदारनाथ मंदिर तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इसलिए चार धाम यात्रा को लेकर जारी गाइडलाइन को पूरा पढ़ने के बाद ही इस यात्रा पर आना चाहिए। ऐसा न करने पर यह स्वर्ग की यात्रा कई तरह की मुश्किलें खड़ी करने देती है। 

 
                                           स्वर्ग के दर्शनों के लिए इस साल देवभूमि आने वाले करीब 70 से अधिक श्रद्धालु की मौत हुई है। उसमें से तीस से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हादसों के चलते हुई है, वहीं बाकी की मौत अन्य हार्ट अटैक या फिर दूसरी अन्य बीमारियों के चलते हुई है। स्पष्ट है पहाड़ों पर वाहनों का बढ़ता दबाव और बिगड़ती लाइफ स्टाइल के कारण यहां आने वाले मौत का शिकार हो रहे हैं। यहां पर जान बचाने के लिए अभियान चलाने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि पहाड़ अपना मौसम खुद बनाते है। केदारघाटी में इससे पहले आई तबाही के मंजर के निशान अब तक बाकी है जो बताते है कि स्वर्ग भले ही यहां हो, लेकिन इस स्वर्ग के दर्शनों के लिए जल्दबाजी और बिना तैयारी के कभी नहीं आना चाहिए। जो ऐसा करते है उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है। 

वैभव गुप्ता

वैभव गुप्ता मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम हैं। मूलतः ग्वालियर निवासी गुप्ता ने भोपाल को अपनी कर्मस्थली बनाया और एक दशक से अधिक समय से यहां अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में उल्लेखनीय सेवाएं दी हैं। वैभव गुप्ता राजनीतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर भी नियमित रूप से लेखन कर रहे हैं।

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