विश्लेषण

धिक्कार है अरविंद केजरीवाल

विश्लेषण: अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) उस मोटी चमड़ी वाले शरीर का मामला है, जो इंसान की प्रजाति में देखने नहीं मिलती है। वे मोटी चमड़ी वाली प्रजाति की ही तरह मनुष्य के लिए हिंसक हो चुके हैं। साथ ही इस चमड़ी की फितरत के अनुरूप आप उनसे ये उम्मीद ही रखें कि कोरोना (Corona) को लेकर सामने आये अपने शर्मनाक झूठ के लिए वे किसी तरह का खेद नहीं जताएंगे। वह निर्लज्जता को लिबास की तरह पहनते हैं। झूठ उनका बिछौना है। सत्य के साथ अनाचार उनका पेटेंट हो चुका है। देश की राजनीति में वह संक्रामक गंदगी के उत्सर्जन का सबसे बड़ा केंद्र बन चुके हैं।

कोरोना की दूसरी लहर (Second Wave of Corona) में केजरीवाल एंड कंपनी पूरे समय ‘दुखवा मैं को से कहूँ सजनी!’ की तरह विधवा प्रलाप करते रही। दिल्ली (Delhi NCR) में बड़ी आबादी कोरोना से दम तोड़ती रही और वहां के मुख्यमंत्री पूरा समय इसका दोष केंद्र सरकार को देते रहे। कहते रहे कि केंद्र सरकार द्वारा लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (Liquid Medical Oxygen) की कम सप्लाई के कारण दिल्ली में यह सब हो रहा है। इधर, ऑक्सीजन ऑडिट (Oxygen Audit) की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली को उसकी जरूरत से चार गुना अधिक ऑक्सीजन दी गयी। जाहिर है कि केजरीवाल ने ऐसा ऑक्सीजन के अभाव की झूठी कहानी सुना-सुनकर कर लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि देश के करीब एक दर्जन अन्य राज्यों के हिस्से की ऑक्सीजन में कमी करना पड़ी और वहां बड़ी संख्या में लोगों ने ऑक्सीजन की कमी के कारण दम तोड़ दिया। अब केजरीवाल जैसी ही घनघोर निर्लज्जता में पगी दिल्ली सरकार और उसकी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) (AAP) इस रिपोर्ट से जुड़े आरोपों को झूठा बताने के मिशन पर जुट गयी है।





आखिर कोई किस तरह और किस लक्ष्य के चलते इतना क्रूर हो सकता है? वो क्या फैक्टर है जो केजरीवाल जैसे किसी प्रदूषण का इलाज नहीं तलाश पा रहा है? अन्य राज्यों में लोग तिल-तिल मरते रहे, दिल्ली में भी कोरोना ने यही त्राहि-त्राहि मचाई। तो फिर सवाल यह कि वह आवश्यकता से चार गुना ज्यादा ऑक्सीजन आखिर कहां खपाई गयी? राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh ) में कोरोना की वैक्सीन (Corona Vaccine) के सरकार के स्तर पर बर्बाद किये जाने के सनसनीखेज आरोप लगे हैं। तो क्या अब यह मान लिया जाए कि बाकी राज्यों के हक पर डाका डालने के बाद केजरीवाल ने भी ऑक्सीजन को बर्बाद हो जाने दिया? ताकि दिल्ली की आबादी मरती रहे और वहां का मुख्यमंत्री केंद्र पर ऑक्सीजन न देने का गलत आरोप लगाकर चिताओं पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकता रहे?

राजनीतिज्ञ का घाघ होना अब स्वीकार्य कलंक है, लेकिन केजरीवाल तो एक बदनुमा दाग बन चुके हैं। कलंक का ऐसा टीका, जिसके आगे कोरोना की पैशाचिक प्रवृत्ति भी मासूम लगने लगी है। हर बात पे झूठ और प्रपंच किये बगैर तो जैसे इस शख्स का खाना ही नहीं पचता है। वह भारतीय राजनीति के ऐसे निम्फोमैनिएक (Nymphomaniac) हैं, जो अपनी हवस पूरा न होने पर सामने वाले को ‘शक्तिहीन’ बता देते हैं। दिल्ली की जनता ने जब लगातार दूसरी बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को बहुमत दिया था, तब उसे यह कल्पना भी नहीं रही होगी कि वह देश के लोकतंत्र को कभी शोकतंत्र तो कभी भोगतंत्र बनाने वाले पर यकीन जताने की प्रलयंकारी भूल करने जा रही है। जिन लोगों ने कभी ‘आप’ को सशक्त राजनीतिक विकल्प माना था, उन्हें भी आज ये अहसास हो रहा होगा कि उस समय वे किस विनाशकालीन सोच के हाथों खेल गए थे। पंजाब (Punjab) की जनता की रूह यह सोचकर कांप जा रही होगी कि कहीं बीते चुनाव में वह केजरीवाल की पार्टी को बहुमत देने का गुनाह कर गयी होती तो आज उसका क्या बुरा हाल होता। शराब अच्छी चीज नहीं है। किन्तु पंजाब के शुभचिंतक आज भगवंत मान (Bhagwant Mann) की इसी बुराई की सराहना कर रहे होंगे। वहां ‘आप’ की जीत होने की सूरत में मान का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था। मगर इस नेता के ‘लड़खड़ाते’ चरित्र के चलते ‘आप’ को कामयाबी नहीं मिल सकी। तो जाहिर है कि इस राज्य की आवाम मान की इस विशिष्ट छवि के चलते ही अपनी सुरक्षा की बात मानकर परमेश्वर का शुक्रिया अदा कर रही होगी।





हालांकि ऐसा होगा नहीं, लेकिन होना ऐसा ही चाहिए कि ऑक्सीजन काण्ड के लिए केजरीवाल पर ह्त्या का केस दर्ज किया जाए। या ये शख्स अपनी इस करतूत के लिए कम से कम गैर-इरादतन ह्त्या (Culpable Homicide) का आरोपी तो बनता ही है। वे परिवार आज केजरीवाल को जी भरकर कोस रहे होंगे, जिनके किसी परिजन ने इसलिए कोरोना से दम तोड़ दिया कि उनके हिस्से की ऑक्सीजन पर केजरीवाल कुंडली जमाकर बैठ गए थे।हो सकता है कि यहां लिखे कई वाक्य लेखन की मर्यादा और अभिव्यक्ति की शालीनता के हिसाब से गलत लगें। लेकिन क्या किया जाए? बेशर्मी से हंसता और आदत से खांसता कोई आदमी सैंकड़ों की अकाल मौत की वजह बन जाए, तो फिर उसके लिए शालीन आचरण कायम रखना आसान नहीं रह जाता है। यदि कोई जहरीला रेंगने वाला या कोई पागल चौपाया आपको काटने आ ही गया हो तो उस पर प्रहार करते समय यह नहीं सोचा जाता कि हमारे ऐसा करने से उसे कहीं तकलीफ न हो। मैं भी इसी भावना से वशीभूत होकर पूरी जिम्मेदारी के साथ यह सब लिख रहा हूं। धिक्कार है अरविंद केजरीवाल।

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