विश्लेषण

कोरोनाकाल में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव दुर्भाग्यपूर्ण

कृष्णमोहन झा

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की मुखिया ममता बनर्जी (Mamta banarjee) द्वारा लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए जाने के तत्काल बाद जब राज्यपाल जगदीप धनकड़ (Governor Jagdeep Dhankad) ने उन्हें राज्य के कुछ इलाकों में चुनावों के बाद भड़की हिंसा पर काबू पाने के लिए शीघ्र ही प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी थी तभी यह संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि अब राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव का नया अध्याय शुरू होने का वक्त आ गया है। शपथग्रहण समारोह में ही किसी मुख्यमंत्री को इस तरह की नसीहत देने का यह शायद पहला मौका था । मुख्यमंत्री ने राज्यपाल की इस नसीहत के जवाब में कहा था कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री पद (Chief Minister’s post) की शपथ लेने के पहले तक चुनावी आचार संहिता के अनुसार राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर चुनाव आयोग (Election commission) का नियंत्रण था और अब राज्य में उनकी सरकार गठित हो जाने के बाद यह उनकी सरकार की जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को आश्वासन दिया था कि वे राज्य में चुनाव बाद भड़की हिंसा की घटनाओं की रोकथाम हेतु सख्त कदम उठाएंगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि राज्य विधानसभा चुनावों (State assembly elections) में जिन क्षेत्रों से भाजपा उम्मीदवार विजयी घोषित हुए हैं वहां हिंसा की घटनाएं ज्यादा हुईं हैं।

मुख्यमंत्री की बातों से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का बचाव कर रही हैं।उनका कहना था कि चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं में भाजपा से अधिक तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हताहत हुए हैं। उधर हाल के राज्य विधानसभा चुनावों में 77 सीटों पर जीत हासिल करने वाली BJP ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर यह आरोप लगाया था कि पश्चिम बंगाल में TMC के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा, लूटपाट और आगजनी की घटनाओं में भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है जिसमें उसके अनेक कार्यकर्ताओं की मौत हुई है। जाहिर सी बात है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी BJP द्वारा एक दूसरे पर हिंसा भड़काने के आरोपों के साथ ही अपने जान-माल का अधिक नुकसान होने के दावे किए गए थे । परंतु इसमें दो राय नहीं हो सकती कि चुनाव बाद भड़की हिंसा की घटनाओं के लिए केवल एक दल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता साथ ही यह भी निर्विवाद सत्य है कि राज्य में निर्वाचित सरकार के अस्तित्व में आ जाने के बाद उसकी यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह बिना किसी दलीय भेदभाव के उन लोगों पर सख्त कार्रवाई करे जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार थे।





यहां यह भी गौरतलब है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा () National President JP Naddaराज्य में चुनाव बाद भड़की हिंसा में हताहत भाजपा कार्यकर्ताओं (BJP workers) और उनके परिजनों को सांत्वना देने के लिए पश्चिम बंगाल के प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया था और उन्हें भरोसा दिलाया था कि पार्टी उनके साथ खड़ी है। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से अपना एक दल भी राज्य के हिंसाग्रस्त इलाकों का दौराकरने के लिए भेजा गया साथ ही राज्यपाल से रिपोर्ट भी मंगाई गई। पश्चिम बंगाल West Bengal() में चुनाव बाद भड़की हिंसा को लेकर राज्यपाल और ममता सरकार (Mamta Sarkar) के बीच टकराव का यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और न ही ऐसे कोई आसार नजर आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनकड़ इस टकराव को सामंजस्य में बदलने के लिए निकट भविष्य में सुलह सफाई का रास्ता अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने के तैयार हो सकते हैं। ममता बनर्जी द्वारा मुख्यमंत्री पद बागडोर संभाल लिए जाने के बाद राज्यपाल जगदीप धनकड़ की सक्रियता जिस तरह बढ़ गई है उससे यही संकेत मिल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच यह टकराव अब धीरे धीरे नया रूप लेता जा रहा है। विगत दिवस राज्यपाल धनकड़ जब कूचविहार जिले के उन हिंसा प्रभावित इलाकों के दौरे पर गए तो सत्तारूढ़ TMC के कार्यकर्ताओं ने उन्हें काले झंडे दिखाते हुए गो बैक के नारे लगाए।





गौरतलब है कि इसके पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें कूच विहार जिले के उन क्षेत्रों के दौरे पर न जाने की सलाह दी थी। मुख्यमंत्री की इस सलाह के जवाब में राज्यपाल ने कहा था कि उन्हें राज्य के किसी इलाके का दौरा करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। राज्यपाल ने कूचविहार जिले में हिंसात्मक घटनाओं का शिकार हुए परिवारों से भेंट करने के बाद पुलिस अधिकारियों पर भी अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि वे असम के उन शरणार्थी शिविरों में भी जाएंगे जहां पश्चिम बंगाल की चुनाव बाद हिंसा का शिकार बने लोगों एवं उनके परिजनों ने शरण ली थी। जाहिर सी बात है कि इसके बाद राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्र को भेजेंगे और राज्यपाल भली-भांति जानते हैं कि केंद्र सरकार (central government) उनसे ममता सरकार की कार्यप्रणाली के बारे में कैसी रिपोर्ट की अपेक्षा रखता है।इसमें कोई संदेह नहीं कि पश्चिम बंगाल कुछ इलाकों में हाल के विधानसभा चुनावों के बाद जो हिंसा भड़की उसमें न केवल तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी बल्कि उनके परिजनों और आम आदमी को भी शिकार बनाया गया।

बड़े पैमाने पर लूटपाट होने के समाचार मिले है और यह ममता सरकार की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों के सख्त कानूनी कार्रवाई करे चाहे उनका संबंध किसी भी दल से हो। इसके बिना राज्य में स्थायी शांति का माहौल निर्मित होना संभव नहीं है परंतु अब समय आ गया है कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री , दोनों एक-दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह का परित्याग कर सामंजस्य के एक नए अध्याय की शुरुआत करने की इच्छा शक्ति प्रदर्शित करें। बेहतर तो यह होगा कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के नेता स्वयं ही अपने अपने कार्यकर्ताओं को इस तरह की दुर्भाग्य पूर्ण घटनाओं से दूर रहने के लिए प्रेरित करें। अत्यंत कटुता पूर्ण चुनावों के बाद निर्वाचित सरकार अस्तित्व में आ चुकी है। अब सारी चुनावी कटुता भुला कर सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिलकर राज्य में कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के प्रयासों में जुट जाना चाहिए।

पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव कार्यक्रम जिन घोषित हुआ था तब से अब तक कोरोना संक्रमण (Corona infection) काफी बढ़ चुका है। चुनावी रैलियों (Election rallies) से भी कोरोना वायरस को राज्य में पांव पसारने का मौका मिल गया जिसके किसी एक दल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। राज्य विधानसभा चुनावों के लिए 2मार्च को जब पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई तो संक्रमितों की संख्या 171 थी और 2 लोग कोरोना संक्रमण के कारण मौत का शिकार हुए थे।29 अप्रैल को जिस दिन अंतिम और आखिरी चरण का मतदान संपन्न हुआ उस दिन राज्य में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 17403 हो चुकी थी और कोरोनावायरस 89 लोगों को मौत का शिकार बना चुका था। अब राज्य में कोरोनावायरस धीरे धीरे भयावह रूप लेता जा रहा है। निःसंदेह राज्यपाल और उनकी सरकार के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। ऐसी स्थिति में राज्यपाल और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच सामंजस्य स्थापित होना अत्यावश्यक है। दोनों के जारी टकराव निःसंदेह दुर्भाग्यपूर्ण है।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)

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