मुख्यमंत्री बदला, मंत्री और सीनियर नेताओं के टिकट कट, भाजपा का ये चुनाव जिताऊ फॉर्मूला इन राज्यों की बढ़ा रहा टेंशन
नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में हाल ही में आए विधानसभा चुनाव के नतीजों से BJP में उत्साह है। ये उत्साह भाजपा आने वाले और भी राज्यों के विधानसभा चुनाव में बरकरार रखना चाहती है।

नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में हाल ही में आए विधानसभा चुनाव के नतीजों से BJP में उत्साह है। ये उत्साह भाजपा आने वाले और भी राज्यों के विधानसभा चुनाव में बरकरार रखना चाहती है। जिसके लिए भाजपा किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। चाहे उसके लिए मुख्यमंत्री बदलने की नौबत क्यों ना आ जाए। भाजपा इसके लिए भी पीछे नहीं हटेगी। क्योंकि भाजपा का ये फॉर्मूला कई राज्यों में हिट रहा है। उत्तराखंड,गुजरात के बाद अब त्रिपुरा में भी भाजपा का ये फॉर्मूला कारगर साबित हुआ है। ऐसे में उन राज्यों के नेताओं की चिंता बढ़ गई है। जहां आगामी समय में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिस उत्तराखंड,गुजरात और त्रिपुरा में भाजपा को हार का डर सता रहा था। उन राज्यों में भाजपा ने चुनाव से पहले अकेले मुख्यमंत्री ही नहीं बदले, बल्कि कई मंत्री-विधायकों के साथ सीनियर नेताओं तक के टिकट काट दिये। यहां तक की चुनाव से पहले इन राज्यों में कैबिनेट में बड़ा फेरबदल तक कर दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि इन तीनों राज्यों में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हो गई। अब यही फॉर्मूला भाजपा उन राज्यों में भी आजमा सकती है। जहां उसे अपनी नैया डगमगाती हुई दिखाई दे रही है। जिसमें खासतौर पर मध्यप्रदेश और हरियाणा शामिल हैं। हालाकि कर्नाटक में अब चुनाव के कुछ ही महीने बचे हैं, ऐसे में वहां यह फॉर्मूला अब शायद ही लागू हो। लेकिन मध्य प्रदेश और हरियाणा में इस फॉर्मूला के लागू होने की चर्चा जोरों पर हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी फॉर्मूले के कुछ भागों को आंशिक तौर पर लागू कर सकती है। जिससे इन सभी राज्यों के नेताओं की टेंशन बढ़ गई है।
अब तक भाजपा के सभी प्रयोग सफल
भाजपा नये प्रयोग करने में माहिर मानी जाती है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद से ही भाजपा लगातार नये-नये प्रयोग कर रही है। और उसके ये प्रयोग सफल साबित भी हो रहे हैं। यही कारण है कि जिस भाजपा के 2014 में 4120 में से सिर्फ 947 विधायक थे। आज उसी भाजपा के पास 4033 में से 1421 विधायक हैं। जो कांग्रेस से दोगुने हैं। इतना ही नहीं 2014 में बीजेपी और गठबंधन की कुल 7 राज्यों में सरकार थी। तो आज के समय में उसी बीजेपी और गठबंधन की 16 राज्यों में सरकार है। ये भाजपा के नये-नये प्रयोग का ही नतीजा है कि भाजपा लगातार हर राज्य में सफल हो रही है। और अब वह चुनाव जिताऊ नये फॉर्मूले के तहत आगे बढ़ रही है। जिसे वो आने वाले राज्यों के विधानसभा चुवाव में लागू करने से भी परहेज नहीं करेगी। जिसके कारण कई दिग्गज नेताओं की सांसें फूलने लगी हैं।
कैसा है भाजपा का चुनाव जिताऊ फॉर्मूला ?
भाजपा के इस फॉर्मूले का पहला हिस्सा मुख्यमंत्री और कैबिनेट में बदलावः पहले उत्तराखंड फिर गुजरात और त्रिपुरा में चुनाव पूर्व बीजेपी ने मुख्यमंत्री को बदल दिया। मुख्यमंत्री के साथ ही कैबिनेट में भी फेरबदल किया गया। उत्तराखंड में बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत की जगह पुष्कर धामी को, गुजरात में विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को और त्रिपुरा में बिप्लव देव की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया। गुजरात में पूरी कैबिनेट तो उत्तराखंड और त्रिपुरा में आंशिक फेरबदल किया गया। बीजेपी का यह फॉर्मूला तीनों राज्य में हिट रहा। पार्टी नेताओं के मुताबिक एंटी इनकंबेंसी से लड़ने में यह फॉर्मूला कारगर साबित हुआ।
भाजपा के इस फॉर्मूले का दूसरा हिस्सा विधायकों और मंत्रियों का टिकट कटः चुनाव से पहले बीजेपी ने गुजरात, यूपी, त्रिपुरा और उत्तराखंड में बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे। गुजरात में बीजेपी ने 42 विधायकों के टिकट काटे, जबकि त्रिपुरा में भी यह फॉर्मूला लागू किया। यूपी में भी बीजेपी ने 40 से अधिक विधायकों के टिकट काट दिए थे। बीजेपी का यह प्रयोग भी हिट रहा और पार्टी को सभी राज्यों में जीत मिली। पार्टी आगे भी इस फॉर्मूले को बरकरार रख सकती है।
भाजपा के इस फॉर्मूले का तीसरा हिस्सा सीनियर नेताओं को नहीं लड़ाया चुनावः यूपी के बाद जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहां बीजेपी ने सीनियर नेताओं को चुनाव में टिकट नहीं दिया। यूपी में हृदय नारायण दीक्षित, गुजरात में विजय रूपाणी, नितिन पटेल और त्रिपुरा में बिप्लब देव जैसे नाम शामिल हैं। दरअसल, राज्यों में आंतरिक गुटबाजी से निपटने के लिए पार्टी ने यह फॉर्मूला अपनाया। सीनियर नेताओं को संगठन के कामों में लगाकर लोकल पॉलिटिक्स से दूर कर दिया। बीजेपी का यह फॉर्मूला भी हिट रहा और पार्टी को फायदा मिला।
इन राज्यों में लोकसभा की 75 सीटें
आगामी समय में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं। वो राज्य भाजपा के लिए काफी महत्व रखते हैं। बीजेपी का यह फॉर्मूला जिन राज्यों में लागू होने की बात सियासी गलियारों में कही जा रही है, उनमें मध्य प्रदेश और हरियाणा सबसे प्रमुख है। इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सत्ता है। इसके अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी फॉर्मूले के कुछ पार्ट को लागू किया जा सकता है। जैसे- विधायकों का टिकट काटना और सीनियर नेताओं को चुनाव नहीं लड़वाने का फॉर्मूला। दरअसल एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हरियाणा बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य इसलिए हैं। क्योकि हिंदी पट्टी के बड़े राज्य होने के साथ ही यहां लोकसभा की सीटें भी काफी ज्यादा है। चारों राज्यों में लोकसभा की कुल 75 सीटें हैं, जिनमें 70 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। बात राज्यसभा की करें तो इन राज्यों में ऊपरी सदन की 31 सीटें हैं, जो बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पार्टी ने हाल ही में इन राज्यों में नए सिरे से संगठन में फेरबदल भी किया था।
क्या एमपी में फॉर्मूला लागू करना होगा आसान ?
मध्यप्रदेश में इस फॉर्मूले को लागू करने का सबसे ज्यादा डर है। लेकिन फॉर्मूला लागू करना आसान भी नहीं है। फॉर्मूला लागू होने का डर इसलिए है। क्योकि मध्य प्रदेश में बीजेपी ने हाल ही में एक सरकारी एजेंसी से सर्वे कराया है, जिसमें कहा गया है कि पार्टी 90 सीटों पर सिमट सकती है। राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है। 2018 में भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी को हार मिली थी और पार्टी 15 साल बाद सत्ता से बाहर हो गई थी। हालांकि, कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद फिर से राज्य में बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई। ऐसे में मध्य प्रदेश में भी बीजेपी नेताओं को ये फॉर्मूला लागू होने का डर सता रहा है। अगर प्रदेश में ये फॉर्मूला लागू होता है। तो हो सकता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस्तीफा देना पड़े। साथ ही कई मंत्री और विधायक भी इस फॉर्मूले की चपेट में आ सकते हैं। लेकिन ये फॉर्मूला लागू करना यहां इतना आसान नहीं होगा। 2018 में मध्य प्रदेश में बीजेपी भले शिवराज के नेतृत्व में चुनाव हार गई हो, लेकिन पार्टी और प्रदेश में शिवराज की पकड़ काफी मजबूत है। करीब 17 साल से मुख्यमंत्री पद पर काबिज शिवराज को मध्य प्रदेश में पांव-पांव वाले मामा या यूं कहे कि जमीनी नेता के नाम से जाना जाता है। शिवराज बीजेपी में ओबीसी चेहरा भी हैं और राज्य के हर इलाके में उनकी पकड़ मजबूत है। ऐसे में यहां मुख्यमंत्री बदलने का फैसला आसान नहीं होगा।
हरियाणा में फॉर्मूला लागू करना कितना चुनौतीपूर्ण ?
मध्यप्रदेश जैसी स्थिति हरियाणा में भी है। 2019 में हरियाणा में बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब तो हो गई थी, लेकिन सीटें काफी कम रह गई। पार्टी को जजपा का समर्थन लेना पड़ा। मनोहर लाल खट्टर की स्थिति इस बार पहले से और खराब बताई जा रही है। ऐसे में हरियाणा में भी बीजेपी नेताओं को ये फॉर्मूला लागू होने का डर सता रहा है। बीजेपी अगर यह फॉर्मूला पूरी तरह से हरियाणा में लागू करती है, तो इसका सीधा असर मनोहर लाल खट्टर पर पड़ेगा। उन्हे भी सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। इसके अलावा हरियाणा सरकार के कई मंत्री भी इस फॉर्मूले की जिद में आ सकते हैं। हरियाणा में कई मंत्रियों का परफॉर्मेंस काफी खराब है, जिस वजह से उन पर कार्रवाई हो सकती है। क्षेत्र में कम सक्रिय रहने वाले विधायकों का टिकट भी काटा जा सकता है। यह फैसला पार्टी की आंतरिक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर लिया जाता है। वहीं कई वरिष्ठ नेता भी फॉर्मूला की वजह से रडार पर आ सकते हैं। राजस्थान में भी बीजेपी ने हाल ही में वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया को राजभवन भेज सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया है। माना जा रहा है कि इसी तरह कुछ वरिष्ठ नेताओं को राजभवन और कुछ नेताओं को संगठन में जिम्मेदारी दी जा सकती है। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि हरियाणा में भी मुख्यमंत्री बदलने का फैसला भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। हरियाणा में भी हालात इसी तरह के हैं। यहां बीजेपी ने नॉन जाट फॉर्मूले के तहत खत्री समुदाय के खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया था। बीजेपी को 2014 और 2019 में इसका फायदा भी मिला। ऐसे में हरियाणा में खट्टर को बदलना भी आसान नहीं होगा।
राजस्थान-छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए क्या है चुनौती?
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। लेकिन यहां बीजेपी गुटबाजी से जूझ रही है। माना जा रहा है कि हाईकमान इससे निपटने के लिए यहां भी आंशिक रूप से इन फॉर्मूले को लागू कर सकती है। लेकिन यहां भी कुछ दिग्गज नेताओं के चक्कर में भाजपा को ये फॉर्मूला लागू करने में पसीने छूट जाएंगे। राजस्थान में बीजेपी को सत्ता में वापसी की सबसे ज्यादा उम्मीद है। यहां पीएम मोदी 4 महीने में 4 बड़ी रैली कर चुके हैं। लेकिन राजस्थान में बीजेपी के सामने चेहरा को लेकर मुश्किलें है। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी आंतरिक गुटबाजी में उलझी हुई है। ऐसे में इस फॉर्मूले को लागू करना यहां जरूरी भी है। लेकिन राजस्थान में वसुंधरा और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को अलग-थलग करना भी आसान नहीं है। राजस्थान में चुनाव से पहले वसुंधरा राजे अपने गढ़ पूर्वी राजस्थान में सक्रिय हो गई है। 2018 में इन इलाकों में बीजेपी को करारी हार मिली थी।