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मार्च 2027 में शुरू होगी जनगणना,बर्फीले राज्यों में अक्टूबर 2026 से

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भारत में जनगणना 1 मार्च 2027 में शुरू होगी, जो दो चरणों में पूरी होगी. जातियों की भी गणना होगी. यूटी लद्दाख और जेके, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे बर्फीले राज्यों में अक्टूबर 2026 से जनगणना होगी. इस बार की जनगणना में जाति का कॉलम भी शामिल किया गया है.

जनगणना कर्मचारी हर घर पहुंचकर लोगों की जानकारी इकट्ठा करेंगे, जिसमें उनकी जाति की जानकारी भी शामिल होगी. यह कदम जाति आधारित आंकड़ों को इकट्ठा करने और समाज के विभिन्न वर्गों की स्थिति को समझने में मदद करेगा.

2011 की पिछली जनगणना में भारत की जनसंख्या 121 करोड़ से अधिक दर्ज की गई थी. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के लिए आमतौर पर हर दस साल में होने वाली जनगणना 2021 के लिए निर्धारित थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा. अब, जनगणना चक्र में भी बदलाव की उम्मीद है.

जनगणना 2021 को भी इसी तरह दो चरणों में आयोजित करने का प्रस्ताव था, पहला चरण अप्रैल-सितंबर 2020 के दौरान और दूसरा चरण फरवरी 2021 में आयोजित किया जाना था. 2021 में आयोजित की जाने वाली जनगणना के पहले चरण की सभी तैयारियां पूरी हो गई थीं और 1 अप्रैल, 2020 से कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में क्षेत्रीय कार्य शुरू होने वाला था. हालांकि, देश भर में COVID-19 महामारी के प्रकोप के कारण जनगणना का काम स्थगित कर दिया गया था.

जनगणना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें देश के सभी व्यक्तियों से संबंधित आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं. यह प्रक्रिया हर दस साल में एक बार होती है और इसमें जनसांख्यिकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक डेटा शामिल होते हैं. जनगणना के माध्यम से लोगों की संख्या, आयु, लिंग, शिक्षा, व्यवसाय और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठी की जाती है, जिसका उपयोग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है. यह आंकड़े नीति निर्माण, योजना और विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं.

इससे पहले केंद्र सरकार जातिगत जनगणना को मंजूरी दे चुकी है. विपक्ष इसकी मांग लंबे समय से कर रही थी. जातीय जनगणना की मांग करने वालों में पक्ष-विपक्ष दोनों के नेता शामिल थे. माना जा रहा है कि जातीय जनगणना के आंकड़े आने के भारत में बहुत कुछ बदल जाएगा. इससे सबसे बड़ा जो बदलाव हो सकता है, वह है आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा को बढ़ाया जाना.

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