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कमलनाथ सरकार में खुले तीन दर्जन नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता की होगी सीबीआई जांच

परीक्षा में गड़बड़ी से खुला गोरखधंधा, एक ही साल में बढ़े थे 100 से ज्यादा कॉलेज

भोपाल। डीमेट में एमबीबीएस कॉलेजों की एडमिशन और परीक्षा में मनमानी सामने आने के बाद नर्सिंग कॉलेज निशाने पर आ गए हैं। लगातार सामने आ रहीं अनियमितताओं को देखते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने नर्सिंग कॉलेजों की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया है। अदालत ने तीन महीने में सीबीआई से जांच रिपोर्ट देने को कहा है। अदालत के इस आदेश ने प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है। अधिकांश दागी कॉलेज प्रदेश के कांग्रेस नेताओं के बताए जा रहे हैं। प्रदेश में वर्तमान में संचालित सभी 800 कॉलेज रसूखदारों के ही बताए जा रहे हैं। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने जिन पैंतीस कालेजों की जांच सीबीआई से कराने के लिए कहा है, उन सभी की मान्यता कमलनाथ सरकार के दौरान हुई थी।

बुधवार को अदालत ने कॉलेज संचालकों के अलावा चिकित्सा शिक्षा विभाग, नर्सिंग काउसिंल व मेडिकल यूनिवर्सिटी का पक्ष सुनने के बाद सीबीआई जांच का आदेश दिया। इनमें सर्वाधिक 24 कॉलेज ग्वालियर, 4 भिंड, दो—दो मुरैना, दतिया व शिवपुरी तथा एक विदिशा में संचालित है। अदालत ने सीबीआई से तीन महीने में जांच रिपोर्ट मांगी है। इन सभी कॉलेजों को जनवरी से मार्च 2020 के बीच मान्यता दी गई थी। उस समय प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार थी। ये सभी कॉलेज कांग्रेस नेताओं से संबंधित हैं। जाहिर है इनके कालेजों को सरकार के दबाव में मान्यता देने के आरोप लगाए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि 2018 के पहले प्रदेश में करीब 300 नर्सिंग कॉलेज थे। कांग्रेस सरकार बनने के बाद यह संख्या 450 के आसपास पहुंच गई। जबकि एक साल के अंदर ही करीब 100 नर्सिंग कॉलेज खुल गए थे। वर्तमान में करीब 550 कालेज संचालित हैं। अदालत में मामला पहुंचने के बाद ही बड़ी संख्या में कॉलेज बंद हुए हैं तो 70 कॉलेजों की मान्यता अदालत भी खत्म कर चुकी है।

ये हैं जांच के बिंदु

  • मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर — विश्वविद्यालय की संबद्धता, विद्यार्थियों के पंजीयन और नामांकन में तय नियमों व मापदंडों का पालन किया गया कि नहीं।
  • मप्र नर्सिंग कॉलेज — कॉलेजों को मान्यता देने में तय मापदंडों का ध्यान रखा गया कि नहीं।
  • भारतीय नर्सिंग परिषद— कॉलेजों को उपयुक्तता प्रमाण पत्र पूरी तरह से नियमों के तहत जारी किए गए कि नहीं।

ऐसे खुला फर्जीवाड़ा

ग्वालियर अंचल के 35 कॉलेजों ने कोरोना काल का हवाला देते हुए शिक्षण सत्र 2019—20 में नामांकन कराने वाले विद्यार्थियों को अनुमति देते हुए परीक्षा कराने की मांग की गई थी। अपनी इस मांग को लेकर कॉलेज संचालकों द्वारा वर्ष 2021 में याचिका दायर की गई थी। उनका तर्क था कि कोरोना के कारण आधे विद्यार्थी नामांकन नहीं करा सके हैं। मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर ने कुछ कॉलेजों को अनुमति दे दी है, लेकिन हमें अनुमति नहीं दे रहे हैं। याचिका में सुनवाई करते हुए ग्वालियर खंडपीड ने मध्यप्रदेश नर्सिंग काउंसिल तथा मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर से सभी कॉलेजों से रिकॉर्ड तलब किया था। इन दस्तावेजों ने कॉलेजों की कलई खोलकर रख दी। काउंसिल ने आधे—अधूरे दस्तावेज के आधार पर मान्यता दे दी तो यूनिवर्सिटी ने भी आंखे मूंदकर संबद्धता जारी कर दी और प्रवेश भी मान्य कर लिये। इसी गड़बड़ी के चलते अदालत के आदेश पर पहले यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को हटाया गया। फिर मेडिकल काउंसिल की रजिस्ट्रार को भी हटा दिया गया। मप्र मेडिकल काउंसिल में अभी तक कोई नियमित रजिस्ट्रार की नियुक्ति नहीं हो सकी है।

कैसी—कैसी खामियां

हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा सुनवाई के दौरान कराई गई जांच में ही प्रदेश के नर्सिंग कालेजों का फजीर्वाड़ा सामने आ गया। जब जांच करने गए दल को एक—एक कमरे में कॉलेज संचालित होते पाए गए। एक ही शिक्षक के नाम 10 से 12 कॉलेजों में पाए गए। एक कॉलेज में कोई बतौर शिक्षक रजिस्टर्ड है तो कहीं वही प्राचार्य है। लंबे समय से एक भी क्लास नहीं लगीं थी तो कहीं एक कंप्यूटर तक नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह है कि नर्सिंग कॉलेज की मान्यता के लिए किसी सौ बिस्तरों वाले अस्पताल से संबद्ध होना चाहिए, लेकिन जिन शहरों में कॉलेज खुले हैं वहां पूरे जिले में सौ बिस्तरों का प्रायवेट तो दूर की बात, सरकारी अस्पताल तक नहीं है। यूनिवर्सिटी भी इन कॉलेजों को लगातार संबद्धता दे रहा है तो मप्र नर्सिंग काउंसिल भी हर साल मान्यता दे रही है। अदालत के आदेश पर ही 70 कॉलेजों की मान्यता निरस्त की गई। न तो मान्यता पाने वाले कॉलेजों की कोई एकजाई सूची काउंसिल ने जारी की और न यूनिवर्सिटी ने ही ऐसी कोई सूची बनाई। कॉलेजों को अलग—अलग आदेश के जरिए ही मान्यता व संबद्धता दी गई। जिन कॉलेजों की मान्यता समाप्त की गई उनमें राजधानी के बड़े अस्पतालों व निजी मेडिकल कॉलेजों के नर्सिंग कॉलेज भी शामिल हैं।

अदालत द्वारा सीबीआई जांच का आदेश देते हुए नर्सिंग कॉलेजों को लेकर सियासी खींचतान मच गई है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि इन सभी कॉलेजों को कांग्रेस सरकार में मान्यता दी गई थी। उल्लेखनीय है कि एमबीबीएस और बीडीएस की परीक्षाओं के दौरान गड़बड़ी के कारण प्रदेश में डीमेट घोटाला खुला था, जो हाईकोर्ट पहुंचा था। तब एबीवीपी ने ही याचिका दायर की थी, जिसमें मेडिकल और बीडीएस कॉलेजों में मान्यता, प्रवेश और परीक्षाओं की गड़बड़ी सामने आई थी। इसके बाद ही प्रदेश में प्रवेश एवं शुल्क विनियामक आयोग फीस कमेटी का गठन किया गया था।

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