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मप्र में सांसों का संकट: टैंकरों की कमी से राज्य को नहीं मिल पा रही 60 टन आॅक्सीजन

  • प्रदेश में 86 आॅक्सीजन टैंकर जबकि जरुरत 96 की, अब थाईलैंड से मंगवाए 8 क्रायोजेनिक टैंकर

भोपाल। मप्र में जारी कोरोना कहर (Corona Havoc) के कारण आॅक्सीजन संकट (Oxygen crisis) भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है। आॅक्सीजन टैंकरों (Oxygen tankers) की कमी के कारण केन्द्र से मिले आवंटन के बाद भी मप्र को अपने कोटे की करीब 50-60 टन आॅक्सीजन सप्लायर कंपनियों (Supplier companies) से नहीं मिल पा रही है। टैंकर की समस्या से निजात पाने अब प्रदेश सरकार ने थाईलैंड (Thailand) से 8 क्रायोजेनिक टैंकर (Cryogenic tanker) मंगवाए हैं। आइनॉक्स एयर प्रॉडक्ट (Inox air product) के जरिए यह आॅर्डर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग (health Department) का दावा है कि इन टैंकरों के माध्यम से देश की करीब 45 से ज्यादा प्लांट से आॅक्सीजन का प्रदेश में परिवहन हो सकेगा।

मप्र के पास इस समय 86 आॅक्सीजन टैंकर (86 oxygen tanker)  हैं, जबकि 10 टैंकरों की और जरुरत बनी हुई है। ऐसे में सरकार ने 8 क्रायोजेनिक टैंकर का आॅर्डर दिया है, ताकि मध्य प्रदेश अपने कोटे की आॅक्सीजन का परिवहन कर सके। इसके अलावा, केंद्र सरकार 20-20 टन के दो क्रायोजेनिक टैंकर सिंगापुर (Singapur) से मंगवा कर मध्य प्रदेश को दे रही है। फिलहाल, आॅक्सीजन के लिए बने टास्क फोर्स ने टैंकरों का रोटेशन ऐसा बनाया है, जिससे रिलायंस (reliance) के जामनगर (Jamnagar) , लिंडे के भिलाई और राउरकेला (Raurkela), बोकारो (Bokaro), सेल भिलाई (Cell bhilai), मोदी नगर (Modi nagar) और हजारी प्लांट में लगातार मध्यप्रदेश के टैंकर आॅक्सीजन भरने के लिए खड़े रहें। कुछ बीच रास्ते में हों और कुछ प्रदेश में आॅक्सीजन खाली करके तुरंत रवाना हो जाएं।





क्रायोजेनिक टैंकर की खासियत
क्रायोजेनिक टैंकर (Cryogenic tanker) विशेष तकनीक से बनाए जाते हैं, जो कि टैंकर के अंदर की गैस बाहरी तापमान के कारण प्रभावित नहीं होने देते। इनमें Liquid oxygen, Liquid hydrogen, Nitrogen, Helium आदि का परिवहन किया जा सकता है। आॅक्सीजन को टैंकर में बहुत कम तापमान (माइनस डिग्री) पर रखा जाता है। इसमें दो परतें होती हैं। अंदर वाली परत में लिक्विड आॅक्सीजन होती है। दोनों परतों के बीच निर्वात जैसी स्थिति रखी जाती है, ताकि बाहर के वातावरण की गर्मी गैस तक न पहुंच सके।

कैसे लिक्विड आॅक्सीजन को गैस में बदला जाता है?
लिक्विड आॅक्सीजन को गैस रूप में बदलने के लिए वाष्पीकरण की तकनीक अपनाई जाती है। इसके लिए आॅक्सीजन प्लांट (Oxygen plant) में उपकरण होते हैं। जैसे ही तापमान बढ़ता है, लिक्विड आॅक्सीजन (Liquid oxygen) गैस के रूप में बदलने लगती है। इसे सिलेंडर में भरने के लिए प्रेशर तकनीक अपनाई जाती है। छोटे सिलेंडर में कम दबाव और बड़े सिलेंडर (Large cylinder) में अधिक दबाव से गैस भरी जाती है।





दूसरे राज्यों से आ रही 500 टन आॅक्सीजन
मध्यप्रदेश में अभी 490 से 500 टन आॅक्सीजन दूसरे राज्यों से ला पा रहा है। बाकी जरुरत के आॅक्सीजन के लिए प्रदेश ने स्थानीय स्तर पर ही 92 टन आॅक्सीजन जुटाना शुरू कर दिया है। इसमें 60-70 टन आॅक्सीजन उद्योगों से और बाकी नए आॅक्सीजन प्लांट व कंसंट्रेटर (Concentrator) से ली जा रही है। केंद्र ने हाल ही में नाइट्रोजन और दूसरे रसायन ले जाने वाले टैंकरों को मॉडिफाई करके आॅक्सीजन लाने युक्त बनाने की स्वीकृति दी है।

भोपाल को हर दिन चाहिए करीब 130 टन आॅक्सीजन
भोपाल में एक तरफ कोरोना संक्रमित मरीजों (Corona infected patients) की संख्या में कागजों में कमी आ रही है। बावजूद शहर में आॅक्सीजन की डिमांड बढ़ती जा रही है। विगत एक सप्ताह में आॅक्सीजन की मांग 20 मीट्रिक टन ज्यादा बढ़ गई है। भोपाल में 110 मीट्रिक टन आॅक्सीजन प्रतिदिन खर्च होती है, लेकिन अब इसकी मांग 130 मीट्रिक टन तक पहुंच गई है। इसके अलावा जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन में भी 150 टन आॅक्सीजन की आवश्यकता है।

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