… क्योंकि ये कोहलीजी के न रहने की बात है

आगे बढ़ने से पहले मैं अग्रिम क्षमा याचना कर रहा हूँ। क्योंकि ये निहायत ही उथले और सर्वथा उजले मस्तिष्क तथा हृदयों के बीच एक समानता स्थापित करने का पाप है। मनमोहन देसाई (Manmohan Desai) आजीवन हद दर्जे की घटिया फिल्मों के प्रवर्तक तथा प्रबल समर्थक रहे। जबकि गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) ने इस विश्व को श्री रामचरित मानस (Ramcharit Manas) जैसी बेशकीमती कृति दी. तो फिर क्यों कर इन दो घनघोर परस्पर विपरीत शख्सियतों के बीच कोई साम्य तलाशा जाए? मगर ऐसा किया जा रहा है, ताकि किसी तीसरे का महत्व समझा जा सके. वह तीसरा जो अब हमारे बीच नहीं रहा है।
इतवार की अलसाई सुबह मनहूसियत में लिपटी खबर आयी कि नरेंद्र कोहली (Narendra Kohli) नहीं रहे। यह केवल एक मानव शरीर के निर्जीव हो जाने का विषय नहीं है। कम से कम मेरे लिए तो ऐसा बिलकुल भी नहीं हो सकता है. बात कोहली जी के अवसान की है। बात वैचारिक जड़ता, पारम्परिक दुराग्रही सोच एवं पठन-लेखन के तौर पर हुई एक बेहद सौम्य तथा सार्थक क्रांति वाले अध्याय के समापन वाली है। विचारक लोंगिनुस ने कालजयी रचनाओं को बड़ी ख़ूबसूरती तथा सम्मान के साथ परिभाषित किया है। उन अघोषित परिभाषाओं के फ्रेम में मैं आज कोहली की याद को स्थान दे रहा हूँ।
यकीनन लोंगिनुस की आत्मा या उनके प्रशंसक इसे मेरा अतिक्रमण मानेंगे। किन्तु आज ये तोहमत भी मुझे मंजूर है. ‘संन्यासी’ या ‘गुनाहों का देवता’ (Gunahon ka devta) के अंतिम पृष्ठ की अंतिम पंक्तियाँ हमें मानों किसी मेले में अकेला छोड़ जाती हैं। ‘मेलुहा’ (Meluha) में अमीश त्रिपाठी (Amish Tripathi) भी आपको इसी छटपटाहट पर लाकर मंझधार में आपने हाल पर ही छोड़ देते हैं. ‘हेलिना की तीन इच्छाएं’ (Hellina’s three wishes) नामक कृति कभी रीडर्स डाइजेस्ट (Readers Digest) में अंग्रेजी में पढ़ी थी. दो दशक के अधिक हो गए।
बेहद नुकीले और चुभन वाले अंत से एकाकार कर गयी यह किताब फिर कभी पढ़ने ही नहीं मिली। उसकी तलाश के तमाम प्रयास मुझे अंततः निराश ही करते चले गए. इस रचने के रूप में यह मेरे जीवन की अकल्पनीय क्षति जैसा मामला ही है. इसी क्षति को आज कोहली के निधन ने और उभार कर सामने ला दिया है। तो, आखिर क्या थे कोहली? केवल वह, जिन्होंने रामकथा और महाभारत पर आधारित उपन्यासों के रूप में साहित्यिक मोतियों की माला पिरोई थी! नहीं, ये तो एकांगी बल्कि बेहद अपाहिज स्वरूप वाला परिचय हुआ. इसीलिये मुझे गोस्वामीजी के मुकाबिल देसाई की आवश्यकता आन पड़ी है। गोस्वामीजी श्रीराम के अनन्य भक्त थे। रामचरित मानस में इसकी झलक साफ़ दिखती है। इसे पढ़ो तो लगता है कि तुलसीदास ने खुद के भीतर के लेखक को बंधक बना लिया था। क्योंकि यदि वह लेखक आजाद होता तो रामचरित मानस में हरेक महान काम का श्रेय केवल और केवल भगवान राम को ही दे जाता। रामचरित मानस से गुजरते समय राम के चरित्र बखान में जो अतिरेक तुलसीदास ने पूरे समय किया है, वह साफ़ महसूस किया जा सकता है।
मैं यहां राम को कम आंकने की प्रलयंकारी भूल नहीं कर रहा, बल्कि इस बात की तरफ ध्यान दिला रहा हूँ कि तुलसीदास ने हनुमान की शक्ति, विभीषण के दोगलेपन, ऋषियों के तेज एवं जटायू सहित सुग्रीव आदि के तमाम योगदानों को राम के पुरुषार्थ के आगे कम तवज्जो ही प्रदान की है. ठीक वैसे ही जैसे मनमोहन देसाई ने अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की औसत पुरुषार्थी प्रतिभाओं को देवतुल्य दिखाने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। दीपावली के अनार जैसी क्षणिक चमक बिखेरने वाली देसाई की अनंत फिल्मों में अमिताभ को सर्वशक्तिमान दिखाने के चक्कर में बाकी सभी किरदारों को हाशिये पर रख दिया गया था. बॉलीवुड विश्व में मनोरंजन की सबसे बड़ी प्रयोगशाला एवं कार्यशाला है। इस लिहाज से इस संस्था की शुचिता को बनाये रखा जाना चाहिए। इस दिशा में उठाये जाने वाले आवश्यक कदमों में मनमोहन देसाई और उन जैसी प्रवृत्ति की गन्दगी को साफ़ करना बड़ी जरूरत बन जाती है. किन्तु इस पुनीत कार्य के लिए बॉलीवुड को बजबजाहट से भर रहे इस गटर में उतरने को कोई तैयार नहीं हुआ. मगर साहित्य जगत पर कृपा कि नरेंद्र कोहली आज तक हमारे बीच रहे।
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उन्होंने तुलसीदास के राम को आम मानव के समक्ष लाने का जटिल काम कर दिखाया। जो लोग रामचरित मानस को कल्पना के दायरे में ही कैद रखते थे, जिनके लिए भगवान् राम सहित अन्य चरित्र केवल फंतासी के इर्द-गिर्द ही घुमते थे, उन्हें कोहली जी ने अपनी कलम से सत्य का भान करवाया। रामकथा और महाभारत पर आधारित कोहलीजी की कृतियाँ रामचरित मानस में वैज्ञानिकता और व्यवहारिकता के पुट की कमी को पूरा करती हैं. और ये केवल चिंतन या लेखन से नहीं, बल्कि इस तरह के लेखकीय कर्मों की उत्कृष्टता के चरम पर होकर ही हासिल किया जा सकता है। कोहली ने तुलसीदास के राम को यथार्थ का स्वरूप प्रदान किया। वेदव्यास के पांडवों को भी वे इसी भांति जस्टिफाई करने में सफल रहे. दो कालजयी घटनाक्रमों में कल्पना के नजदीक पहुंचे प्रसंगो और पात्रों को व्यवहारिकता के पंख लगाकर कोहली ने जो काम दिखाया, उसके लिए उनकी याद हमेशा की जाएगी। विनम्र श्रद्धांजलि।