धर्म

21 जुलाई को धूमधाम से मनाया जाएगा बकरीद का त्योहार

दिल्ली (Delhi) समेत देश भर में ईद उल अज़हा (Eid al-Adha) का त्योहार 21 जुलाई को मनाया जाएगा। बकरीद के दिन सुबह में नमाज अदा करने के साथ ही ईद मनाने की शुरुआत हो जाती है। ईद उल अजहा यानी बकरीद इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। बकरीद इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है। बकरीद का त्योहार रमजान का महीने खत्म होने के 70 दिन के बाद मनाया जाता है। ईद उल जुहा के दौरान मुसलमान ईदगाह या मस्जिद में जमा होते हैं और जमात के साथ 2 रकात नमाज अदा करते हैं। यह नमाज अमूमन सुबह के समय आयोजित की जाती है। वहीं मुस्लिम संगठन इमारत ए शरीया हिंद ने भी 21 जुलाई को बकरीद का त्योहार मनाने का ऐलान किया है। बकरीद के दिन सुबह में नमाज अदा करने के साथ ही ईद मनाने की शुरुआत हो जाती है।

चांद दिखने के 10 दिन बाद मनाते हैं बकरीद
कई राज्यों और शहरों में रविवार को इस्लामी कलेंडर के आखिरी महीने जुल हिज्जा का चांद दिखने की खबर आई है, और इसकी पुष्टि हुई है। लिहाजा ईद-उल-अजहा का त्योहार 21 जुलाई, बुधवार को मनाया जाएगा.’ बता दें कि बकरीद का त्योहार चांद दिखने के 10वें दिन मनाया जाता है, और बकरीद, ईद उल फित्र के दो महीने नौ दिन बाद मनाई जाती है।

क्या किया जाता है बकरीद के दिन
इस दिन मुसलमान लोग च्छे कपड़े पहनते हैं। महिलाएं विशेष पकवानों को पकाती हैं। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर नए कपड़े पहने हैं और ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करते हैं। नमाज़ के बाद एक दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं और इसके बाद जानवरों की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो जाता है।

सिर्फ इन्हीं लोगों पर कुर्बानी है वाजिब?
‘मुस्लिम समुदाय के जिन लोगों के पास करीब 612 ग्राम चांदी है या इसके बराबर के पैसे हैं, उन पर कुर्बानी वाजिब है। ‘ ‘यह जरूरी नहीं है कि कुर्बानी अपने घर या शहर में ही की जाए. जहां लॉकडाउन लगा है, वहां के लोग अन्य स्थानों पर रहने वाले अपने परिचितों या रिश्तेदारों को कुर्बानी करने के लिए पैसे भेज सकते हैं।

मीठी ईद और बकरीद में क्या अंतर है?
मीठी ईद की तरह बकरीद भी खुशी के साथ मनाई जाती है बस ईद-उल-फितर और बकरीद में में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है रमजान के तोहफे के तौर पर मनाई जाती है और eid-ul-adha यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है । कुर्बानी का जो कांसेप्ट है उसका भी यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में तक्सीम करें ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे साझा करते हैं।

बकरा ईद का महत्व क्या है
मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।

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