विश्लेषण

फिलहाल चैस बोर्ड और उपन्यास के कागजों में कहीं छिपा है आफताब अमीन पूनावाला 

आफताब देश की कानून-व्यवस्था और पुलिस के लिए बहुत टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। बात सिर्फ  यह नहीं कि उसने किसी टीवी सीरियल को देखकर इस अपराध की योजना रची। ऐसा असंख्य अपराधी कर चुके हैं और अंत में वह नाकाम रहे। बात यह कि आफताब इन सभी से बहुत आगे बढ़कर वह अपराध कर चुका दिखता है, जिससे बचने के उसने शायद अकल्पनीय तरीके भी पहले ही तलाश लिए थे।  

बॉबी फिशर अपने समय शतरंज के विश्व-विख्यात खिलाड़ी थे। उनकी चाल को मात देना तो दूर, अक्सर प्रतिद्वंदी उनकी चाल को समझने में भी सफल नहीं  हो पाते थे। फिशर जब शतरंज का अभ्यास करते थे तो उन्होंने गजब तरीका ईजाद किया। दोनों तरफ के खिलाड़ी वह खुद ही होते थे।  यानी फिशर खुद ही एक चाल चलते और फिर चैस बोर्ड के दूसरी ओर जाकर खुद का ही प्रतिद्वंद्वि बनकर अपनी ही चाल का तोड़ तलाशते थे।
सिडनी शेल्डन के मशहूर उपन्यास ‘सैंड्स ऑफ़ टाइम’ पर इसी शीर्षक से सफल फिल्म भी बनी है। इसका नायक चरित्र बेहद शातिर खलनायक पर भी भारी पड़ता है। क्योंकि वह खलनायक की सोच को ध्यान में रखकर ही यह अनुमान लगाता था कि उसका अगला कदम क्या होगा।
बॉबी फिशर जैसे असली व्यक्तित्व और शेल्डन के काल्पनिक नायक के बीच ही आफताब अमीन पूनावाला भी नजर आता है। उस पर अपनी लिव इन पार्टनर श्रद्धा वॉकर की हत्या का आरोप है। मामला बेहद संगीन है। आरोप है कि आफताब ने श्रद्धा की जान लेने के बाद उसके शरीर के 35 टुकड़े कर दिए। इन टुकड़ों में से कई को उसने बड़ी खूबी से इधर-उधर फेंक दिया। दिल्ली पुलिस भारी मशक्कत के साथ उन टुकड़ों को तलाश रही है।
पुलिस को तलाश उस हथियार की भी है, जिससे आफताब ने श्रद्धा की जान ली।
अब तक के घटनाक्रम से साफ़ लगता है कि आफताब देश की कानून-व्यवस्था और पुलिस के लिए बहुत टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। बात सिर्फ  यह नहीं कि उसने किसी टीवी सीरियल को देखकर इस अपराध की योजना रची। ऐसा असंख्य अपराधी कर चुके हैं और अंत में वह नाकाम रहे। बात यह कि आफताब इन सभी से बहुत आगे बढ़कर वह अपराध कर चुका दिखता है, जिससे बचने के उसने शायद अकल्पनीय तरीके भी पहले ही तलाश लिए थे।
अल्ताफ ने पहले कहा कि वह अदालत में सब-कुछ बता देगा, फिर अचानक उसने कह दिया कि उसे कुछ याद नहीं है कि श्रद्धा वाले मामले में आखिर हुआ क्या है।
जब खबरिया चैनल चीख-चीखकर कह रहे थे कि आफताब ने हत्या की बात कबूल ली है, तब  आरोपी के वकील ने यह दावा कर दिया कि आफताब ने ऐसा कुछ नहीं कहा है। एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में आफताब के वकील अविनाश कुमार ने कहा, ‘आफताब ने केवल यह कहा है कि श्रद्धा ने उसे गुस्सा दिला दिया था।’ जाहिर है कि गुस्सा हो जाना तब तक किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता, जब तक कि उसके चलते कोई गैर-कानूनी गतिविधि को अंजाम न दे दिया जाए।
हथियार का अब तक न मिल पाना इस बात की चुगली करता है कि आफताब ने सबूत मिटाने के लिए औजार को भी कुछ इस तरकीब से ‘ठिकाने’ लगाया होगा, जहां से उसका किसी सबूत के रूप में मिल पाना असंभव हो जाए। यह वही आफताब है, जिसके लिए कहा जा रहा है कि उसने श्रद्धा के खून के दाग मिटाने के लिए हर-संभव उपाय काफी हद तक सफलता के साथ कर लिया।
कम भीड़ वाली जगह पर मकान लेना। लाश के टुकड़े छिपाने के लिए नया फ्रिज खरीदना। हत्या के बाद भी श्रद्धा के फोन का इस्तेमाल। ये सब बताता है कि आफताब इस हत्याकांड के लिए खुद ही मुजरिम और खुद ही बचावकर्ता के रूप में तगड़ा अभ्यास कर चुका है। वह इस काण्ड की शतरंज के उस बोर्ड पर तैयार हुआ, जिसके एक तरफ वह अपराधी और दूसरी तरफ कानून बनकर एक-दूसरे की चालों का तोड़ तलाश चुका है। हालांकि वह इसमें कितना सफल होगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।
आफताब ने शातिर तरीके से कानून के सामने उसका अपराध साबित करने के लिए जो चुनौतियाँ खड़ी की हैं, उनके चलते कोई बड़ी बात नहीं कि वह कल को श्रद्धा के मरने की बात से ही पलट जाए। क्योंकि यह साबित करने का जटिल भार तो पुलिस पर ही होगा कि जो टुकड़े बटोरे गए हैं, वह श्रद्धा की लाश के ही हैं।
अब सारा दरोमदार नार्को टेस्ट पर है। क्योंकि उसमें ही यह संभावना जीवित है कि आफताब आधी बेहोशी में औजार का ठिकाना बता सके और कुछ वह बातें भी कह सके, जो अब तक रहस्य के कुहासे में हैं। आफताब असल में क्या है, यह शायद देर-सवेर पता चल जाए, लेकिन फिलहाल तो हम उससे बॉबी फिशर के चैस बोर्ड के दोनों तरफ या सिडनी शेल्डन के उपन्यास की कागजों में ही तलाश सकते हैं।

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