भोपाल

विसर्जन के बाद ‘ट्री गणेशा’ सब्जियां और फल बनकर खिलेंगे आप के आंगन में

आगामी दिनों में गणेश चतुर्थी पर्व है। दस दिवसीय पर्व की तैयारियों को लेकर भक्त मंडलों से लेकर बाजार में भी तैयारियां शुरू हो गई हैं। लेकिन इस बार मूर्तियां पूरी तरह से इको फ्रेंडली होंगी और खास होगी क्योंकि इस बार ‘ट्री गणेशा’ विसर्जन के बाद आपके आंगन में सब्जियां एवं फल बनकर हमेशा आपके साथ रहेंगे। भोपाल के मूर्तिकार राजेश प्रजापति ने खास मूर्तियां बताई हैं जिसको आपको अपने गमले एवं घर की क्यारियों में विसर्जित करना होगा। राजेश ने बताया कि इन मूर्तियों में सब्जियों एवं फल के बीज डाले गए हैं जो कि गमले में सब्जी एवं फल के पौधे बनकर निकलेंगे। जिसको हमने ग्रीन गणेशा थीम के अंतर्गत ‘ट्री गणेशा’ नाम दिया है। राजेश प्रजापति ने बताया कि हमने यह पहल इसलिए की है कि हम लगातार देख रहे हैं पर्यावरण में अनेक तरह के बदलाव आ रहे हैं जिसको लेकर हमने पर्यावरण के अनुकूल यह पहल की है। बता दें कि सुख, समृद्धि और विघ्नहर्ता के देव भगवान श्री गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। 10 सितंबर से गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2021) का पर्व शुरू हो जाएगा। भोपाल में इस बार मूर्तिकार पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मूर्ति तैयार करने में जुट गए हैं।

-खूब हो रही खरीदारी
राजेश प्रजापति ने बताया कि इन दिनों लोगों को यह मूर्तियां बहुत पसंद आ रहीं हैं यह ईको फ्रेंडली मूर्तियां पहले से अधिक बिक रहीं हैं। मैं रोजाना 100 से ज्यादा मूर्तियां बेच कर रहा हूँ । जिनकी कीमत 1100 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक है। वहीं एक खरीददार रश्मि वर्मा ने बताया कि मुझे किसी ने इन मूर्तियों के बारे में बताया था इसलिए मैं यह खरीदने आई हूं। यह एक अलग अनुभव होगा।

पीओपी से बनी मूर्तियों की खरीदी और बिक्री पर प्रतिबंध

भोपाल में पीओपी से बनी मूर्तियों की खरीदी और बिक्री पर प्रतिबंध लग गया है। भोपाल कलेक्टर ने इसे लेकर आदेश जारी किया है। इसके साथ ही आदेश के उल्लंघन करने पर जिला प्रशासन द्वारा कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जानकारी अनुसार पीओपी की मूर्तियों पर प्रतिबंध लगने के बाद गणेशोत्सव में अब गोबर-मिट्टी की मूर्तियां ही बनाई जा सकेंगी। वहीं 10 सितंबर से गणेश चतुर्थी की शुरूआत हो रही है। 10 दिनों तक पंडालों और घरों में गणेश जी की मूर्तियों को विराज कर उनकी पूजा आराधना की जाती है। दरअसल पूजा के पश्चात गणेश मूर्तियों का विसर्जन नदी और तालाबों में किया जाता है। गोबर मिट्टी की मूर्ति पानी में घुल जाती है लेकिन वहीं पीओपी की मूर्तियां जस की तस मौजूद रहती है। इसी के चलते पीओपी की मूर्तियों से नदी तालाबों में होने वाले प्रदूषणों के मद्देनजर उन पर प्रतिबंध लगाया गया है।

मिट्टी की मूर्तियों की अधिक मांग
मिट्टी के गणेश की मूर्तियों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। अधिकांश घरों में मिट्टी की मूर्तियां स्थापित होती हैं। नगर के मूर्तिकार पर्यावरण की सुरक्षा को देखते हुए पीओपी की बजाय मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं। मिट्टी के गणपति विर्सजन के लिए नदी तालाबो का पानी खराब भी नहीं होगा। इस साल निमार्ताओं द्वारा छोटी मूर्तियां ही अधिक बनाई जा रही हैं। निमार्ताओं द्वारा कई दिनों से भगवान श्री गणेशजी मूर्तियों का निर्माण चल रहा है। मूर्ति निमार्ता राजेश प्रजापति ने बताया कि मिट्टी के गणेशजी बना रहे हैं। दो-तीन वर्षों से मिट्टी के गणेशजी की ही अधिक मांग है। गणपति महाराज बनाने का कार्य कर रहे हैं। मिट्टी से मूर्तियां बनाने में मेनहत ज्यादा लगती ओर अन्य मूर्तियों के भांति इनकी देख-रेख सूखने से पहले ज्यादा करना पड़ती है।

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