विश्लेषण

पानी पे लिखा मोदी ने खामोश-सा अफ़साना 

‘खामोश-सा अफ़साना पानी से लिखा होता…।   ‘ गुलजार (Gulzar) ने ‘लिबास’ (Libas Film) फिल्म के लिए यह गीत लिखा था।    कल शाम से लगातार टेलीविजन पर चल रहे घटनाक्रम इसी गीत और फिल्म के नाम की पूरी ठोस वजहों के साथ याद दिला रहे हैं।

इंदिरा जी (Indira Gandhi) के बाद इस तरह की सख्ती और हिम्मत नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ही दिखा सके। एक झटके में बारह मंत्रियों को रुखसत कर दिया। वो रविशंकर प्रसाद (Ravishankar Prasad) , डॉ. हर्षवर्द्धन सिंह (Dr. Harshwarddhan Singh) और प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javdekar) भी खेत रहे, जो कल तक मोदी के ख़ास लोगों में गिने जाते थे। मुझे पूरा विश्वास है कि कल चली कैंची की जद में अपने पर आने से बच गए मंत्रियों ने बीती रात ‘जान बची तो लाखों पाए’ के अंदाज़ में राहत की सांस ली होगी।
मोदी का सन्देश साफ़ है। ‘काम नहीं तो ईनाम नहीं।’ अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) तथा किरण रिजिजू (Keran Rijiju) प्रमोट कर दिए गए और बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo)  को तो अब ट्विटर (Twitter) पर भी कोई नहीं पूछ रहा है। ये पूरी तरह परफॉरमेंस बेस्ड वाला मामला हो गया है। बीती रात के मंत्रालय के बंटवारे के साथ ही सभी नवागत और पूर्व से शामिल मंत्रियों के बीच ‘आपका समय शुरू होता है अब’ (Your time Stars now) वाला सन्देश चला गया है। कम से कम सन 2024 तक इस सरकार को अब इंदिराजी की शैली में ‘आराम हराम है’ का नारा अपने आचरण में उतारना होगा। अब लखनऊ (Lucknow) की एक इस्तेमाल न की गयी चाबुक की जरूरत शायद दिल्ली को महसूस हो रही होगी। वो चाबुक, जिसे लहराते हुए योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने कभी ‘सोऊंगा और न सोने दूंगा’ की हुंकार भरी थी।

बुधवार के फेरबदल की संभावना पहले से ही जताई जा रही थी। बस उसके स्वरूप को लेकर अटकलों का बाजार था। कौन-कौन नए चेहरे सामने आएंगे, इसे लेकर अपने-अपने दावे थे। लेकिन ‘ऐसे-ऐसे निकल जाएंगे’ की तो शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। और ये अकल्पनीय तथ्य ही एक अहम बात कहता है। ‘निष्क्रिय’ या ‘थके’ हुए मंत्रियों में से कई अपने ऊपर संघ (RSS) का हाथ होने की बात के चलते आश्वस्त दिखते थे। मगर उनके पांव तले से जमीन सरक गयी है। माना जा सकता है कि कम से कम अगले आम चुनाव तक के लिए संघ ने भी मोदी को फ्री हैंड दे दिया है। यह आवश्यक भी था। आप माने या न मानें, लेकिन 2014 और 2019 की भाजपा के पक्ष में चली तूफानी हवा का श्रेय मोदी के चेहरे को ही जाता है। निश्चित ही संघ की जमीनी तैयारियों और अद्भुत संगठन क्षमता का भी पार्टी को बहुत लाभ मिला, मगर मोदी फैक्टर इस सब पर हावी रहा। तो अब, जबकि मोदी काफी कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, आम जनता की जेब और जरूरतों से सीधे जुड़े संवेदनशील विषयों पर केंद्र सरकार गुस्से की शिकार है, तब मोदी को उनकी जरूरत के हिसाब से मंत्रिमंडल में बदलाव का हक देकर संघ ने जिम्मेदारियों के श्रम विभाजन को मंजूरी दे दी है। अब  मोदी का जिम्मा है कि वह सरकार को जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप चलाएं और भाजपा (BJP) की जीत की हैट्रिक का रास्ता साफ़ करें। अब संघ सहित भाजपा संगठन का दायित्व रहेगा कि वह सरकार के काम से अलग जनता के बीच पार्टी की ताकत बढ़ाने और उसके जरिये सरकार को प्राणवायु देने के मिशन में जुट जाएं।

मोदी के लिए व्यक्तिगत रूप से समय बहुत कठिन है। ‘घर-घर मोदी, हर-हर मोदी’ वाला दौर बीत गया है। लेकिन फिर भी ‘संकट से हर लो मोदी’ वाली संभावना अब भी कायम है। यानी देश की बहुत बड़ी आबादी अब भी  यह मानती है कि जिन संकटों के लिए मोदी की सत्ता को दोषी माना जा रहा है, उनके निदान का करिश्मा भी खुद यही शख्स कर सकता है। देश का विपक्ष इस समय कार्यक्रम-विहीन है। उसके पास मोदी को हटाने के अलावा और कोई एजेंडा नहीं बचा है। विरोधी दलों की ताकत अलग-अलग खेमे के अपने-अपने भावी प्रधानमंत्रियों के चलते बिखरी हुई है।  उनका कोई सामूहिक एजेंडा नहीं है। मोदी की खुशकिस्मती है कि जो भी समस्याएं उनके काल में देश झेल रहा है, वह समस्याएं पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में भी सामने आयी थीं। इस तरह उनकी सरकार खामियों के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से खुद पर लगी तोहमतों को अब भी कुछ कम कर पा रही है। राष्ट्रवाद को लेकर इस शासन का पलड़ा अब भी अतीत की भूलों पर भारी पड़ रहा है। इसलिए सही और संतलित फ़ौज को लेकर यह सरकार अब भी अपने लिए एक अनुकूल कल की तरफ बढ़ने की स्थिति में दिख रही है।

मोदी ने दूसरे कार्यकाल में अपने मंत्रियों के लिए पानी से खामोश अफ़साने लिखे। फिर जरूरत के अनुसार अपात्रों का पानी उन्होंने उतार दिया और सुपात्रों को और ऊंची लहरों पर सवारी का मौक़ा दे दिया है। केंद्र की सरकार अब नए लिबास में है। इस लिबास की तुरपन कितनी मजबूत है, यह  जानने के लिए अगले आम चुनाव तक का इंतज़ार करना होगा।

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