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एक रहस्यमयी खूबसूरत नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड, जहां जिंदा गए व्यक्ति की लौटती है केवल डेड बॉडी

भारत में कई सारे ऐसे टूरिस्ट प्लेस है। जिनमें या तो जाना मना है या फिर उनमें कोई ऐसा रहस्य छुपा है कि कोई जाना भी चाहें तो नहीं जा पाता है। ऐसा ही एक प्लेस है अंडमान निकोबार द्वीप का एक द्वीप जहां जाना प्रतिबंधित है।

TRAVEL DESK : भारत में कई सारे ऐसे टूरिस्ट प्लेस है। जिनमें या तो जाना मना है या फिर उनमें कोई ऐसा रहस्य छुपा है कि कोई जाना भी चाहें तो नहीं जा पाता है। ऐसा ही एक प्लेस है अंडमान निकोबार द्वीप का एक द्वीप जहां जाना प्रतिबंधित है। ये प्रतिबंध भारत सरकार की ओर से लगाया गया है। दरअसल उस जगह पर जाना किसी खतरे से कम नहीं है। जी हां सेंटिनल द्वीप एक ऐसी जगह है, जहां जाने वाला कभी लौटकर नहीं आता है।

 

 

कितने लोगों ने गंवाई जान

तीन साल पहले भी दो विदेशी चुपचाप वहां गए तो लौटकर जिंदा नहीं आ पाए। केवल वहां से उनकी मृत बॉडी ही लौटी।वहीं दो साल पहले एक अमेरिकी नागरिक ने जब वहां जाने की कोशिश की तो, उसकी भी बॉडी ही मिली। ऐसे कई और भी लोग है जिनके जाने और लौटने के संबंध में सरकार को कोई जानकारी नहीं है। वहीं साल 2006 में जब कुछ मछुआरें गलती से इस आइलैंड पर पहुंच गए थे, तब उन्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस द्वीप का नाम सेंटिनल द्वीप है। आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने यहां किसी के भी जाने पर पाबंदी लगाई हुई है।

 

कुछ लोग बचकर भागने में हुए सफल

अंडमान और निकोबार प्रशासन ने 2005 में कहा था कि उनका सेंटिनेलिस की जीवनशैली या आवास में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है और वे उनके साथ आगे संपर्क करने या द्वीप पर कानून लागू करने में रुचि नहीं रखते है। सन् 1981 में एक भटकी हुई नौका इस आइलैंड के करीब पहुंच गई थी। उस नांव में बैठे लोगों ने बताया कि कुछ लोग किनारों पर तीर-कमान और भाले लेकर खड़े थे, लेकिन किसी तरह हम वहां से बचकर निकलने में सफल रहे।

 

नार्थ सेंटिनल द्वीप का इतिहास
अक्सर इस जनजाति के लोगों को पाषाण काल की जनजाति भी कहा जाता है, क्योंकि तब से लेकर अब तक इनके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। शायद इसकी वजह इनके भीतर ग्रहणशीलता की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी रखने का स्वभाव है। यह जनजाति विश्व की सबसे ज्यादा खतरनाक और बेहद अलग रहने वाली जनजाति है। इतना ही नहीं यह एकमात्र ऐसी जनजाति है, जिनके जीवन या अंदरूनी मामलों में भारत सरकार भी दखल नहीं देती है।

 

 

कितना खूबसूरत है नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड
वहां न सरकारी अफसर जाते हैं। न ही कोई उद्योगपति, न ही आर्मी और न ही पुलिस। यह किंग कॉन्ग फिल्म के स्कल आइलैंड की तरह है। जहां से वापस आना नामुमकिन माना जाता है। इस द्वीप का नाम है- नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड। आसमान से देखने पर यह द्वीप किसी भी आम द्वीप की तरह एकदम शांत दिखने वाला, हरा-भरा और खूबसूरत नजर आता है, लेकिन फिर भी यहां कुछ ऐसा है जिससे ना तो पर्यटक और ना ही मछुआरे वहां जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं।

 

 

क्या है इस द्वीप का रहस्य

प्रशांत महासागर के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर एक ऐसी रहस्यमय आदिम जनजाति रहती है। जिसका आधुनिक युग से कोई लेना-देना नहीं है। वह ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को संपर्क रखने देते हैं। जब भी उनका सामना किसी बाहरी व्यक्ति से होता है तो वे हिंसक हो उठते हैं और घातक हमले करते हैं। इस जनजाति के लोग आग के तीर चलाने में माहिर माने जाते हैं, इसलिए अपनी सीमा क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों पर भी इन गोलों से हमले करते हैं।

 

कितना पुराना है ये द्वीप
बंगाल की खाड़ी में बसा ये द्वीप यूं तो भारत का ही हिस्सा है, लेकिन यह हमेशा से ही ऐसी पहेली बना रहा है। जिसे कोई भी सुलझा नहीं पाया। ऐसा माना जाता है कि इस द्वीप पर रहने वाली जनजाति का अस्तित्व 60 हजार साल पुराना है, लेकिन वर्तमान में इस जनजाति की जनसंख्या कितनी है ?  यह अभी तक सामने नहीं आया है। एक अनुमान के अनुसार इस जनजाति से संबंधित लोगों की संख्या कुछ दर्जन से लेकर 100-200 तक हो सकती है।

बाहरी लोगों का हस्तक्षेप नहीं है पसंद

किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को ये लोग बर्दाश्त नहीं करते है, इसलिए इनके बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी जैसे इनके रिवाज, इनकी भाषा, इनका रहन-सहन आदि की किसी को भी जानकारी नहीं है। साल 2004 में आई भयंकर सूनामी के बाद अंडमान द्वीप तबाह हो गए थे। यह द्वीप भी अंडमान द्वीपों की ही श्रृंखला का हिस्सा है, लेकिन सुनामी का इस जनजाति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, ये बात भी अभी तक कोई नहीं जान पाया है। सुनामी के बाद जब भारतीय तटरक्षक दल ने वहां जाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने हेलिकॉप्टरों पर आग के तीर से हमले कर दिए। जिसके बाद वहां पहुंचने के प्रयास रोक दिए गए।

रोग प्रतिरोधक क्षमता की है इनमें कमी
भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए ताकि इस जनजाति के लोगों के हितों के लिए काम किया जाए और इनके जीवन को सुधारा जाए। आदिवासी जनजातियों के लिए ही काम करने वाली सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक संस्था का कहना है कि नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली जनजाति, इस ग्रह की सबसे कमजोर जनजाति है। उनके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता लगभग ना के बराबर है। मामूली सी बीमारी की वजह से भी उनकी मौत हो सकती है। अन्य लोगों से पूरी तरह अलग होने की वजह से इन लोगों का संपर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है, इसलिए महामारी में इनकी जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा है।

 

एक भारतीय महिला के आगे झुकाएं थे हथियार

4 जनवरी, 1991 को भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण की एक टीम इस आईलैंड के दौरे पर गई हुई थी। रिसर्च एसोसिएट के तौर पर मधुमाला चटोपाध्याय भी इस टीम की हिस्सा थीं। ये टीम जैसे ही इस आईलैंड पर पहुंची इस जनजाति के लोगों ने पहली बार किसी महिला को देखते ही उन पर हमला करने के बजाय अपने हथियार झुका दिए। मधुमाला के दोस्ताना व्यवहार से इस जनजाति के लोग उनके क़रीब आने की कोशिश कर रहे थे। ये पूरा सीन देखकर टीम के अन्य सदस्य भी हैरान थे, क्योंकि पहली बार कोई इंसान इस जनजाति के इतने क़रीब जा रहा था।

 

आखिर फिर क्यों नहीं गई मधुमाला उस आइलैंड पर

साल 1975 में पहली बार भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण और A&NI प्रशासन की संयुक्त टीम ने ‘जरावा जनजाति’ से संपर्क साधा था। ये जनजाति पिछले कई सालों से इनके संपर्क में थी। इनसे मुलाक़ात के दौरान सरकारी टीम इस जनजाति के लोगों को केले और नारियल गिफ़्ट के तौर पर देते थे। इन मुलाक़ातों के दौरान कुछ हिंसक घटनाएं भी हुई। जिसके बाद महिला सदस्यों को यहां जाने मना कर दिया गया। इसके साथ ही मधुमाला इस मिशन से दूर हो गयीं। साथ ही उनकी उपलब्धियों को भी भुला दिया गया।

 

 

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