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जटिल मुद्दा है मुफ्त की सौगातों का वादा: अब तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई: SC ने कहा

नई दिल्ली। राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त की सौगातें बांटने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। दरअसल अब इस पूरे मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मसले पर विशेषज्ञ कमेटी गठित करना सही होगा। लेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार भी करना जरूरी होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक चुनावी लोकतंत्र में सच्ची शक्ति मतदाताओं के पास होती हैं। मतदाता ही पार्टियों और उम्मीदवारों का न्याय करते हैं। फ्री चुनावी वादा बहुत ही जटिल मुद्दा है, जिसको देखते हुए इसे तीन जजों की बेंच के पास भेजा जा रहा। अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि फ्रीबीज टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है। हालांकि सभी योजना पर खर्च मुफ्त वादे नहीं होते। कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि सरकार को इस पूरे मसले पर सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाकर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या अदालत किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पास कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।





दिवालिया बना सकता है मुफ्त का वादा
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मुफ्त के वादे राज्य को दिवालिया होने की ओर धकेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसी मुफ्त घोषणा का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है. यह राज्य को वास्तविक उपाय करने से वंचित करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन लोकतंत्र में निर्वाचक मंडल के पास सच्ची शक्ति है।

ये है याचिकाकर्ता की दलील
पिछली सुनवाइयों के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील विकास सिंह ने कहा था कि सभी पार्टियों को सत्ता चाहिए, ऐसे में वो सब कुछ मुफ्त देने का वादा कर देते हैं। अगर ऐसे ही हालात रहे तो देश एक दिन दिवालिया हो जाएगा। इस पर सिंघवी ने कहा कि कोई कमेटी ये कैसे तय कर सकती है कि फ्री क्या है और क्या नहीं? अनुच्छेद 19 (2) के तहत सभी को बोलने की आजादी है। कोर्ट को इस मुद्दे को सुनना ही नहीं चाहिए था।

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