नज़रिया

सोनिया की चिंता या राजनीतिक दांव ?

कोविड (Covid-19) के हालात को लेकर सोनिया गाँधी (Sonia Gandhi) की फ़िक्र जायज है. कांग्रेस (AICC) की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पार्टी की कार्यसमिति (Congress working committee) में इस वैश्विक आपदा को लेकर काफी चिंता जताई। लेकिन सियासत तो सियासत है। कई दशक गुजरे। एक फिल्म की शूटिंग के बीच अमिताभ बच्चन घायल हो गए। तब एक चवन्नी छाप फ़िल्मी पत्रिका ने निरूपा राय का इंटरव्यू लिया। राय अनेकानेक फिल्मों में अमिताभ की माँ की भूमिका अदा कर चुकी थीं। बच्चन से जुडी सामग्री में इंटरव्यू के लिए राय का चयन इसी गरज से किया गया। लेकिन फ़िल्मी माँ ने इस दौरान जो बातें कहीं, उनमें फ़िल्मी बेटे की सेहत की फ़िक्र कम दिखी। राय की तरफ से ज्यादा चिंता इस बात की नजर आयी थी कि बच्चन के बीमार होने से उन दोनों की आने वाली फिल्मों में विलंब हो जाने का ख़तरा था।

तो ऐसी ही कुछ बात सोनिया गांधी की कोरोना (Corona) को लेकर चिंता में दिखी। सोनिया चाहकर भी केंद्र सरकार के लिए अपने राजनीतिक विद्वेष को इस घोर अमानवीय स्वरूप वाली मानवीय त्रासदी से अलग नहीं कर सकीं। वही किसी जिलाध्यक्ष के स्तर वाले आरोप। वही वैक्सीन के लिए आयु सीमा कम करने की मांग। और इस सबसे जोरदार रोचक तथ्य यह की सोनिया ने केंद्र पर इस वायरस के संबंध में विपक्ष के ‘रचनात्मक सुझावों’ को न मानने का आरोप भी लगा दिया। ‘रचनात्मक सुझाव’ क्या वही, जो छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) और राजस्थान (Rajasthjan) में अशोक गेहलोत (Ashok Gehlot) की कांग्रेस सरकार ने भी नहीं सुने! यहां तक कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की तत्कालीन कमलनाथ (Kamal Nath) के नेतृत्व वाली कांग्रेस हुकूमत ने भी शायद इन सुझावों की उपेक्षा की होगी।





क्योंकि नाथ तो इस प्रदेश को कोरोना की भयावह विरासत देकर ही गए थे और छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में भी आज तक इस रोग के हालात भयावह ही बने हुए हैं। अब यह तो सोनिया भी नहीं कह सकतीं कि नाथ सहित बघेल और गहलोत ने भी विपक्ष के ‘रचनात्मक सुझावों’ को नजरंदाज किया होगा। तो फिर क्या वजह है कि इन राज्यों में भी कोरोना के प्रसार को रोका नहीं जा सका?

निश्चित ही कोरोना के मौजूदा विस्तार में केंद्र सहित कई राज्य सरकारों की भी भारी चूक रही है. किन्तु कांग्रेस उपरोक्त तरीके के आरोप लगाने से पहले कुछ तो सोच ले। मुझे लगता है कि प्रदेश में भाजपा सरकार को आपदा के समय काम करने के लिए कांग्रेस की पूर्व सरकारों से सीख लेना चाहिए। मसलन शिवराज (Shivraj Singh Chauhan) को भागकर उसी तरह कहीं छिप जाना चाहिए, जिस तरह अर्जुन सिंह (Arjun Singh) भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के बाद भागकर केरवा कोठी (Kerwa Kothi) में जा दुबके थे। फिर शिवराज को अगली फ़िक्र इस बात की करना चाहिए कि इस कोरोना काल में गलत करने वालों को वैसे ही सुरक्षा प्रदान करें, जैसे गैस त्रासदी के मुख्य अभियुक्त वारेन एंडरसन (Warren Anderson) को अर्जुन सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने प्रदान की थी। ये सिंह और गाँधी के पुण्यकर्म का ही नतीजा था कि फिर एंडरसन कभी भी भारत की पकड़ में नहीं आ सका।





कोरोना से हर जगह लोग मर रहे हैं। विडंबना यह कि इस पर भी राजनीति हो रही है। छत्तीसगढ़ सरकार इतनी ही सक्षम है तो क्यों ऐसा हुआ कि वहाँ कोरोना की सेकंड वैव का असर देश के सर्वाधिक बुरी तरह प्रभावित छठवें राज्य के रूप में हुआ? अशोक गेहलोत तो साक्षात चुटकुला बनकर सामने आये हैं। एक वीडियो में वो पहले कोरोना से डरने की बात कहते है और फिर कहते हैं कि इससे डरने की जरूरत नहीं है। ये याद दिला दूँ कि ये वही गेहलोत हैं, जिनके कार्यकाल में राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में कई दुधमुँहों की मौत के बात भी राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका वाड्रा (Priyanka Vadra) अपने मुंह सिलकर चुपचाप बैठ गए थे। जबकि यही भाई-बहन यूपी में बच्चों की मौत पर किसी प्रोफेशनल रुदाली से भी ज्यादा आंसू बहा चुके थे। निश्चित ही यह समय सभी दलों के मिल-जुलकर काम करने का है. इसमें राजनीति नहीं होना चाहिए। लेकिन इसकी पहल कौन करेगा, यह लाख टके का सवाल है।

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