ताज़ा ख़बर

किरण बेदी एपिसोड: अपमान नहीं सहते सिख, फिर ऐसा करने वाला कोई अपना ही क्यों न हो

देश की पहली महिला आईपीएस अफसर के रूप में ख्याति अर्जित करने वाली किरण बेदी फिलहाल कुछ कुख्याति वाले हालात से दो-चार हो रही हैं। उन पर सिख समुदाय को लेकर आपत्तिजनक बात कहने का आरोप लगा है। किरण खुद इसी समुदाय से हैं। उन्होंने अपने कथन के लिए माफी मांगी है। लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इससे संतुष्ट नहीं है। बता दें कि यह कमेटी भारत में मौजूद संस्था है, जो गुरुद्वारों के रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है। इसका अधिकार क्षेत्र तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तक है।
श्रीमती बेदी ने तमिलनाडु के चेन्नई में एक कार्यक्रम के दौरान उक्त कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसकी सिख समाज में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। हालांकि सिख समुदाय के गुस्से ने नुपुर शर्मा प्रकरण के खिलाफ उपजे गुस्से जैसा रूप नहीं लिया है।
विवाद को बढ़ता देख किरण बेदी ने माफी मांग ली। उन्होंने कहा, ‘मैं सिख समुदाय का बहुत सम्मान करती हूं। मैं गुरु नानक देव जी की भक्त हूं। मैंने जो कुछ भी कहा था, उसे गलत तरीके से न समझा जाए। मैं माफी मांगती हूं।’ किरण भाजपा से जुड़ी हुई हैं। पंजाब में इस वक्त आम आदमी पार्टी की सरकार है और इस दल ने किरण के बयान की तीव्र भर्त्सना की है।
बेदी ने सिखों के साथ जोड़े जाने वाले एक मजाक (बारह बजने) को लेकर बात कही थी। सिखों का कहना है कि मुग़ल और अंग्रेज उनकी बहादुरी से घबराकर उनके लिए जो अनर्गल प्रचार कर गए, अब वही चुटकुलों और मजाक के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। समुदाय का कहना है कि  जब मुगल भारत को लूटकर और बहन-बेटियों को अगवा कर ले जा रहे होते थे, तब सिख ही उनसे डटकर लड़ते थे और बहन-बेटियों की रक्षा करते थे। 12 बजे था मुगलों पर हमला करने का समय। समुदाय के अनुसार, ‘यह है 12 बजे का इतिहास।’
सिख समुदाय अपने संस्कार एवं धर्म से जुड़े मामलों में बहुत संवेदनशील है। वह इस मामले में अपने समुदाय के लोगों को भी नहीं बख्शता है। रेपिस्ट गुरमीत राम-रहीम सिंह भी इसका शिकार हुआ था। यह वर्ष 2007 की बात है। राम-रहीम तब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख के तौर पर लाखों लोगों के बीच पूजा जाता था। तब उसने एक फोटो में खुद को सिखों के पूजनीय गुरु गोबिंद सिंह जी जैसा दिखने की कोशिश की थी। इस पर इतना बड़ा विरोध हुआ कि डेरा के संचालकों को बार-बार सिख समुदाय से माफी मांगना पड़ी थी। राम-रहीम से नाराज होकर उस पर हमला भी किया गया। पूरा डेरा अकाल तख़्त के आगे हाथ जोड़कर माफी मांगता नजर आ गया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक केसी सुदर्शन तथा इस पद को वर्तमान में संभाल रहे मोहन भागवत ने अलग-अलग मौकों पर सिख धर्म को हिन्दू धर्म का ही हिस्सा बताया था, जिसकी सिख समाज ने जमकर आलोचना की थी।
वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट में सिखों पर बनने वाले चुटकुलों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई हुई थी. इसमें याचिकाकर्ताओं ने कहा था, ‘संता-बंता चुटकुलों से समुदाय की भावनाएं आहत होती हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि भी खराब होती है।’ याचिकाकर्ता के अनुसार करीब 5000 वेबसाइटें ऐसी हैं, जिनमें सिख समुदाय पर चुटकुले रहते हैं। लिहाजा इन पर रोक लगाई जानी चाहिए और भविष्य के लिए दिशा-निर्देश तय होने चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में एक निगरानी तंत्र बनाने की बात कही थी।
इस याचिका से पहले एक निजी मनोरंजन टीवी चैनल को भी सिखों के विरोध का सामना करना पड़ा था। चैनल के एक कार्यक्रम में दो मसखरे प्रस्तोताओं को सिख दिखाया गया था। समुदाय की आपत्ति के बाद उन दोनों को बगैर पगड़ी या सिखों के किसी अन्य प्रतीक के बगैर ही दिखाया गया।
पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह भी एक समय बेदी की ही तरह अपने समुदाय के निशाने पर आ गए थे। एक विज्ञापन के लिए सिंह ने पगड़ी खोलकर बाल दिखाते हुए फोटो खिंचवाया था। सिख समाज ने इसे अपने प्रतीक का अपमान बताया और हरभजन को माफी मांगना पड़ गयी थी।
वर्ष 2008 में आयी अक्षय कुमार की फिल्म ‘सिंह इज किंग’ में मुख्य चरित्र के रूप में अक्षय को बिना दाढ़ी का पंजाबी दिखाया गया था, इस पर भी सिख समाज ने विरोध जताया। फिल्म यूनिट को शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से माफी मांगकर फिल्म रिलीज करवाने का अवसर मिल सका था।
पंजाब में सिख धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के दो मामले तो वर्ष 2017 के चुनाव में उस समय की शिरोमणी अकाली दल पार्टी पर बुरी तरह भारी पड़ गए थे और इस पार्टी को उस चुनाव में अपने इतिहास की सबसे कम सीट मिली थीं।
90 के दशक में बूटा सिंह पंजाबी समाज के बड़े नेताओं में गिने जाते थे। वर्ष 1984 में इंदिरा गाँधी के आदेश पर सेना ने सिखों के पवित्र स्वर्ण मंदिर में घुसकर वहाँ गोलीबारी की और गोले भी दागे। तब यह कहा गया कि सिखों की तरफ से केवल बूटा सिंह ने इंदिरा के इस कदम का समर्थन किया था। बूटा सिंह को समाज से बाहर कर ‘तनखैया’ घोषित कर दिया गया था। सिंह ने डैमेज कण्ट्रोल की गरज से स्वर्ण मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्सों का फिर निर्माण कराया तो नाराज सिखों ने उस निर्माण को ढहा दिया था। बाद में बूटा सिंह ने अपने किये के लिए माफी मांगी, तब कहीं जाकर उन्हें समाज में वापस लिया गया था।
(आलेख के सभी चित्र प्रतीकात्मक हैं)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button