शख्सियत

एसटीएफ का गठन कर कल्याणकारी राज्य की तरफ बढ़े थे कल्याण सिंह

कोमल हृदय मगर राजनीति में शुचिता बरकरार रखने के लिये कठिन फैसले लेने में तनिक भी देर नहीं करने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिवंगत नेता कल्याण सिंह (Departed BJP leader Kalyan Singh) ने अपने मुख्यमंंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) (Special Task Force) (STF) का गठन कर राज्य में कानून व्यवस्था के खिलाफ खिलवाड़ करने वालों को सख्त संदेश दिया था।
वर्ष 1991 में प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर श्री सिंह ने अपने करीब डेढ़ वर्ष के संक्षिप्त कार्यकाल में छह दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस (Babari Demolition) के बाद अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था जिसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरसिंहराव (PV Narsinhrao) ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। अपने दूसरे कार्यकाल में श्री सिंह ने 21 सितम्बर 1997 को शपथ ग्रहण करने के बाद चार मई 1998 को एसटीएफ का गठन कराया और उसे पहला टास्क आतंक का पर्याय बने गोरखपुर (Gorakhpur) के दुर्दांत माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला (Shriprakash Shukla) की दहशत को खत्म करने का दिया था। श्री सिंह के इस निर्णय की परिणाम जल्द सामने आया जब 22 सितंबर 1998 में गाजियाबाद में एसटीएफ ने एक मुठभेड़ में श्रीप्रकाश शुक्ला को मार गिराया। नब्बे के दशक में श्रीप्रकाश का आतंक यूपी के अलावा पड़ोसी राज्य बिहार में भी था।
इसके बाद एसटीएफ ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई माफियाओं और दुर्दांत अपराधियों को मुठभेड़ में ढेर कर प्रदेश में शांति का माहौल बनाने में अहम योगदान दिया। कल्याण सिंह द्वारा गठित एसटीएफ की यह मुहिम आज भी जारी है जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।
पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने बताया कि श्रीप्रकाश के खात्मे के बाद एसटीएफ ने निर्भय गुर्जर, ददुआ, ठोकिया जैसे तमाम अपराधियों का सफाया किया।

नक़ल माफिया पर कसी थी नकेल

कल्याण सिंह ने विश्व की सबसे बड़ी परीक्षा कराने वाली संस्थाओं में से एक यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में नकल अध्याधेश लाकर यूपी बोर्ड को खास पहचान दी थी।
सिंह ने नकल अध्याधेश को लागू करके यूपी बोर्ड की खास पहचान दिलाया था। अध्यादेश लागू होने के बाद छात्र-छात्राएं बहुत ही परिश्रम से पढते थे। सन् 1992 मे हाईस्कूल और इटंर मीडिएट की परीक्षा मे सफल हुए परीक्षार्थियों की एक अलग पहचान होती थी। बहुत स्कूल ऐसे भी रहे थे जहां पर एक भी विद्यार्थी पास नहीं हुआ था।

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