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सिंधिया ने भाजपा में पूरा किया एक साल: संगठन के साथ संतुलन बनाने में कामयाब होते दिख रहे महाराज

भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भारतीय जनता पार्टी का सदस्य बने आज पूरे एक साल हो गए। ठीक एक साल पहले आज ही के दिन यानी 11 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामा था। सिंधिया के इस कदम के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने थे।

सिंधिया जब बीजेपी में आए थे तब बड़ा सवाल था कि क्या सिंधिया भगवा खेमे में सहज हो पाएंगे और क्या खुद बीजेपी एक ऐसे नेता को स्वीकार करेगी जो सालों से उसके खिलाफ राजनीति करता आया है। हालांकि अब एक साल बाद अगर देखा जाए तो सिंधिया बीजेपी संगठन के साथ संतुलन बनाने में काफी हद तक कामयाब होते दिख रहे हैं। दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराज या श्रीमंत कहा जाता है क्योंकि वो ग्वालियर राजघराने से आते हैं लेकिन बीजेपी कैडर आधारित राजनीतिक पार्टी है।

ऐसे में सवाल था कि क्या यहां सिंधिया टिकेंगे? ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बदले हुए व्यवहार से इसका काफी हद तक जवाब दे दिया है। कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया जब मध्य प्रदेश आते तो उनसे मिलने लोगों को सर्किट हाउस जाना होता था, जहां उनके समर्थकों का हुजूम लग जाता था। बीजेपी में आने के बाद सिंधिया अब खुद कार्यकतार्ओं और नेताजों से मिलने उनके घर जा रहे हैं। कार्यकतार्ओं के घर जाकर खाना खा रहे हैं और जनता से उनका कनेक्ट अब बढ़ता दिख रहा है। सिंधिया की राजघराने वाली श्रीमंत की छवि कार्यकर्ता आधारित बीजेपी में जमीनी कार्यकर्ता जैसी होती दिख रही है।

कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया जब तक थे उनके समर्थकों को अलग गुट का माना जाता था। हमेशा यह कहा जाता था कि कांग्रेस में कमलनाथ, दिग्विजय और सिंधिया के अलग-अलग खेमे बटे हुए हैं। लेकिन बीजेपी में आने के बाद अब ज्योतिरादित्य सिंधिया यही कहते हैं कि अब सब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता हैं, किसी खास नेता के समर्थक नहीं। इसकी एक तस्वीर नवंबर में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में भी दिखी जहां बीजेपी के संगठन ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आए नेताओं को चुनाव जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत की और दिन-रात एक कर दिया।

माना जा रहा था कि अपनी परंपरागत सीट पर कांग्रेस से आए नेताओं को चुनाव लड़ाने में भाजपा के अपने नेताओं को खुद का भविष्य अंधेरे में जाता दिख रहा था इसलिए उपचुनाव में भितरघात की संभावना थी। लेकिन बीजेपी आलाकमान ने संगठन को इस तरह एकजुट किया कि सब पुराने गिले-शिकवे भुलाकर सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए नेताओं को चुनाव जिताने में जुट गए। भारतीय जनता पार्टी को इसका जबरदस्त फायदा भी हुआ और उपचुनाव में उसने प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया।

सिंधिया के भाजपा में आने के बाद यह भी माना जा रहा था कि क्या शिवराज सिंह चौहान अब असहज हो जाएंगे? लेकिन बीते एक साल में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच रिश्ते लगातार प्रगाढ़ होते दिखे। इसकी शुरूआत हुई जब शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार भोपाल आने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया। सिंधिया उस दावत में पहुंचे और यहां शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह ने अपने हाथों से उन्हें खाना परोसा। यही नहीं प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के साथ भी ज्योतिरादित्य सिंधिया बेहद सहज नजर आते हैं। संगठन और सत्ता में ज्योतिरादित्य सिंधिया को किस तरह स्वीकार किया गया है इसका उदाहरण है शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में बड़ी संख्या में उन नेताओं का शामिल होना जो कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए हैं।

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