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एमपी में टैक्स फ्री हुई ‘सम्राट पृथ्वीराज’.. जानिए टैक्स से लेकर सेक्स के मामले में क्या-क्या हुआ है पहले

वेबखबर के लिए रत्नाकर त्रिपाठी की रिपोर्ट
डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी (Dr. Chandraprakash Dwivedi) की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ (Samrat Prithviraj) को मध्यप्रदेश सरकार ने टैक्स फ्री कर दिया है। अक्षय कुमार (Akshay Kumar) की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म कल (शुक्रवार, 3 जून) को रिलीज हो रही है। वर्ष 2017 की मिस यूनिवर्स मानुषी छिल्लर की यह डेब्यू फिल्म है।
ऐतिहासिक किरदारों के लिहाज से ‘सम्राट पृथ्वीराज’ को लेकर मध्यप्रदेश में परस्पर विरोधी हालात बन रहे हैं। संजय लीला भंसाली ने वर्ष 2018 में फिल्म ‘पद्मावत’ बनायी थी। तब भी शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। चौहान ने राज्य में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी। बाद में अदालत के आदेश पर ही यह फिल्म रिलीज हो सकी। ‘पद्मावत’ राजपूत रानी पद्मावती पर केंद्रित फिल्म थी। चूंकि इस फिल्म को राजपूतों के गलत और अपमानजनक चित्रण वाला कहा गया, इसलिए राज्य के चुनावी माहौल की नजाकत को भांपते हुए ‘पद्मावत’ के प्रदर्शन को रोका गया था।
राजपूतों के संगठन करणी सेना ने ‘पद्मावत’ का विरोध किया था। तब फिल्म में कुछ कांट-छांट’ के साथ ही उसका शीर्षक ‘पद्मावती’ बदल दिया गया था। करणी सेना के विरोध के चलते ही ‘पृथ्वीराज’ का नाम बदलकर ‘सम्राट पृथ्वीराज’ किया गया है।
यहां एक रोचक बात भी है। ‘पद्मावती’ के कथित रूप से अपमानजनक चित्रण से नाराज शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में उत्कृष्ट काम करने वाली महिलाओं के लिए ‘पद्मावती सम्मान’ शुरू करने की घोषणा की थी। इसके बाद हुए चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की भाजपा हार गयी। हालांकि नतीजों के पंद्रह महीने बाद ही भाजपा फिर सत्ता में आ गई। चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन पद्मावती पुरस्कार का मामला आज तक घोषणा से आगे नहीं जा सका है।
शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2014 में रानी मुख़र्जी की केंद्रीय भूमिका वाली फिल्म ‘मर्दानी’ को भी टैक्स फ्री घोषित कर चुके थे।
लेकिन देखा यह गया है कि किसी फिल्म को टैक्स फ्री करने की बजाय उसे विवादित बना देने से उसे देखने वालों की संख्या में जबरदस्त वृध्दि हो जाती है। एक उदाहरण से इसे समझिए। रमेश शर्मा ने 1986 में एक फिल्म ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ (New Delhi Times- movie) बनायी थी। उन दिनों मध्यप्रदेश में फिल्म विकास निगम अस्तित्व में था। निगम द्वारा तब कराये गए एक फिल्म समारोह में ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ भी प्रदर्शित की गयी। लेकिन दर्शकों ने इस चित्र में लगभग न के बराबर ही रुचि दिखाई।
फेस्टिवल ख़त्म होने के कुछ ही दिन बाद दूरदर्शन ने यह फिल्म दिखाने की घोषणा की। तब टीवी जगत में दूरदर्शन का एकछत्र राज था और उसकी फ़िल्में देखने के लिए लोग उतावले रहते थे। हालांकि ऐन मौके पर दूरदर्शन ने ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ की बजाय फिल्म ‘मनचली’ का प्रदर्शन कर दिया।
अगले दिन मध्यप्रदेश के एक प्रतिष्ठित अख़बार ने इस बदलाव का कारण बताया। अखबार की एक्सक्लूसिव खबर में कहा गया कि इस फिल्म में नेताओं तथा अपराधियों के गठजोड़ को दिखाए जाने के कारण केंद्र सरकार ने दूरदर्शन को इसका प्रसारण करने से रोक दिया है। यह चित्र किसी मुख्यमंत्री और पार्टी में उसके विरोधी कद्दावर नेता  के बीच की खींचतान और उससे जुड़े एक हत्याकांड की कहानी बताता है।
इसका असर यह हुआ कि वर्ष 1987 के फिल्म फेस्टिवल में जब  ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ फिर लाई गयी तो उसे देखने के लिए भोपाल के रविंद्र भवन में मानो समूचा शहर उमड़ आया। तब फेस्टिवल के आयोजक और रविंद्र भवन के कर्ताधर्ता भी दबी जुबान से स्वीकारते थे कि फिल्म के एक-एक टिकट के लिए उनके पास राज्य के मंत्रियों से लेकर आला अफसरों तक के फोन आ रहे थे। इस फिल्म के लिए लोगों की दीवानगी का आलम यह रहा कि फेस्टिवल के शेड्यूल से हटकर इसका एक अतिरिक्त शो भी आयोजित करवाना पड़ गया था।
वैसे ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ उत्कृष्ट फिल्म थी। ऐसे में यह विडंबना ही कही जाएगी कि इतने प्रभावी चित्र को दर्शकों की भीड़ को प्रभावित करने के लिए किसी विवाद का मोहताज होना पड़ गया।
भोपाल के फिल्म फेस्टिवल से ही जुड़ा एक और रोचक वाकया है। शशि कपूर (Shashi Kapur) की ‘उत्सव’ (Utsav) की रिलीज से पहले ही यह बात जमकर प्रचारित की जा चुकी थी कि इस फिल्म में ‘गरमागरम’ दृश्यों की भरमार है। इसी बीच फिल्म फेस्टिवल की घोषणा हो गयी। जो फ़िल्में दिखाई जाना थीं, उनमें ‘उत्सव’ भी शामिल थी। फिर क्या था, फिल्म का टिकट लेने की होड़ मच गयी। एडवांस बुकिंग में ही उत्सव के सारे टिकट बेचे जा चुके थे। कालाबाजारी करने वालों ने उस समय के पांच रुपये की कीमत वाले  एक-एक टिकट को सौ से डेढ़ सौ रुपये तक में बेचकर खूब मुनाफ़ा कमाया था।
फेस्टिवल तो हुआ, लेकिन इसमें ‘उत्सव’ नहीं दिखाई गयी। वो लोग, ठगे रह गए, जिन्होंने ब्लैक में इसके टिकट खरीदे थे। क्योंकि जिस टिकट के लिए उन्होंने सौ से डेढ़ सौ रुपए खर्च कर दिए थे, उस टिकट के रिफंड पर उन्हें केवल पांच रुपया ही वापस मिल सका। इस तरह ‘उत्सव’ ने कालाबाजारी करने वालों के लिए उत्सव का इंतज़ाम कर दिया। बाकी गरमागरम दृश्य देखने की हसरत में पैसा लुटाने वालों के सारे अरमान ठन्डे बस्ते में चले गए।
भोपाल के अनुभव के लिहाज से एक बात कही जा सकती है। यहां रिचर्ड एटेनबरो (Richard Samuel Attenborough) की महान कृति ‘गांधी’ तथा गोविन्द निहलानी (Govind Nihlani) की ‘विजेता’  जैसी उत्कृष्ट फ़िल्में भी टैक्स फ्री की गयीं, लेकिन उन्हें देखने दर्शकों के बीच न तो ‘न्यू डेल्ही टाइम्स’ वाला उत्साह दिखा और न ही वे इन फिल्मों के लिए ‘उत्सव’ वाले जूनून से भरे दिखे। इतनी अच्छी फिल्मों का टैक्स फ्री होने के बावजूद औसत से भी कम कलेक्शन दर्शकों की सोच पर सवाल उठाने के लिए पर्याप्त  है।

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