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विश्लेषण: मुस्लिम वाटों की आस, आजम के समर्थन में सपा की साइकिल यात्रा सहानुभूति या सियासत!

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की रामपुर विधानसभा सीट से नौ बार विधायक, चार बार मंत्री, एक बार राज्यसभा सदस्य रह चुके सपा सांसद आजम खान को जेल की सलाखों के पीछे गए एक साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। सपा अब आजम खान के समर्थन में साइकिल यात्रा निकालने जा रही है, जिसकी शुरूआत पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव आज रामपुर के मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी से करेंगे। वो खुद भी 5 किलोमीटर साइकिल चलाएंगे। ऐसे में सवाल उठता है आखिर एक साल के बाद क्यों अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को आजम खान की याद आ रही है?

आजम खान के खिलाफ 100 से ज्यादा केस
बता दें कि सपा की सरकार में आजम खान की तूती बोलती थी और पार्टी के मुस्लिम चेहरे माने जाते थे, लेकिन 2017 में सूबे में बीजेपी की सरकार आने के बाद उनके खिलाफ कानूनी शिकंजा कसना शुरू हुआ तो अभी तक जारी है। आजम के खिलाफ 102 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें से 9 मुकदमे शासन ने वापस ले लिए थे और सात में फाइनल रिपोर्ट लगी है। इसके बाद भी 86 मुकदमे लंबित हैं, जिनमें से 75 में चार्जशीट लग चुकी हैं और ग्यारह में अभी जांच जारी है।

सपा सांसद आजम खान ने 26 फरवरी 2020 को रामपुर कोर्ट में सरेंडर किया था, जिसके बाद 27 फरवरी को उन्हें रामपुर से सीतापुर जेल ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद से आजम खान अभी तक वहीं जेल में बंद हैं, लेकिन इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव न तो कभी उनसे मिलने जेल में गए और न ही उनकी रिहाई के लिए पार्टी ने सड़क पर उतरकर कोई बड़ा आंदोलन छेड़ा। यही वजह रही कि कांग्रेस से लेकर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अकटकट तक आजम खान के बहाने सपा को निशाने पर लेती रही है।

अखिलेश यादव की साइकिल यात्रा
वहीं, यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव सूबे में अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुटे हैं। इसी कड़ी में योगी सरकार के शिकंजे में कसे आजम खान के जौहर यूनिवर्सिटी को बचाने के लिए अब सपा प्रमुख अखिलेश ने जिम्मेदारी को अपने कंधे पर लेकर निभाने की ठानी है। सपा आजम खान के समर्थन में रामपुर से लखनऊ तक के लिए शुक्रवार से साइकिल यात्रा का नेतृत्व करेगी, जिसका अखिलेश यादव हरी झंडी दिखाएंगे और खुद भी 5 किलोमीटर खुद साइकिल चलाकर राजनीतिक संदेश देंगे।

अखिलेश यादव शुक्रवार दोपहर एक बजे रामपुर के जौहर यूनिवर्सिटी से साइकिला यात्रा शुरू करेंगे, लेकिन उससे पहले एक जनसभा को संबोधित करेंगे। रामपुर में तमाम जगहों पर होर्डिंग और पोस्टर लगाए गए हैं। इन पर लिखा है कि ‘जौहर यूनिवर्सिटी के सम्मान में साइकिल रैली मैदान में’। इसके अलावा ‘समाजवादी पार्टी को 2022 में लाना है और जौहर यूनिवर्सिटी को बचाना है।’ इससे साफ जाहिर होता है कि अखिलेश यादव अब आजम खान की जौहर यूनिवर्सिटी के बहाने के बहाने अपने परंपरागत मुस्लिम वोटरों को साधने की रणनीति है।

बीजेपी ने बताया मुस्लिम सियासत
सपा की रामपुर से शुरू हो रही साइकिल यात्रा को लेकर बीजेपी नेता व यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि अखिलेश यादव को अब चुनाव के समय ही आखिर क्यों आजम खान की याद आ रही है। आजम खान के नाम पर अखिलेश साइकिल रैली निकालकर चुनाव में मुस्लिम वोट हासिल करना चाहते हैं। इसके अलावा उनका कोई मकसद नहीं है।

यूपी में मुस्लिम राजनीति ताकत
दरअसल, उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं। इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है। 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा है। सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं और करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को खासा प्रभावित करते हैं। इनमें ज्यादातर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई वाले इलाके और पूर्वी उत्तर प्रदेश की हैं।

पश्चिम यूपी पर मुस्लिम असर
पश्चिमी यूपी की बात की जाए तो यहां इसमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। बरेली से बाद से रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, आसपास के जनपदों में मुसलमान वोटरों की संख्या 35 से 45 फीसदी तक है। बिजनौर जिले में मुसलमानों की संख्या करीब 40 फीसदी है। मेरठ में मुसलमान वोट 35 से 40 फीसदी हैं, तो मुजफ्फरनगर में ये लगभग 35 फीसदी हैं।

हापुड़ में मुसलमानों का प्रतिशत लगभग 35 से 40 प्रतिशत है। बागपत में मुसलमानों की संख्या 35 प्रतिशत के आसपास है।सहारनपुर की सातों विधान सभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता लगभग 35 से 40 फीसदी हैं। सहारनपुर की बेहट, देवबंद व गंगोह विधान सभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं। वाराणसी में मुस्लिमों की तादाद 15 फीसदी, आजमगढ़ में 28 फीसदी, मऊ में 23 फीसदी, गाजीपुर में 18 फीसदी, बहराइच में तीस, लखनऊ में 22 फीसदी मुस्लिम हैं। रामपुर के आसपास के जिलों में आजम खान का सियासी असर है। सूबे के छोटे राजनीतिक दलों के साथ सियासी गठजोड़ करने के बाद अखिलेश अब आजम खान के बहाने मुस्लिम को साधने की रणनीति मानी जा रही है।

‘सपा की उदासीनता से शिकार रहे आजम खान’
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के चेयरमैन शाहनवाज आलम ने कहा कि एक साल से आजम खान बंद हैं, लेकिन सपा ने न तो कभी उनकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन चलाया और न ही कोई अखिलेश या उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता उनसे मिलने कभी सीतापुर जेल गए। सपा ने उन्हें पूरी तरह से मझधार में छोड़ दिया था। वह कहते हैं कि आजम खान को योगी सरकार ने सिर्फ मुस्लिम होने के नाते सजा दी है, इसमें बीजेपी और सपा की आपसी सहमति से किया गया गया। अगर सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला होता तो मुलायम सिंह यादव का परिवार आय से अधिक संपत्ति मामले में आरोपी है, उन सभी को भी जेल में डाला जाता।

शाहनवाज आलम ने कहा कि योगी सरकार आजम खान पर ही नहीं बल्कि मौलाना अली जौहर विश्वविद्यालय को निशाना बनाती रही और सपा प्रमुख अखिलेश यादव घर बैठकर खामोशी से देखते रहे। वह कहते हैं कि अब यूपी में विधानसभा चुनाव हैं तो उन्हें आजम खान की याद आ रही है, क्योंकि पश्चिम यूपी में प्रियंका गांधी की रैलियों में मुस्लिम समुदाय की भीड़ जुट रही है, जिसके चलते सपा साइकिल यात्रा निकालने को मजबूर हुई है। अखिलेश यादव कोई भी जतन कर लें मुस्लिम समुदाय उनकी राजनीतिक साजिश को समझ रहा है और उनके झांसे में नहीं आएगा।

‘कांग्रेस नेता की शिकायत पर आजम खान जेल गए’
वहीं, सपा के प्रवक्ता अताउर्रहमान कहते हैं कि आजम खान को राजनीतिक साजिश के तहत बीजेपी सरकार ने निशाना बनाया है और जौहर विश्वविद्यालय को। सपा से शुरू से आजम खान के समर्थन में खड़ी रही है और अखिलेश यादव खुलकर उनके साथ रहे हैं। पिछले दिनों उनके परिवार से मिलने भी रामपुर गए थे। आजम खान हमारी पार्टी के बड़े नेता है इसीलिए उनके समर्थन में साइकिल यात्रा निकाली जा रही है और सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कांग्रेस आजम खान पर बात न ही करें तो बेहतर है। कांग्रेस नेताओं ने ही आजम खान के खिलाफ तमाम शिकायतें की है, जो जगजाहिर है।

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