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विशेषज्ञों ने कहा- 75 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच सकता है कच्चा तेल, अर्थ व्यवस्था पर पड़ेगा असर

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल (ब्रेंट क्रूड) 70 डॉलर के प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है। कमोडिटी बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अगले एक हफ्ते में ब्रेंट क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच सकता है। इसका व्यापक असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल सकता है। एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी), अनुज गुप्ता ने बताया कि इस साल अब तक कच्चा तेल 33 फीसदी महंगा हो चुका है। जल्द ही ब्रेंट क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल को छू सकता है।

ऐसा होने से भारतीय अर्थव्यवस्था की सुधार की रफ्तार पर बहुत ही बुरा असर होगा क्योंकि सभी तरह के जिंस महंगे हो जाएंगे। इसके चलते महंगाई और तेजी से बढ़ेगी। हमने देखा है कि कच्चा तेल महंगा होने के साथ वहीं, बीते कई हफ्तों से देश में प्याज, टमाटर, अंडा, तेल और रिफाइंड आॅयल जैसे जरूरी खाद्य उत्पादों की कीमत में इजाफा हुआ है। अगर, क्रूड की कीमतों में तेजी जारी रही है तो महंगाई और सताएगी। यह मांग और आपूर्ति दोनों को प्रभावित करेगा। हालांकि, महंगे क्रूड का असर सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था पर ही नहीं होगा बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखने को मिलेगा।

कच्चा तेल महंगा होने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर
1. आयत लागत बढ़ने से चालू खाते का घाटा बढ़ेगा
2. सभी तरह के कमोडिटी महंगे हो जाएंगे
3. डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर होगा
4. महंगाई बढ़ने से आरबीआई बढ़ा सकता है रेपो रेट
5. शेयर बाजार में आ सकती है गिरावट
6. शिपिंग, रेल, बस और हवाई किराया महंगा होगा

वैश्विक खाद्य महंगाई सात साल के उच्चतम स्तर पर
वैश्विक खाद्य वस्तुओं की कीमतें जुलाई 2014 के बाद फरवरी, 2021 में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, खाद्य मूल्य सूचकांक जनवरी से 2.4% फरवरी में बढ़ा है।सूचकांक अब 116 अंक पर है, जो जुलाई 2014 के बाद सबसे अधिक है। एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी में चीनी और वनस्पति तेलों में बढ़ोतरी के कारण अनाज, डेयरी और मांस की कीमतों में भी वृद्धि हुई।

भारत क्रूड का तीसरा सबसे बड़ा आयातक
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। यह क्रूड की अपनी जरूरत के 80% हिस्से का आयात करता है। केयर रेटिंग के अनुसार, भारत 157.5 करोड़ बैरल कच्चा तेल खरीदता है। इस प्रकार अगर कच्चे तेल की कीमत में $1/बैरल की वृद्धि होती है तो यह आयात बिल को 10,000 करोड़ तक बढ़ा देता है। अगर रुपया और कमजोर होता है तो आयात बिल और तेल के दाम अधिक बढ़ जाते हैं।

अर्थव्यवस्था में सुधार की रुफ्तार धीमी होगी
कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीजल की कीमत में और इजाफा होगा। इससे कोरोना संकट के बाद सरकार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश और मुश्किल होगी। डीजल की कीमतें बढ़ने से माल ढुलाई का महंगा हो गया है। खेती की लागत भी बढ़ेगी। रिजर्व बैंक को महंगाई पर नियंत्रण के लिए रेपो रेट बढ़ाना पर सकता है। इससे बाजार में तरलता कम हो जाएगी। इस वजह से कंपनियों के पास कर्ज के लिए फंड कम बचेगा। यह स्थिति सुधार की रफ्तार को धीमी करेगा।

पेंट की कीमत में आएगा उछाल
कच्चा तेल महंगा होने से एफएमसीजी कंपनियों की लागत बढ़ेगी। माला भाड़ा बढ़ने से उत्पाद की लागत बढ़ेगी जो कंपनियों को कीमत बढ़ाने पर मजबूर करेगी। सबसे ज्यादा असर पेंट की कीमत पर होने की आशंका है। पेंट की कीमत में बड़ा उछाल आ सकता है।

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