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रेलवे ने ऐसे बचाई कोरोना के हजारों मरीजों की जान
नयी दिल्ली। भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने बीते 48 घंटे में 10 कंटेनरों के माध्यम से 150 टन से ज्यादा द्रवीकृत मेडिकल ऑक्सीजन (Liquid Medical Oxygen) (LMO) (एलएमओ) को देश के अनेक बड़े शहरों में पहुंचा कर हजारों रोगियों को जीवनदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
कोविड (Covid) की महामारी के घातक रूप लेने एवं देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी के कारण लोगों की जानें जा रहीं हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन इसकी आपूर्ति को लेकर दिक्कत थी। इसे देखते हुए 15 अप्रैल के बाद रेलवे की रोरो सेवा और हाल में भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के परिवहन विमानों से द्रवीकृत मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति शुरू की गयी है।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि मेडिकल द्रवीकृत ऑक्सीजन क्रायोजेनिक (Cryogenic) और खतरनाक रसायन (Chemical) हाेता है और इसका परिवहन अत्यधिक सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। इस गैस के परिवहन करने के लिए बने टैंकर 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक की गति से नहीं चल पाते हैं क्योंकि गति को बढ़ाने या घटाने में बहुत झटका नहीं लगना चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना होने की आशंका रहती है। बीच-बीच में प्रेशर की जांच करनी पड़ती है। इसके परिवहन करने वालों को खास तरह का प्रशिक्षण देना होता है। रेल परिवहन में भी इसी तरह की सावधानी बरतनी पड़ती है।
कोविड (Covid) की महामारी के घातक रूप लेने एवं देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी के कारण लोगों की जानें जा रहीं हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन इसकी आपूर्ति को लेकर दिक्कत थी। इसे देखते हुए 15 अप्रैल के बाद रेलवे की रोरो सेवा और हाल में भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के परिवहन विमानों से द्रवीकृत मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति शुरू की गयी है।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि मेडिकल द्रवीकृत ऑक्सीजन क्रायोजेनिक (Cryogenic) और खतरनाक रसायन (Chemical) हाेता है और इसका परिवहन अत्यधिक सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। इस गैस के परिवहन करने के लिए बने टैंकर 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक की गति से नहीं चल पाते हैं क्योंकि गति को बढ़ाने या घटाने में बहुत झटका नहीं लगना चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना होने की आशंका रहती है। बीच-बीच में प्रेशर की जांच करनी पड़ती है। इसके परिवहन करने वालों को खास तरह का प्रशिक्षण देना होता है। रेल परिवहन में भी इसी तरह की सावधानी बरतनी पड़ती है।
बहुत बड़ी चुनौती के बावजूद
फिर भी रेलवे ने इसे चुनौती के रुप में लिया और रोडमैप तैयार किया। रेलवे ने अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया और इन विशेष आकार के टैंकरों को वसई, सूरत (Surat), भुसावल, नागपुर (Nagpur) मार्ग के माध्यम से विशाखपट्टणम (Vishakhapattnam) तक ले जाया गया।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध के बाद रेलवे ने तुरंत काम शुरू कर दिया। कलंबोली में केवल 24 घंटे में रैंप बनाया गया। रो-रो सेवा के आवागमन के लिए रेलवे को कुछ स्थानों पर घाट सेक्शन, रोड ओवर ब्रिज, टनल, कर्व्स, प्लेटफॉर्म कैनोपीज़, ओवर हेड इक्विपमेंट आदि विभिन्न बाधाओं पर विचार करने के बाद एक खाका तैयार किया गया। यह तय किया गया कि 3320 मिलीमीटर ऊंचाई वाले टैंकर को टी-1618 फ्लैट वैगनों पर रख कर यह दुरूह कार्य किया जाएगा। इसके लिए वसई मार्ग उचित रहेगा।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध के बाद रेलवे ने तुरंत काम शुरू कर दिया। कलंबोली में केवल 24 घंटे में रैंप बनाया गया। रो-रो सेवा के आवागमन के लिए रेलवे को कुछ स्थानों पर घाट सेक्शन, रोड ओवर ब्रिज, टनल, कर्व्स, प्लेटफॉर्म कैनोपीज़, ओवर हेड इक्विपमेंट आदि विभिन्न बाधाओं पर विचार करने के बाद एक खाका तैयार किया गया। यह तय किया गया कि 3320 मिलीमीटर ऊंचाई वाले टैंकर को टी-1618 फ्लैट वैगनों पर रख कर यह दुरूह कार्य किया जाएगा। इसके लिए वसई मार्ग उचित रहेगा।
केवल 50 घंटे में 1850 किमी का सफर
चूंकि कलंबोली और विशाखपट्टणम के बीच की दूरी 1850 किमी से अधिक है, जो इन टैंकरों द्वारा केवल 50 घंटों में पूरी की गई थी। 100 से अधिक टन एलएमओ वाले 7 टैंकरों को 10 घंटे में लोड किया गया और केवल 21 घंटे में वापस नागपुर ले जाया गया। रेलवे ने नागपुर में 3 टैंकरों को उतार दिया है और शेष 4 टैंकर नासिक (Nasik) पहुंच गए यानी नागपुर से नासिक की दूरी केवल 12 घंटे में पूरा की।
चूंकि कलंबोली और विशाखपट्टणम के बीच की दूरी 1850 किमी से अधिक है, जो इन टैंकरों द्वारा केवल 50 घंटों में पूरी की गई थी। 100 से अधिक टन एलएमओ वाले 7 टैंकरों को 10 घंटे में लोड किया गया और केवल 21 घंटे में वापस नागपुर ले जाया गया। रेलवे ने नागपुर में 3 टैंकरों को उतार दिया है और शेष 4 टैंकर नासिक (Nasik) पहुंच गए यानी नागपुर से नासिक की दूरी केवल 12 घंटे में पूरा की।
बोकारो से लखनऊ तक भी सप्लाई
इसी प्रकार से बोकाराे (Bokaro) से चली गाड़ी ने वाराणसी (Varanasi)और लखनऊ (Lucknow) में एलएमओ टैंकर पहुंचाये। ट्रेनों के माध्यम से ऑक्सीजन का परिवहन लंबा लेकिन तेज है। रेलवे द्वारा परिवहन में दो दिन लगते है जबकि सडक मार्ग द्वारा 3 दिन लगते है। ट्रेन दिन में 24 घंटे चलती है, ट्रक ड्राइवरों को रोड पर हाल्ट लेने की जरूरत होती है। इससे टैंकरों को रोजाना दस घंटे तक ही चलाना संभव होता है। इन टैंकरों की तेज गति के लिए ग्रीन कॉरिडोर (Green Corridor) बनाया गया है और आवाजाही की निगरानी शीर्ष स्तर पर की गयी। इससे हजारों रोगियों की जान बचाने के लिए एलएमओ की आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
इसी प्रकार से बोकाराे (Bokaro) से चली गाड़ी ने वाराणसी (Varanasi)और लखनऊ (Lucknow) में एलएमओ टैंकर पहुंचाये। ट्रेनों के माध्यम से ऑक्सीजन का परिवहन लंबा लेकिन तेज है। रेलवे द्वारा परिवहन में दो दिन लगते है जबकि सडक मार्ग द्वारा 3 दिन लगते है। ट्रेन दिन में 24 घंटे चलती है, ट्रक ड्राइवरों को रोड पर हाल्ट लेने की जरूरत होती है। इससे टैंकरों को रोजाना दस घंटे तक ही चलाना संभव होता है। इन टैंकरों की तेज गति के लिए ग्रीन कॉरिडोर (Green Corridor) बनाया गया है और आवाजाही की निगरानी शीर्ष स्तर पर की गयी। इससे हजारों रोगियों की जान बचाने के लिए एलएमओ की आपूर्ति सुनिश्चित हुई।