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भीमा कोरेगांव मामला: सुप्रीम कोर्ट से एक्टिविस्ट सुधा को बड़ी राहत, एनआईए की याचिका खारिज कर बरकरार रखी जमानत

नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon case) में जहां एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज (Activist Sudha Bharadwaj) को बड़ी राहत मिली है, वहीं NIAको बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने एनआईए की याचिका को खारिज करते हुए सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका को बरकरार खी है। इसके साथ ही कल 8 दिसंबर को उनकी रिहाई का रास्ता भी साफ हो गया है। बता दें कि सुधा को बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) से जमानत मिलने के बाद NIA ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे शीर्ष आदालत ने खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर दखल देने का कोई कारण दिखाई नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जिस निचली अदालत के पास NIA मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं था। पुणे कोर्ट को UAPA के तहत नजरबंदी का समय बढ़ाने के लिए सक्षम नहीं था क्योंकि वो एनआईए विशेष अदालत नहीं थी। अगर समय निचली अदालत नहीं देती तो क्या होता? ये एक असुविधाजनक स्थिति है।





दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को सुधा भारद्वाज को 2018 भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद जाति हिंसा मामले में डिफॉल्ट जमानत दे दी थी। अदालत ने सुधा भारद्वाज को जमानत की शर्तें तय करने के लिए आठ दिसंबर को विशेष एनआईए अदालत में पेश करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने 8 अन्य आरोपियों सुधीर डावले, डॉ पी वरवर राव, रोना विल्सन, एडवोकेट सुरेंद्र गाडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, महेश राउत, वरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। उन्हें जून-अगस्त 2018 के बीच गिरफ्तार किया गया था।

क्या है मामला?
जनवरी 2018 को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर एक समारोह आयोजित किया गया था, जहां हिंसा होने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस मामले में सुधा भारद्वाज को अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था. सुधा भारद्वाज पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सदस्य होने का आरोप है.

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