सियासी तर्जुमा

ये चतुराई दिग्विजय की….

राजनीति में कोई स्टैंडअप शो कम से कम जाहिर रूप से तो नहीं होता। वरना आज तो एक बार फिर दिग्विजय सिंह इसके बाकी प्रतिभागियों के बीच फूलकर कुप्पा हुए इठलाते नजर आ ही जाते। सियासी रिले रेस में पूर्व मुख्यमंत्री ने गजब कौशल दिखाया। राम मंदिर के लिए एक साथ दो नावों पर कमाल की सवारी कर डाली। एक लाख ग्यारह हजार रुपये का चंदा दे दिया। ऐसा कर साबित कर दिया खुद को बड़ा सनातन धर्मी, हिन्दूवादी कहना उनके साथ न्याय नहीं होगा। संघ और विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों के वे घोर विरोधी हैं। तो ऐसा उन्होंने एक बार फिर साबित भी कर दिया। लिहाजा चंदे के साथ ही एक रुक्का लिखकर ‘ ठाकुर साहब’ ने मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश कर रही बीजेपी को कमजोर दिखाने का प्रयास भी कर दिया।

 

दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री के मार्फत इस रकम का चेक मंदिर न्यास को दिया है। साथ ही चैक सिस्टम की भी हिमायत कर दी है। नरेंद्र मोदी को लिखी एक चिट्ठी में सिंह ने दो गौरतलब बात कही हैं। पहली, मंदिर के लिए धन संग्रह का काम सौहार्द्रपूर्ण तरीके से हो। दूसरी, विश्व हिन्दू परिषद् के मंदिर निर्माण की रकम से जुड़े बैंक खातों की जानकारी सार्वजनिक की जाए। गोया कि सिंह को चंदा लेने के नाम पर जबरदस्ती किए जाने की आशंका सता रही है (भले ही किसी छोटी से छोटी घटना से भी इसकी पुष्टि न होती हो) और वे वीएचपी के द्वारा चंदे की रकम में गड़बड़ी करने की बात भी कर रहे हैं। तो एक तरफ तो सिंह ने चेक के जरिये अपने सनातनी हिन्दू होने की बात को सामने रखा है और दूसरी तरफ यह भी जताने का प्रयास किया है कि यदि भाजपा और उससे जुड़े हिन्दू संगठन धर्म के किसी काम से जुड़े हैं तो उसमें जोर-जबरदस्ती या गड़बड़ी की पूरी-पूरी गुंजाईश बनी हुई है। लिहाजा वो भी खुश, जो दिग्विजय की हिन्दू-विरोधी छवि से परेशान थे और वे भी खुश जो पूर्व मुख्यमंत्री की इसी इमेज के चलते उनके समर्थन में मजबूती के साथ खड़े रहते हैं।

 

दिग्विजय का यह कदम गजब है। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर भी पूरी कांग्रेस का कोई भी नेता इस अहम मसले पर इतनी ऊंची राजनीति नहीं खेल सका है। बीजेपी से तमाम मोर्चों पर कमजोर हो चुकी कांग्रेस के लिए सिंह जैसे ऐसे राजनीतिक चातुर्य की सख्त जरूरत है। लेकिन पार्टी की दो समस्याएं हैं। उसने दिग्वजय का इस्तेमाल अधिकांशत उन मौकों पर किया, जब उनके कहे और किए से घोर हिन्दू विरोधी होने की बू साफ नजर आती थी। नतीजा यह कि पार्टी को सिंह से नुकसान ही उठाना पड़ा और खुद पूर्व मुख्यमंत्री की छवि पर भी इसका विपरीत असर ही ज्यादा हुआ।

 

दूसरी समस्या यह कि जिस समय दिग्विजय ने इतना जोरदार सियासी तीर चला है, उस समय उनकी अपनी पार्टी ने ही उन्हें मुख्य धारा से अलग कर रखा है। इसलिए इस चंदा प्रकरण की कुछ गूंज मध्यप्रदेश में भले ही सुनायी दे जाए, लेकिन कांग्रेस इसके जरिये बीजेपी पर राष्ट्रीय स्तर का आक्रमण करने जैसा लाभ नहीं ले सकेगी। टाइमिंग की यह गड़बड़ी मूलत: कांग्रेस के सतत रूप से चल रहे ‘कड़वे दिनों’ के स्थायित्व की वजह बनती जा रही है। वैसे भी दिग्विजय सिंह एक चतुर राजनीतिज्ञ भले ही हों लेकिन अब आज की तारीख में जनाधार वाला नेता तो उन्हें भी ठहराना मुश्किल है। और कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या उसके आधारहीन अचंभे ही हैं। दिग्विजय सिंह जैसे अब कांग्रेस में अपवाद ही हैं।

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