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महामहिम का मामला और महा-महीन मोदी

नरेंद्र मोदी उस दिन भोपाल में थे। प्रधानमंत्री तो दूर, प्रधानमंत्री पद की संभावनाओं से भी वह तब बहुत दूर थे। लेकिन भोपाल के मीडिया में उनका भारी चर्चा था। क्योंकि गुजरात में शंकर सिंह वाघेला एपिसोड के बाद भाजपा को फिर खड़ा करने में मोदी की रणनीति का लगभग सभी लोहा मान चुके थे।
1998 के विधानसभा चुनाव के आसपास वाले दिनों में ही मोदी भोपाल आये। मध्य प्रदेश के भाजपा मुख्यालय में वह एक पत्रकार वार्ता में पूरी खामोशी के साथ शामिल हुए। हां, यह बात सभी ने महसूस की कि पूरे समय मोदी की आंखें कभी भी स्थिर नहीं दिखीं। कभी उनकी निगाहें पत्रकारों पर तैरती रहीं तो कभी वह किसी और व्यक्ति या वस्तु को तेजी से घूमती आंखों के रडार पर लाते रहे।
कल शायद हर कोई यही सोचता रह गया होगा कि वह न ठहरने वाली निगाहें कब कुछ क्षण ओडिशा में ठहरी होंगी? राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम का ऐलान खुद मुर्मू के लिए चौंकाने वाला रहा हो, ऐसा नहीं है। चौंक तो लगभग हर कोई गया है। क्योंकि इस एक नाम की घोषणा के साथ मोदी ने मौके पर जो चौक्का लगाया है, वह एक बार फिर विपक्ष के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है।
(हाल में ही हुई थी मोदी और पटनायक की मुलाक़ात)
ओडिशा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक और उनका बीजू जनता दल यूं भी मोदी के विरोध में बहुत अधिक मुखर नहीं दिखे हैं। कई मौकों पर कांग्रेस सहित तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने भी पटनायक को मोदी के विरूद्ध संयुक्त विपक्षी अभियान में शामिल करने का नाकाम प्रयास किया है।
लेकिन राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तो मोदी ने वह दांव खेला कि पटनायक चाहते हुए भी उनका विरोध नहीं कर सकेंगे। यूं भी पटनायक की पार्टी ने बीते राष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का ही समर्थन किया था। यह बात और है कि पटनायक समय-समय पर यह कहने से नहीं चूकते कि उनकी पार्टी एनडीए और यूपीए से एक समान दूरी बनाकर चलती है।
पटनायक ने पहले कहा था कि राष्ट्रपति के मसले पर उनका दल प्रत्याशी का ऐलान होने के बाद अपना मत स्पष्ट करेगा। इसी बीच मई के अंत में उनकी मोदी से चर्चा हुई। कहा जा रहा है कि उसी समय पटनायक को यह आभास करा दिया गया था कि मुर्मू को प्रत्याशी बनाया जाएगा। खुद पटनायक ने मुर्मू के नाम की घोषणा के बाद ट्वीट कर उन्हें बधाई दी और इस बात पर खुशी जताई कि मोदी ने इस बारे में उनसे चर्चा की थी।
मोदी ने महामहिम के पद को लेकर अपनी जिस महा-महीन यानी बारीक रणनीति का परिचय दिया है, वह बताता है कि फिलहाल वह राजनीति के खेल में अपने साथियों और विरोधियों, दोनों से ही कई कदम आगे चल रहे हैं।
अब देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिलने का रास्ता साफ़ होता दिख रहा है। जाहिर है कि इतिहास में जब भी इस घटनाक्रम का उल्लेख होगा, तो मोदी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाएगा।
(यशवंत सिन्हा को बनाया है विपक्ष ने अपना प्रत्याशी)
विपक्ष के लिए अब चुनौती बड़ी है। शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला यह चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके हैं। अब पूर्व भाजपा नेता और मोदी के प्रबल विरोधी यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद हेतु विपक्ष के उम्मीदवार होंगे। लेकिन मुकाबला फिलहाल एकतरफा दिखता है। क्योंकि बीजू जनता दल के समर्थन के बाद यह तय माना जा रहा है कि एनडीए की प्रत्याशी के तौर पर मुर्मू के लिए आसार अधिक उजले हो गए हैं।
भाजपा के लिए कहा जाता है कि वह हर समय इलेक्शन मोड में रहती है। महाराष्ट्र में आये राजनीतिक मोड़ को भी इसी मोड से जोड़कर देखा जा रहा है। यह फिलहाल मोदी की भाजपा है और आने वाले समय में कई ऐसे और भी मोड़ दिख सकते हैं, जहां सभी को चौंका देने वाले राजनीतिक घटनाक्रम मौजूद रहेंगे और ऐसे लगभग हर पड़ाव पर आप नरेंद्र मोदी का जिक्र जरूर सुनेंगे।
(ग्राफ़िक- प्रफुल्ल तिवारी)

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