जगा दो मुझे झकझोर कर
‘मन्नत’ के बाहर जन्नत जैसी बहार है। आर्यन खान ( Aryan Khan) के प्रशंसकों के चेहरे पर खुशी के हर पल और गाढ़े होते भाव दिख रहे हैं। ऑर्थर रोड जेल (Arthur Road Jail) के सामने भी ऐसा हुजूम उमड़ा, जैसा वर्ष 1947 से पहले तक कुछ प्रमुख चेहरों को देखने के लिए उमड़ जाता था। इस जेल की दीवारें अब कुछ समय तक विधवा जैसी हो जाएंगी। क्योंकि बीती तीन अक्टूबर से आज तक इन दीवारों की मांग में रोजाना आशाओं का नया सिन्दूर भरा जा रहा था। आर्यन के रिहा होने की आशा। अब आज से मन्नत (Mannat) के आगे मन्नतों का नित-नया श्रृंगार किया जाने लगेगा। कुल जमा 23 साल के ‘बेचारे’ आर्यन के फिर पहले जैसा अपनी तरह का जीवन जीने की मन्नतें।
लगातार टीवी देखकर ऊब गया। बाहर कुनकुनी धूप खिली है। इधर आराम कुर्सी पर बैठा और उधर नींद ने आ घेरा। ये क्या देख रहा हूं! मैक्सिम गोर्की (Maxim Gorky) के ‘मदर’ का कवर किसी ने बदल दिया है। एक बहुत बड़ी भीड़ उस जगह से गोर्की वाली मां को हटाकर उनकी जगह गौरी खान (Gauri Khan) को विराजित कर चुकी है। प्रेमचंद की ईदगाह की दादी (Grandmother of Premchand’s Idgah) और चिमटा थामे हामिद की जगह गौरी और आर्यन को दे दी गयी है। आर्यन हाथ में चिमटे की जगह जो थामे हुए हैं, वह क्या है, यह मैं नहीं समझ पा रहा। आर्यन के हाथ में जो है उसका सच और झूठ समझने के लिए मेरे पास करोड़ों रुपये का वकील लेने की सामर्थ्य नहीं है। फिल्म ‘मदर इंडिया (Mother India)’ के पोस्टर पर भी नरगिस और सुनील दत्त (Nargis and Sunil Dutt) की जगह यही दो चेहरे ले चुके हैं। ये क्या! देश के पिता के समाधि स्थल का नाम बदलकर ‘मन्नत’ कर दिया गया है और वहां शाहरुख़ (Shahrukh) की आदमकद प्रतिमा लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। नवाब मलिक को निशाने-हिन्दुस्तान से सम्मानित किया जा रहा है।
उफ़! भगत सिंह जी (Bhagat Singh Ji) की माताश्री उस जेल के बाहर एकदम अकेली और बेसहारा खड़ी हुई हैं, जिसके भीतर उनके बेटे को फांसी दी जा रही है। मां के हाथ में बेटे की एक तस्वीर है, जिसकी तरफ कोई भी ध्यान नहीं दे रहा। फिर दृश्य बदल रहा है। गिरगिट जैसी शक्ल वाला कोई शख्स माइक पकड़ कर उस मां के पास आया है। उसके साथ एक और आदमी अजगर जैसे नजर आते कैमरे को अपने कंधे पर लिया हुआ है। माइक वाले ने वृद्धा के हाथ से उसके बेटे की तस्वीर छीनकर उसे एक फ़िल्मी पोस्टर थमा दिया है। उस पर ‘शहीदे-आज़म भगत सिंह’ (‘Shaheed-Azam Bhagat Singh’) फिल्म के अभिनेता की तस्वीर है। इधर मां ने वह पोस्टर थामा और उधर वह भीड़ से घिर गयी है। उसके लिए उठे सहानुभूति के स्वर आसमान का भी सीना चीरने पर आमादा हैं। अब वह अकेली नहीं है। क्योंकि अब वह भगत सिंह नहीं, बल्कि उनकी भूमिका निभाने वाले एक सुपरस्टार की मां (superstar’s mother) बन चुकी है।
कृपया मुझे कोई झकझोर कर जगा दे। क्योंकि ये देखना भी बहुत पीड़ा दे रहा है कि एक नारे को आउटडेटेड करार देकर देश के युवा, ‘तुम हमें ड्रग्स (Drugs) दो, हम तुम्हें बर्बादी देंगे’ के नारे लगा रहे हैं। हुकूमतें विवश कर दी गयी हैं कि वे गरीबों को राशन के साथ-साथ मुफ्त ड्रग्स भी उपलब्ध कराएं, ताकि देश में समानता-मूलक समाज की स्थापना की जा सके। चंद्रशेखर आजाद जी (Chandrashekhar Azad Ji) की प्रतिमा में तनी मूंछ पर ठहरा हाथ सरककर अब मूर्ति का पूरा चेहरा ही ढंक चुका है। सरदार पटेल (Sardar Patel) की आत्मा इस बात के लिए रो रही है कि उनकी प्रतिमा को क्यों नहीं आज के भारत की बजाय पाकिस्तान (Pakistan) के कब्जे वाले कश्मीर में स्थापित किया गया। हे परमेश्वर! मैं यह भी देख रहा हूं कि संविधान की शुरुआत बदलकर ‘हम भारत के बोझ’ कर दी गयी है और किसी महान दिग्गज सम्राट की लाट की जगह ड्रग्स के पूरे लॉट को ससम्मान स्थान दे दिया गया है। वो चार शेर अपने नाखूनों और दांतों से मुझे घायल करने लगे हैं।
मैं घबरा कर जाग चुका हूं। सामने खड़ा मेरा बेटा मुझे हैरत के साथ देख रहा है। कुनकुनी धूप वाला सूरज उसके ठीक पीछे चमक रहा है। उस सूरज पर कब्जा कर चुकी मन्नत वाली भीड़ मेरे बेटे को अपनी तरफ खींच रही है। मैं घबराकर बेटे को आगोश में ले लेता हूं। अब मुझे उसकी आंख और कान बंद करने हैं।