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जनाधार वाले नेताओं की तलाश में भाजपा: बीते दो महीने में बदले 3 राज्यों के सीएम, अब इन पर है नजर

नई दिल्ली। भाजपा (BJP) ने पहले कर्नाटक (Karnatak) फिर उत्तराखंड (Uttarakhand) और अब गुजरात (Gujrat) में मुख्यमंत्री को बदल दिया है। बीते 2 महीने में विजय रुपाणी (Vijay Rupani) भाजपा के तीसरे ऐसे नेता हैं जिन्होंने CM पद से इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों की माने तो कमजोर मुख्यमंत्रियों के बदलने की पटकथा हरियाणा, झारखंड और कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections) के बाद ही लिख ली गई थी। उत्तराखंड में करारी हार और हरियाणा में बहुमत तक न पहुंचने के कारण अब भाजपा किसी भी तरह का जोखिम उठाने के मूड में नहीं दिख रही है।

बता दें कि लोकसभा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में बरकरार न रहने से चिंतित भाजपा नेतृत्व (BJP leadership) ने अलग-अलग राज्यों की समीक्षा कर जरूरत पड़ने पर नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति बनाई है। दरअसल, बीजेपी ने लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) में दमदार वापसी की लेकिन इसके छह महीने बाद ही झारखंड में पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़ा। बीजेपी को राज्य में हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की अगुवाई में हुए गठबंधन से हार मिली। इस तरह के चुनाव परिणाम की पार्टी के ही अंदर कई लोगों ने भविष्यवाणी भी की थी।

अब यह राज्य हैं पार्टी की नजर में
पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि यही फार्मूला चरणबद्ध तरीके से हरियाणा (Haryana), त्रिपुरा (Tripura) और मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) में भी आजमाया जाएगा। यही नहीं जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां संगठन में बदलाव किया जाएगा। पार्टी नेतृत्व को इन राज्यों में जातिगत समीकरण में फिट बैठने और जनाधार वाले नेताओं की तलाश है।

इन राज्यों ने दी पार्टी को बड़ी टेंशन
पार्टी नेतृत्व की चिंता पिछले साल तब बढ़ी जब विधानसभा चुनाव में पार्टी को झारखंड और महाराष्ट्र (Maharashtra) में सत्ता गंवानी पड़ी। हरियाणा में पार्टी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी की मदद लेनी पड़ी। इसके बाद इसी साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (west bengal assembly elections) के नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी। इन सभी राज्यों में एक तथ्य समान था। किसी राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान हासिल मत प्रतिशत को बरकरार नहीं रख पाई।





स्थानीय नेतृत्व मापदंडों पर नहीं उतर रहा खरा
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी नेतृत्व ने विभिन्न राज्यों में नया नेतृत्व उभारने का दांव चला। इस क्रम में हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में नेतृत्व ने नए चेहरों पर दांव लगाया। हालांकि स्थानीय नेतृत्व पार्टी के मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाया। अपवाद स्वरूप असम को छोड़ दें तो एक भी राज्य विधानसभा चुनाव में लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाया। लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पांच से 19 फीसदी वोटों का नुकसान झेलना पड़ा।

जनाधार और जातिगत समीकरण साधने में माहिर नेता की हो रही तलाश
पार्टी सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में कई और राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। कई राज्यों की समीक्षा हो भी चुकी है। इन राज्यों में जैसे ही जनाधार और जातिगत समीकरण (Mass base and caste equation) में फिट नेता की तलाश पूरी होगी, नेतृत्व परिवर्तन को अमली जामा पहना दिया जाएगा। दरअसल पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि बीते कुछ सालों में राज्यों में एक ऐसा मतदाता वर्ग तैयार हुआ है जो लोकसभा चुनाव में तो MODI के नाम पर वोट करता है, मगर विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेतृत्व को सामने रख कर वोट देता है। ऐसे में राज्यों में जनाधार और जातीय समीकरण में फिट रहने वाले नेताओं की जरूरत है।

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